कर्नाटक के मंगलूरु में भाजपा कार्यकर्ता प्रवीण नेट्टारू की हत्या के बाद राज्य में ‘योगी मॉडल’ की मांग होने लगी है। मंगलवार देर शाम बेल्लारे में भाजपा कार्यकर्ता की चाकू घोंपकर हत्या की गई थी। अंतिम संस्कार के दिन राज्य में जगह-जगह प्रदर्शन हुआ। पुलिस ने कई जगहों पर हालात काबू करने के लिए लाठीचार्ज किया। हंगामे के दौरान योगी आदित्यनाथ के समर्थन में नारे लगे।

हत्या के बाद भाजपा और संघ परिवार का एक वर्ग बोम्मई सरकार से काफी नाराज है। कार्यकर्ताओं का कहना था कि कर्नाटक में योगी मॉडल लागू हो। मामले को बढ़ता देख सीएम बोम्मई ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा, ”यूपी के हालात यहां से बहुत अलग हैं। वहां के लिए योगी जी बिल्कुल फिट हैं। कर्नाटक में हालात काबू करने के लिए हम हर तरीका अपना रहे हैं। अगर जरूरत पड़ी तो यहां भी हम गवर्नेंस का योगी मॉडल अपना सकते हैं।”

क्या है योगी मॉडल?

उत्तर प्रदेश में 2017 से योगी आदित्यनाथ की सरकार है। भाजपा दावा करती है कि सीएम योगी के कार्यकाल में राज्य की कानून व्यवस्था दुरुस्त हुई है। अलग-अलग मंचों से पार्टी इसी कथित उपलब्धि को योगी मॉडल कहकर प्रचारित करती है। इस मॉडल का सबसे अधिक शोर तब सुनाई देता है, जब राज्य में कानून व्यवस्था दुरुस्त करने के नाम पर मुसलमानों पर कार्रवाई होती है।

योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल के पहले ही साल में 45 लोग पुलिस एनकाउंटर में मारे गए थे, इसमें से 16 मुसलमान थे। योगी सरकार के शुरुआती तीन साल के कार्यकाल में पुलिस एनकाउंटर में मारे गए लोगों में से 37 प्रतिशत मुसलमान थे। सीएम योगी ने अपने कार्यकाल में खोज-खोज कर उन शहरों के नाम बदले हैं, जो उर्दू या अरबी के थे या जिनका संबंध किसी भी तरह से मुसलमानों से था।

ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी की ओर इशारा करने वाले गोरखपुर अस्पताल के डॉक्टर कफील खान को महीनों जेल में बंद रखा गया था। नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में भाषण देने के बाद उन पर एनएसए लगा दिया गया था। 1 सितंबर 2020  को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कफील पर लगे आरोपों को खारिज करते हुए तुरंत रिहाई का आदेश दिया था। कोर्ट ने माना था कि उन पर लगे आरोप अनुचित थे और उनका भाषण अलीगढ़ शहर की शांति और स्थिरता को खतरे में डालने वाला नहीं था।

2019 में यूपी सरकार ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले लोगों की संपत्ति जब्त कर ली थी और करीब 22.4 लाख रुपये का जुर्माना भी वसूला था। यह राशि सिर्फ 16 मामलों में वसूली गई थी। सरकार ने 875 लोगों के खिलाफ नोटिस जारी किया था, जिनसे वो 2 करोड़ जुर्माना वसूलने की फिराक में थी। फरवरी 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाते जुर्माना राशि वापस करने का निर्देश दिया था। साथ ही सभी नोटिस को भी रद्द करने को कहा था।

योगी आदित्यनाथ के पहले कार्यकाल के आखिर और दूसरे कार्यकाल की शुरुआत से बुलडोजर मॉडल भी चर्चा में है। यह योगी मॉडल का ही हिस्सा है, जिसके तहत लोगों को मकानों, दुकानों को ढाह दिया जाता है। प्रयागराज के जावेद पंप मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर ने द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में बुलडोजर की कार्रवाई को पूरी तरह गैरकानूनी बताया था। उन्होंने कहा था, ”ऐसा किया जाना पूरी तरह से अवैध है। बेशक वह निर्माण अवैध था, लेकिन करोड़ों भारतीय भी ऐसे ही रहते हैं।” बुलडोजर की कार्रवाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जजों ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को चिट्ठी लिखी है। योगी मॉडल ‘त्वरित न्याय’ की अपनी अवधारणा के लिए कुख्यात रहा है।

भाजपा कार्यकर्ता प्रवीण नेट्टारू की हत्या मामले में गिरफ्तार दो आरोपी भी मुसलमान हैं। दक्षिण कन्नड़ के पुलिस अधीक्षक ऋषिकेश भगवान सोनवणे के मुताबिक, गिरफ्तार आरोपियों की पहचान हावेरी जिले के सावनूर निवासी जाकिर (29) और बेल्लारे के मोहम्मद शफीक (27) के रूप में हुई है।

योगी मॉडल कितना सफल?

भाजपा ‘योगी मॉडल’ को दुरुस्त कानून व्यवस्था के पर्याय के रूप में प्रचारित करती है। ऐसे में राज्य के अपराध के आंकड़ों की पड़ताल करने पर ही पता चलेगा कि यह मॉडल कितना सफल है। केंद्र सरकार की एजेंसी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) 2020 की रिपोर्ट की मानें तो हत्या और अपहरण के मामले में उत्तर प्रदेश नंबर-1 है।

वर्ष20172020
हत्या4,3243,779
अपहरण19,92112,913
सोर्स- नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो

साल 2020 में हत्या और अपहरण का राष्ट्रीय औसत कम हुआ था लेकिन उत्तर प्रदेश का बढ़ा था। रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 में देश में कुल 29,193 मर्डर हुए थे, इसमें से 3,779 हत्याएं यूपी में हुईं थी। इसी साल राज्य में अपहरण की 12,913 वारदातों को अंजाम दिया गया।

योगी आदित्यनाथ की सरकार में उत्तर प्रदेश कस्टोडियल डेथ के लिए बदनाम हुआ है। केंद्र सरकार ने मंगलवार को संसद में बताया है कि 2020-21 में यूपी में 451 लोगों की मौत पुलिस हिरासत में हुई थी, 2021-22 में यह संख्या बढ़कर 501 हो गई। यह संख्या देश के किसी दूसरे राज्य में हुए कस्टोडियल डेथ से अधिक है।

राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 से 2021 के बीच देश में पुलिस और न्यायिक हिरासत में 5,569 लोगों की जान गई थी, इसमें से करीब 23% यानी 1318 लोगों की मौत उत्तर प्रदेश में हुई थी।

इसी तरह मानवाधिकार उल्लंघन के मामले में भी उत्तर प्रदेश नंबर-1 है। राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट के हवाले से केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 8 दिसंबर 2021 को राज्यसभा में आंकड़ा पेश किया था। उन आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश 2018 से 2021 तक यानी लगातार तीन वर्षों तक मानवाधिकार उल्लंघन के मामले में शीर्ष राज्य रहा है।

NCRB के आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में दलितों के खिलाफ सबसे अधिक अपराध होता है। 2018 से 2020 तक यूपी में अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध का आंकड़ा क्रमशः 11924, 11829 और 12714 रहा है। हाल में इसकी जानकारी राज्य मंत्री (गृह) अजय कुमार मिश्रा ने संसद में भी दी है।

जनसत्‍ता स्‍पेशल स्‍टोरीज पढ़ने के ल‍िए क्‍ल‍िक करें। अगर क‍िसी मुद्दे को व‍िस्‍तार से समझना है तो Jansatta Explained पर क्‍ल‍िक करें।