राज्यसभा के सांसद कार्तिकेय शर्मा ने कहा कि हम व्यवस्था तभी बदल सकते हैं, जब खुद व्यवस्था का हिस्सा होते हैं। उनका आरोप है कि कांग्रेस के पूर्व युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने देश की उन उम्मीदों को पूरा नहीं किया, जिनके लिए उन्हें 414 सीटें मिली थीं। उन्होंने कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकारों पर चीन के मामले में पिछड़ जाने का आरोप लगाया। वोट चोरी के मुद्दे पर उन्होंने सुप्रिया सुले और उमर अब्दुल्ला के बयानों की मिसाल देते हुए कहा कि यह पूरे विपक्ष का नहीं एक खास राजनीतिक दल का आरोप भर है। नीतीश कुमार के हिजाब प्रकरण पर उन्होंने कहा कि इस मसले का राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए। नई दिल्ली में कार्तिकेय शर्मा के साथ कार्यकारी संपादक मुकेश भारद्वाज की बातचीत के चुनिंदा अंश।
आप राजनीति में युवावस्था में आए। आपने अपनी राजनीतिक पहचान में किसी दलीय निशान की जरूरत भी नहीं समझी। क्या सोच रही इसके पीछे?
कार्तिकेय शर्मा: मैं किसी योजनाबद्ध तरीके से राजनीति में नहीं आया। हां, राजनीतिक पृष्ठभूमि थी। मेरे पिता राजनीति में रहे। माताजी हैं। बचपन से राजनीति देखता और समझता आया हूं, और इसका महत्त्व समझता हूं। इंग्लैंड से पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं सोचता था कि राजनीति में आए बगैर सार्वजनिक मंच पर काम किया जा सकता है। इसके लिए मैंनेजनसंचार का माध्यम चुना। संयोग से ऐसा अवसर आया कि कांग्रेस पार्टी ने राज्यसभा के लिए अजय माकन को उतारा, जो हरियाणा नहीं, दिल्ली के थे। मुझे इस बात का अहसास हुआ कि अगर आप व्यवस्थागत बदलाव लाना चाहते हैं, तो आपको व्यवस्था का हिस्सा बनना पड़ेगा। आप व्यवस्था के बाहर से टिप्पणी कर सकते हैं, व्यवस्था को बदल नहीं सकते हैं। तभी मैंने फैसला किया कि बाहरी टिप्पणीकार होने के बजाय व्यवस्था का हिस्सा बनना चाहिए।
व्यवस्था का हिस्सा बने आपको साढ़े तीन साल हो गए हैं। राजनीति की अपनी एक आभा है। आभा बनाम व्यवस्थागत बदलाव को आप कैस देखते हैं?
कार्तिकेय शर्मा: आप की बात मैं समझ रहा हूं, परिदृश्यगत बदलावों को स्वीकार भी करता हूं। पर मैं किसी तरह के आभा निर्माण की नीयत से बिल्कुल नहीं आया था, जैसा कि बता चुका हूं उसके लिए मेरे पास खुद का खड़ा किया हुआ बड़ा मंच था।
बतौर सांसद अब तक का राजनीतिक अनुभव कैसा रहा?
कार्तिकेय शर्मा: साढ़े तीन साल में सीखने का बहुत मौका मिला और जो सीखा है, उसे अलग-अलग जगहों पर इस्तेमाल भी किया। संसद में मेरी 92 फीसद उपस्थिति है। अब तक मैं सरकार से पौने तीन सौ सवाल पूछ चुका हूं। मैं 42 साल की उम्र में संसद में आया था। राज्यसभा के इतिहास में मैं सबसे कम उम्र का उपाध्यक्ष बना। आज का समय डिजिटल का है। मैंने संसद में सरकार से पूछे सारे सवाल और जवाब सोशल मीडिया पर डालने शुरू किए। इसका सकारात्मक असर रहा।
संसद में प्रवेश के लिए राज्यसभा को चोर दरवाजा माना जाता है। क्या आपको लगता है कि मुख्यधारा की राजनीति में आने के लिए लोकसभा का प्रत्यक्ष जनादेश जरूरी है?
कार्तिकेय शर्मा: मौजूदा सदन में सिर्फ दो निर्दलीय सांसद हैं, मैं और कपिल सिब्बल। मैं इसे चोर दरवाजा इसलिए नहीं कह सकता कि जब मैंने नामांकन भरा था तो मुझे नहीं पता था कि किन लोगों का समर्थन मिलेगा। मेरे मतदाता विधायक थे।
फिर भी यह तो अप्रत्यक्ष निर्वाचन ही हुआ?
कार्तिकेय शर्मा: हां, इन कारकों के साथ मैंने चुनाव लड़ा। मैं किसी पार्टी का हिस्सा नहीं था। मुझे भाजपा का समर्थन मिला, उनके पास आठ वोट थे। जजपा का समर्थन मिला, उनके पास दस वोट थे। इसके बाद भी मुझे ग्यारह से ज्यादा वोट चाहिए थे। मैं मानता हूं कि मैंने सही मायने में चुनाव लड़ा।
आप जब राज्यसभा के लिए चुने गए तो आपके साथ कई तरह के विवाद थे। इसके बावजूद आपको जो समर्थन मिला, हम उसकी वजह जानना चाहते हैं।
कार्तिकेय शर्मा: मेरे माता-पिता के राजनीतिक, सामाजिक संबंध थे। मेरे भी संबंध थे। मेरे बारे में लोगों की यही राय बनी कि पढ़ा-लिखा युवा अगर काम करने का इच्छुक है तो उसे मौका देना चाहिए। आपकी पहचान आपके अपने काम से ही बनती है। मेरे सामने खड़ा उम्मीदवार बाहर से आया था। लोगों ने मुझे मौका देना बेहतर समझा। मैं विवादों का पीछा नहीं करता। मैं यह मानता हूं कि कई लोगों ने कई कयास लगाए। अगर आप कयासों को विवाद मानते हैं तो मैं आपकी बात से सहमत हूं।
कांग्रेस के एक सांसद ने बीस साल पहले कहा था कि राज्यसभा सीट की कीमत सौ करोड़ रुपए है। क्या आपका ऐसा कोई अनुभव रहा?
कार्तिकेय शर्मा: मैं इन सांसद के बारे में बिल्कुल नहीं जानता। किसी पार्टी में होता होगा ऐसा। मैं बस इतना जानता हूं कि आप अपनी पारिवारिक, राजनीतिक, अपने कार्यों की पृष्ठभूमि में वोट मांगते हैं, और ज्यादातर फैसले इसी आधार पर होते हैं कि आप क्या हैं।
मेरे अगले दो सवाल सहसंबद्ध हैं। आज जब परिवारवाद पर सबसे बड़ा सवाल है तो आपने सगर्व अपने राजनीतिक विरासत की बात की। दूसरा विचारधारा के बदलाव का है। आपके पिता कांग्रेस में रहे, आपके परिवार में हुए एक अप्रिय हादसे के बाद उन्होंने क्षेत्रीय दल बनाया।पर आज आप राजग के गठबंधन में हैं, जिसकी अगुआई भाजपा कर रही है। इन दो तथ्यों की व्याख्या आप किस तरह करेंगे?
कार्तिकेय शर्मा: आपका सवाल मेरे संदर्भ में तब सही होता, जब मैं पढ़ाई पूरी किए बिना राजनीति में आ जाता। मैंने जनसंचार के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई। राजनीतिक परिवार होने का महत्त्व बदल भी गया है। आज के दौर में हर राजनीतिक परिवार राजनीति में सफल नहीं है। आपको फायदा सिर्फ शुरुआत भर का है। बाकी सब आपके कामकाज के प्रदर्शन पर निर्भर करता है। गलत बात तब होगी, जब बिना किसी आधार के एक परिवार और उसी परिवार की पीढ़ियां राजनीतिक व्यवस्था पर काबिज हो जाएं।
आप राहुल गांधी की बात कर रहे हैं?
कार्तिकेय शर्मा: आप समझ रहे हैं।
राजनीति के मैदान में आपके पिता की छवि रणनीतिकार सरीखी थी। आपकी माता शक्ति रानी शर्मा भाजपा से विधायक हैं। क्या भविष्य में आप भी भाजपा का हिस्सा हो सकते हैं, या ऐसी स्थिति करीब ही है?
कार्तिकेय शर्मा: मेरी माताजी अंबाला की प्रत्यक्ष चुनी गई मेयर रही हैं और अभी भाजपा की सक्रिय विधायक हैं। मैं राजग का हिस्सा हूं और वैचारिक रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों के साथ हूं। क्या इससे पहले किसी प्रधानमंत्री ने यह हिम्मत दिखाई कि भारत विकसित देशों में शुमार हो सकता है? अभी तक तो हम रोटी, बिजली, पानी और सड़क से आगे नहीं निकल पाए हैं। इंग्लैंड में पढ़ाई के दौरान मुझे अहसास हुआ कि भारत को सपेरों का देश कहा जाता है और इसे दुनिया में सबसे ज्यादा खुले में शौच करने वाले देश की संज्ञा दी जाती है। प्रधानमंत्री की कई उपलब्ध्यिों में स्वच्छता अभियान है।
शौचालय तो बन गए, लेकिन कई जगहों पर शिकायत है कि उनमें पानी नहीं है।
कार्तिकेय शर्मा: शौचालय बन गए तो पानी भी आएगा। आ भी रहा है। हो सकता है, हर घर नल की योजना बाद में आई, शौचालय पहले बन गए। सबसे अहम यह है कि नागरिकों व खास कर महिलाओं की गरिमा को ध्यान में रख कर शौचालय बने।
अभी बांग्लादेश में जेन-जी का आंदोलन हुआ। अन्य वैश्विक परिदृश्यों में भी युवाओं का असंतोष उफान पर है। इन हालात के बरक्स बिहार में मुख्यमंत्री मुसलिम महिला का हिजाब उतारने की कोशिश करते हैं। राजनीतिक परिदृश्यों के इस समुच्चय की व्याख्या आप कैसे करेंगे?
कार्तिकेय शर्मा: इस घटना को अशोक गहलोत की घटना से जोड़ कर देखा जाना चाहिए, जब उन्होंने एक महिला का घूंघट उठा कर कहा था कि हमारे यहां यह प्रथा नहीं है। आपको यह अहसास होगा कि किन मुद्दों का राजनीतिकरण किया जा रहा है। आप यह जानेंगे कि क्या सही है, क्या गलत है। मैं मानता हूं कि दोनों ही सही नहीं हैं, लेकिन हमें इन चीजों से ऊपर उठ कर इसके राजनीतिकरण से बचना होगा। भारत युवाओं का देश है। मेरे पास कई विदेशी संस्थानों के युवा शोध के लिए आते हैं। एक ने पूछा कि आपके यहां नेता प्रतिपक्ष अपेक्षाकृत युवा हैं, लेकिन युवाओं का आकर्षण देश के प्रधानमंत्री के लिए है। ऐसा क्यों है? मैंने कहा, ऐसा इसलिए है क्योंकि आज भारत के अंदर ऐसी व्यवस्था बनी है जहां चाय बेचनेवाला भारत का प्रधानमंत्री बन सकता है। सफलता से बड़ा आकर्षण कुछ भी नहीं है। भारत के युवाओं को ऐसे असली नायक चाहिए, जो उनके लिए सफलता की कहानियां लाएं। जो उन्हें इस बात का भरोसा दे सकते हैं कि उनके बीच में से कोईभी इस देश का प्रधानमंत्री बन सकता है। अगर 45 साल के नेता भाजपा के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष बने हैं तो इससे अच्छी बात क्या हो सकती है?
भावार्थ यह भी हो सकता है कि एक प्रतीकात्मक व्यक्ति को नेतृत्व दे दिया जाए तो जेन-जी की बेरोजगारी जैसी समस्या हल हो जाएगी?
कार्तिकेय शर्मा: मैंने प्रतीकात्मक शब्द का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं किया। यह शब्द आपका है। मैंने पीढ़ीगत अंतर की बात की, तब ज्यादा संवाद होता है।
आरोप है कि देश की समस्याओं पर संवाद करने से ज्यादा हिंदु-मुसलिम विमर्श में उलझा दिया जाता है।
कार्तिकेय शर्मा: मैं इससे असहमत हूं। आप केंद्र सरकार की किसी भी एक योजना के बारे में बता दीजिए जिसमें हिंदू-मुसलिम के हिसाब से भेदभाव किया जा रहा हो। 1979 में अमेरिका की ‘लुक ईस्ट’ नीति थी, वह चीन का महत्त्व समझ रहा था।पर भारत बेपरवाह रहा। वह भी तब, जब 1984 के बाद 414 सीटों का जनादेश था। देश के हर क्षेत्र ने युवा प्रधानमंत्री के रूप मेंराजीव गांधी को चुना था। उम्मीद थी कि कंप्यूटर व डिजिटल क्रांति की बदौलत विश्व-पटल पर भारत को अपनी जगह मिलेगी।लेकिन हुआ क्या? शाहबानो केस, रामजन्मभूमि का राजनीतिकरण। मंडल-कमंडल का दौर आ गया। 1984 से 1989 का समय जो एक युवा प्रधानमंत्री के हवाले था, हमने सोचा था कि जिन चीजों से वंचित रह गए वो पा लेंगे। जातिवाद से लेकर तुष्टीकरण का सबसे बड़ा दौर तो 1984 से लेकर 1989 तक का था। अगर आप आतंकवाद पर लगाम नहीं लगाएंगे तो विकास प्रभावित होगा।
आतंकवाद का दुष्प्रभाव तो अभी भी दिख ही रहा है।
कार्तिकेय शर्मा: बहुत कम। एक सुरक्षा का माहौल बन चुका है।गुजरात माडल के तहत पूरे देश में काम शुरू हुआ। आज भारत दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है।
राजग की राजनीति इतिहास पर टिकी है। आपने भी नीतीश कुमार के बरक्स अशोक गहलोत का उदाहरण दिया। कांग्रेस का गलत, आपके गलत को सही ठहराने की वजह कैसे बन सकता है?
कार्तिकेय शर्मा: मैं किसी चीज को सही-गलत नहीं कह रहा। मैं कह रहा हूं कि इसका तुष्टीकरण व राजनीतिकरण करना गलत है।
विपक्ष का आरोप है कि भाजपा चुनाव जीत नहीं रही, चुनाव का प्रबंधन कर रही है।
कार्तिकेय शर्मा: राकांपा की नेता सुप्रिया सुले ने कहा कि मुझे ईवीएम से कोई दिक्कत नहीं है, मैं उसी से जीत कर आई हूं। उमर अब्दुल्ला ने भी यही बात कही। यह आरोप विशेष दल का है, पूरे विपक्ष का नहीं। न खाता न बही, जो मैंने कहा, वही सही।
आप सीताराम केसरी की बात कर रहे हैं।
कार्तिकेय शर्मा: आप इतिहास में जा रहे हैं तो मैं भी इतिहास की ही बात कर रहा हूं।
भाजपा पर आरोप है कि वह हर जगह अपना प्रभुत्व चाहती है। पंजाब विश्वविद्यालय के सीनेट चुनाव में ऐसा दिखा और विद्यार्थियों ने विरोध किया। चंडीगढ़ पर भी केंद्रीय प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश हुई। ऐसा क्यों?
कार्तिकेय शर्मा: मैं चंडीगढ़ का बाशिंदा हूं। इस विवाद को सुनते हुए बड़ा हुआ हूं। मैं मानता हूं कि चंडीगढ़ के ऊपर हरियाणा का भी उतना ही हक है, जितना पंजाब का है। जो भी सरकार में होता है, अपने विवेक से इन मुद्दों का समाधान करने की कोशिश करता है।
क्या चंडीगढ़ को केंद्रशासित प्रदेश रहना चाहिए।
कार्तिकेय शर्मा: मेरे विचार से रहना चाहिए, क्योंकि यह दोनों राज्यों की राजधानी है। चंडीगढ़ पर न तो कभी पंजाब अपना दावा छोड़ेगा और न ही हरियाणा पीछे हटेगा।
आपके पिता व परिवार की मुकम्मल राजनीतिक पहचान थी। जब वे राजनीति के शिखर पर थे तो एक अप्रिय घटना ने उन्हें राजनीतिक अवसान पर ला दिया। आज, आप कैसे देखते हैं उस गुजरे हुए समय को?
कार्तिकेय शर्मा: वह एक दुर्भाग्यपूर्ण हादसा था। हम उस स्थिति से आगे बढ़ चुके हैं। मुझे इस पर इससे ज्यादा कुछ नहीं कहना है।
