सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को भारतीय चुनाव आयोग (ECI) से उन आरोपों की जांच करने को कहा कि केरल में मॉक पोल के दौरान ईवीएम में भाजपा के पक्ष में अतिरिक्त वोट दर्ज किए गए थे। हालांकि, चुनाव निकाय ने कहा कि आरोप झूठे थे। यह मामला सुप्रीम कोर्ट के ध्यान में तब लाया गया जब एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने केरल के कासरगोड में किए गए मॉक पोल के संबंध में उठाई गई शिकायतों पर एक मीडिया रिपोर्ट का हवाला दिया। आइये जानते हैं क्या है पूरा मामला।

केरल में मॉक पोल के दौरान EVM से निकली भाजपा उम्मीदवार की पर्ची

केरल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने गुरुवार को कहा कि कासरगोड लोकसभा सीट पर मॉक पोल के दौरान इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) से भाजपा उम्मीदवार को अतिरिक्त वोट मिलने की कोई भी खबर निराधार है। दरअसल, केरल में 26 अप्रैल को होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले ईवीएम की कमीशनिंग के हिस्से के रूप में बुधवार को कासरगोड में मॉक पोल आयोजित किया गया था। ईवीएम की प्रारंभिक जांच के बाद उन्हें मॉक पोल के लिए लाया गया था। जब मॉक पोल के लिए मशीनें चालू की गईं तो कथित तौर पर भारतीय जनता पार्टी के प्रतीक के साथ अतिरिक्त वीवीपैट पर्चियां बाहर आईं।

सुप्रीम कोर्ट में उठा मुद्दा

रिपोर्ट में बताया गया है कि केरल में सत्तारूढ़ लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) और यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) ने जिला कलेक्टर के पास शिकायत दर्ज कराई है कि चार ईवीएम में गलती से भाजपा के पक्ष में अतिरिक्त वोट दर्ज हो गए हैं। बार और बेंच के अनुसार, भूषण ने रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा, “केरल के कासरगोड में एक मॉक पोल हुआ था। चार ईवीएम और वीवीपैट में बीजेपी के लिए एक अतिरिक्त वोट रिकॉर्ड किया जा रहा था।” इसके बाद अदालत ने ईसीआई के वकील को इस मुद्दे पर गौर करने का निर्देश दिया। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने चुनाव के दौरान ईवीएम के माध्यम से डाले गए प्रत्येक वोट का वीवीपीएटी पर्चियों के साथ सत्यापन करने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान मौखिक निर्देश पारित किया।

CEO ने कहा सेफ हैं सभी मशीनें

CEO संजय कौल ने कासरगोड जिला कलेक्टर इम्ब्रकर के की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि इन वीवीपैट पर्चियों पर “गिनने योग्य नहीं” का मैसेज लिखा हुआ था, जो अन्य वीवीपैट पर्चियों की तुलना में अधिक लंबे थे। उन्होंने कहा कि पर्चियों पर ‘standardisation done’ भी लिखा हुआ था। अधिकारी ने कहा कि इन सबसे यह साफ होता है कि ये पर्चियां, प्रारंभिक जांच पर्चियां थीं जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि मशीनें मानकों के अनुसार काम कर रही हैं। उन्होंने कहा कि राज्य में लोकसभा चुनाव में इस्तेमाल होने वाली सभी वोटिंग मशीनें पूरी तरह से सुरक्षित और एरर फ्री हैं और किसी भी आशंका की कोई गुंजाइश नहीं है।

भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) के इंजीनिय जो ईवीएम सेट कर रहे थे, उन्होंने कलेक्टर को समझाया कि कुछ मशीनों को स्टैंडर्ड पर्चियों की छपाई पूरी होने से पहले कमीशनिंग के लिए ले जाया गया था और यही कारण है कि जब ईवीएम को कमीशनिंग के लिए चालू किया गया था, बाकी पर्चियां बाहर आ गईं। कलेक्टर ने कहा कि प्रक्रिया वीडियो पर थी और उस मुद्दे को राजनीतिक दलों को पर्याप्त रूप से समझाया गया था।

Election Commission क्‍यों नहीं करता सौ फीसदी VVPAT पर्चियों की गिनती?

पिछले कुछ सालों से यह सवाल कई बार उठाया जाता है कि वीवीपैट की सभी पर्चियों को ना गिनकर, किन्हीं पांच पोलिंग बूथ की वीवीपैट पर्चियों को ही क्यों गिना जाता है? चुनाव आयोग ने इसका जवाब सुप्रीम कोर्ट में दायर एक दस्तावेज में दिया था। दरअसल, साल 2018 में चुनाव आयोग ने भारतीय सांख्यिकी संस्थान (ISI) से “गणितीय रूप से सही, सांख्यिकीय रूप से ठोस और व्यावहारिक रूप से पर्याप्त” एक सैंपल साइज की मांग की ताकि EVM द्वारा डाले गए वोटों के साथ VVPAT पर्चियों की ऑडिट की जा सके। पूरी खबर पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें-

मॉक पोल क्या होता है?

मॉक पोल के दौरान, हर उम्मीदवार के नाम के बटन को रैंडम तरीके से कम से कम तीन बार दबाया जाता है। इस दौरान NOTA का बटन भी दबाकर चेक किया जाता है। चाहे प्रत्याशियों की संख्या कितनी भी हो, हर पोल में कम से कम पचास मॉक पोल होते हैं। यह बटन पोलिंग एजेंट द्वारा दबाया जाता है और अगर एजेंट उपलब्ध नहीं है तो मतदान अधिकारी बटन दबाकर मॉक पोल करते हैं। अगर ईवीएम का बटन दबाने पर बीप की आवाज नहीं आती है तो ईवीएम बदल दी जाती है।

मॉक पोल के बाद, संबंधित पोलिंग स्टेशन पर पीठासीन अधिकारी दो प्रतियों में पोल का प्रमाण पत्र तैयार कर उस पर वहां मौजूद पोलिंग एजेंटों के हस्ताक्षर होंगे। अगर कोई माइक्रो आब्जर्वर नियुक्त होता है, तो उसका भी हस्ताक्षर लिया जाता है। हर पोलिंग स्टेशन से सेक्टर ऑफिसर मॉक पोल प्रमाण पत्र की प्रति लेंगे। इस पूरी प्रक्रिया को रिटर्निंग अफसर की निगरानी में किया जाएगा।

क्यों किया जाता है मॉक पोल?

पिछले कुछ सालों में ECI ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए कई उपाय किए हैं। उदाहरण के लिए, पहले आम चुनावों से लेकर आज तक, मतदान अधिकारी प्रतिरूपण को रोकने के लिए मतदाताओं की उंगलियों पर न मिटने वाली इंक लगाते हैं। आयोग ने टेक्नोलॉजी को भी अपनाया है, एक ऐप लॉन्च किया है जो नागरिकों को हाल के वर्षों में चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन की रिपोर्ट करने की सहूलियत देता है।

ऐसे में लोकसभा चुनावों को विवादों से दूर रखने के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए, निर्वाचन आयोग ने मतदान शुरू होने से पहले मॉक पोल कराता है। आयोग हर चुनाव से पहले मॉक पोल कराता है, इससे ईवीएम में किसी भी तरह की खराबी या गड़बड़ी का पता लगाकर उसे बदला जा सकेगा। मॉक पोल के समय प्रत्याशियों के कम से कम दो पोलिंग एजेंट तय समय पर वहां उपस्थित रहते हैं। साथ ही, पीठासीन अधिकारी द्वारा इसका उल्लेख प्रमाण पत्र पर किया जाता है। पोल के दौरान बैलेट यूनिट मतदान कंपार्टमेंट में और कंट्रोल यूनिट पीठासीन अधिकारी की मेज पर होती है। इसके अलावा, कम से कम दो मतदान अधिकारी और सभी पोलिंग एजेंट वोटिंग कंपार्टमेंट में मौजूद रहते हैं।

EVM and VVPAT : क्या है VVPAT और कैसे काम करता है?

VVPAT इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) की बैलट यूनिट से जुड़ा होता है। सरल भाषा में कहें तो यह एक ड्रॉप बॉक्स वाले प्रिंटर होता है। यह मतदाताओं को उनके द्वारा चुने गए विकल्प का विज़ुअल दिखाता है। साथ ही, उस विजुअल को एक पेपर स्लिप पर प्रिंट भी करता है। स्लिप पर उम्मीदवार का सीरियल नंबर, नाम, और पार्टी का सिंबल होता है। ईवीएम के माध्यम से वोट डालते ही, यह स्लिप पहले वीवीपैट के सामने लगी एक कांच की विंडो में नजर आता है। वोटर के पास सात सेकंड का टाइम होता है, जिस दौरान वे वोट की सत्यता की जांच कर सकते हैं। सात सेकंड बाद स्लिप नीचे बने कम्पार्टमेंट में गिर जाती है।

मतदान से ठीक पहले किस तरह की होती है तैयारी? जानिए वोटिंग से लेकर EVM को स्ट्रांग रूम तक पहुंचाने की प्रक्रिया पूरी खबर पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें-