कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व सांसद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को हाल ही में अपना सरकारी आवास खाली करना पड़ा है। एक कोर्ट द्वारा सजायाफ्ता बना दिए जाने के बाद राहुल गांधी की सांसदी चली गई थी और इसके तत्काल बाद उन्हें सरकारी बंगला खाली करने का भी आदेश दे दिया गया था। इसी आदेश की तामील करते हुए राहुल ने अपना बंगला खाली कर दिया और मां सोनिया गांधी के बंगले में रहने चले गए।
एक समय ऐसा भी था जब उनकी दादी इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) पर भी बेघर होने का खतरा आ गया था। तब चंद्रशेखर के कड़े रुख से वह बच गई थीं और उनके लिए बंगला खाली करने का सरकारी आदेश जारी नहीं हो सका था।
राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर (Chandra Shekhar) की आत्मकथा ‘जीवन जैसा जिया’ में इस घटना का जिक्र है। किताब के मुताबिक चंद्रशेखर मानते थे कि आपातकाल के बाद चुनाव में हुई जबरदस्त हार इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के लिए सबसे बड़ी सजा है। वह नहीं चाहते थे कि इंदिरा पर किसी तरह की कार्रवाई की जाए। लेकिन मोरारजी सरकार के गृहमंत्री, जॉर्ज फर्नांडिस और खुद प्रधानमंत्री मोरारजी भाई सहित कई नेता इंदिरा की गिरफ्तारी चाहते थे। उन्हें गिरफ्तार कर भी लिया गया था। लेकिन, अगले ही दिन बिना जमानत लिए ही रिहा भी कर दिया गया था।
चुनाव के बाद डर गई थीं इंदिरा
चंद्रशेखर की आत्मकथा में लिखा है- चुनाव नतीजे के बाद मैं एक बार इंदिरा गांधी से मिला। मुझे वहां सब जानते थे। सुरक्षा में तैनात अफसर और कर्मचारियों ने मेरी तरफ ऐसे देखा जैसे कोई भूत आया हो। यह बात लोकसभा चुनाव के तत्काल बाद की है। उन दिनों इंदिरा जी सफदरजंग की अपनी सरकारी कोठी में ही थीं। 12, विलिंग्डन क्रिसेंट में तो वे बाद में गईं। मैंने इंदिरा जी से पूछा, आप कैसी हैं?
हताश निराश इंदिरा गांधी ने करुणा-भरी निगाहों से मेरी तरफ देखा। मुझसे पूछा कि आप कैसे हैं? मैंने उनसे कहा कि जेल से छूटने के बाद कई बार मैंने सोचा कि आपसे मिलकर पूछूं कि आपने यह भयानक काम क्यों किया? इमरजेंसी लगाने की सलाह आपको किसने दी थी? इमरजेंसी थोपना देश के साथ क्रूर मजाक था। यह फैसला आपने क्यों किया?
चंद्रशेखर आगे लिखते हैं ‘बात करते हुए मैंने महसूस किया कि इंदिरा गांधी बेहद परेशान हैं। उनको अपनी और परिवार की चिंता सता रही है। कहने लगीं कि बहुत परेशानी है, लोग आकर बताते हैं कि संजय गांधी को जलील किया जाएगा। दिल्ली में घुमाया जाएगा। मुझे मकान नहीं मिलेगा। हमारी सुरक्षा खत्म कर दी जाएगी। मैंने कहा कि ऐसा कुछ नहीं होगा। मैने ईमानदारी से यह बात कही, क्योंकि मैं यही महसूस करता था। इंदिरा गांधी की बात सुनकर मुझे हैरानी हुई। सोचने लगा कि क्या यह वही महिला हैं जिन्हें देश का पर्याय बताया जाता था? जिसे कुछ लोगों ने दुर्गा मान लिया था’?
सच में थी मकान छिनने की तैयारी
चंद्रशेखर लिखते हैं कि मैं सीधे वहां से मोरारजी भाई (Morarji Desai) के यहां गया। उनका रुख समझना चाहा। उन्हें बताया कि आशंका है कि सरकार इंदिरा गांधी की सुरक्षा हटा रही है, मकान खाली करवा रही है। मैंने उनसे कहा कि लोगों में गुस्सा है, कुछ कर देंगे तो आप पर मुश्किल आएगी। मैंने उनसे पूछा कि क्या आप उनको मकान भी नहीं देंगे? मोरारजी भाई ने कहा कि नहीं देंगे, नियम में नहीं आता।
मैंने उन्हें बताया कि जाकिर हुसैन, लाल बहादुर शास्त्री, ललित नारायण मिश्र आदि के परिवार को मकान मिला हुआ है। मोरारजी भाई ने कहा कि उनका भी कैंसिल कर दूंगा। मैंने उनसे कहा कि जिस परिवार ने स्वराज भवन और आनन्द भवन देश को दे दिया, जो महिला 17 साल प्रधानमंत्री रही, उनको रहने के लिए आप मकान तक नहीं देंगे? मोरारजी भाई से बड़ी बहस हुई। अन्त में वे माने, यह कहते हुए कि जब आप कहते हैं तो मकान दे दूंगा।
अंधेरे में रखे गए थे चंद्रशेखर
चंद्रेशेखर की आत्मकथा में लिखा है- मैंने एक दिन सुना कि इंदिरा गांधी को जेल भेजने की तैयारी हो रही है। मैं प्राण सब्बरवाल के दफ्तर में था। वहां कई पत्रकारों ने मुझसे पूछा कि क्या इंदिरा गांधी को जेल भेजने की तैयारी चल रही है? मैंने उन्हें कहा कि मुझे ऐसी कोई जानकारी नहीं है। उसी दिन मैंने इंदिरा जी के एक प्रेस वक्तव्य के विरुद्ध कड़ा जवाब दिया था जो समाचार-पत्रों में छपा था। पत्र- प्रतिनिधियों ने मुझसे कहा कि आजकल गृह-मंत्रालय में यह चर्चा जोरों पर है। मैंने वहां कुछ नहीं कहा, वहां से सीधे मोरारजी भाई के घर गया और उनसे पूछा कि क्या गृहमंत्री इंदिरा जी को जेल भेजने की तैयारी कर रहे हैं?
प्रधानमंत्री जी ने इस संभावना को नकारा। इसके राजनीतिक दुष्परिणामों से मैंने मोरारजी भाई को आगाह किया। इसके बाद मैं मुम्बई चला गया। मैं विधायक निवास में ठहरा हुआ था। शरद पवार के यहां रात्रि-भोजन के लिए गया था, सूचना वहीं मिली कि इंदिरा जी को गिरफ्तार कर लिया गया।
क्या बोले थे मोरारजी?
चंद्रशेखर लिखते हैं कि दिल्ली पहुंचने पर सीधे मोरारजी भाई के यहां गया और उनसे पूछा कि यह कैसे हो गया? आपने तो यह कहा था कि इंदिरा जी को गिरफ्तार करने का कोई फैसला नहीं है? उनका कहना था कि फैसला गृहमंत्री जी का है, पर मैंने फाइल देख ली है। मैंने जब आरोप की जानकारी चाही तो उन्होंने कहा कि आर. पी. गोयनका से उन्होंने दो सौ जीपें ली हैं। मैंने कहा, चार जीपें तो गोयनका जी ने मेरे पास भी भेजी थीं। इसमें क्या अपराध बनता है? दूसरा आरोप किसी विदेशी कम्पनी को ठेका देने का था। जिसका टेंडर दूसरे देश की कंपनी से शायद दस करोड़ अधिक था। मैं उनकी बात सुनकर हैरान रह गया।
दूसरे दिन मजिस्ट्रेट ने बिना जमानत लिए इंदिरा जी को रिहा कर दिया। उस दिन किसी मंत्री के यहां केंद्रीय मंत्रिमंडल की अनौपचारिक मीटिंग थी, उसमें मैं भी आमंत्रित किया गया था। मीटिंग के बीच से बार-बार चौधरी साहब बाहर जाकर यह पता लगा रहे थे कि उस केस में इंदिरा जी का क्या हुआ। एक बजे जब वे फिर गए और लौटकर आए तो बहुत उदास थे। उन्होंने कहा कि मजिस्ट्रेट ने बिना जमानत लिए इंदिरा गांधी को रिहा कर दिया।