पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और राज्यसभा सदस्य रंजन गोगोई के एक बयान पर घमासान मच गया है। दिल्ली सर्विस बिल पर बोलते हुए गोगोई ने संविधान के मूल ढांचे के सिद्धांत पर सवाल उठाए थे। 8 अगस्त को जब 370 पर सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में गोगोई के इस बयान का जिक्र किया तो CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने उन्हें टोक दिया।

कपिल सिब्बल ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 5 जजों की संविधान पीठ के सामने सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा, ‘आपके एक सहकर्मी ने तो यहां तक कहा कि संविधान की बेसिक स्ट्रक्चर थ्योरी भी संदेहास्पद है…’। हालांकि सिब्बल ने गोगोई का नाम नहीं लिया लेकिन चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने फौरन उन्हें टोक दिया। CJI ने जवाब देते हुए कहा- ‘मिस्टर सिब्बल, अगर आप किसी सहकर्मी का जिक्र कर रहे हैं तो ऐसा सहकर्मी हो जो वर्तमान में भी हमारे साथ काम कर रहा हो… यहां से रिटायर होने के बाद हम जो कुछ कहते हैं वह हमारी व्यक्तिगत राय होती है…’।

SG मेहता ने ली चुटकी

सिब्बल ने आगे कहा-‘लेकिन मैं आश्चर्यचकित हूं…’। इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सिब्बल को टोकते हुए कहा, ‘इस कोर्ट में जो कुछ भी होता है, संसद में उस पर चर्चा नहीं होती है। इसलिए कोर्ट को भी संसद में होने वाली चर्चाओं से दूर रहना चाहिए। मेहता ने कहा कि रंजन गोगोई को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है और अपनी बात रखने के लिए स्वतंत्र हैं। उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि चूंकि सिब्बल कल (7 अगस्त को) संसद में मौजूद नहीं थे, इसलिये संसद की कार्यवाही की यहां चर्चा कर रहे हैं।

रंजन गोगोई ने राज्यसभा में क्या कहा?

पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई 7 अगस्त को राज्यसभा में दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी सरकार (संशोधन बिल 2023) के पक्ष में अपनी बात रख रहे थे। साल 2020 में राज्यसभा के लिए नामित होने के बाद गोगोई का यह पहला संबोधन था। रंजन गोगोई ने कहा ‘हो सकता यह (कानून) मुझे पसंद न हो लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि ये मनमानी है। क्या इससे संविधान के मूल विशेषताओं का उल्लंघन हो रहा है? भारत के पूर्व सॉलिसीटर जनरल अंध्यअरिजुना ने केशवानंद भारती केस पर एक किताब लिखी है। उस किताब को पढ़ने के बाद मेरी राय है कि संविधान के मूल ढांचे पर बहस हो सकती है और ये बहस का विषय है। इसका क़ानूनी आधार भी है’।

CJI रहते कुछ और स्टैंड था

उदाहरण 1- रंजन गोगोई ने राज्यसभा में संविधान के मूल ढांचे को लेकर अब जो कहा है, चीफ जस्टिस रहते उनकी राय इससे बिल्कुल उलट थी। तमाम जजमेंट में तो संविधान की इसी बुनियादी संरचना सिद्धांत का हवाला दिया था। साल 2019 में रंजन गोगोई की अगवाई वाली पांच जजों की बेंच ने ‘रोजर मैथ्यू बनाम भारत सरकार’ केस में संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर के उल्लंघन का हवाला देते हुए प्राधिकरणों के पुनर्गठन से जुड़ा कानून रद्द कर दिया था।

उदाहरण 2- इसी तरह साल 2019 में ही जस्टिस गोगोई की अगुवाई वाली पांच जजों की एक अन्य बेंच ने संविधान की मूलभूत संरचना सिद्धांत का हवाला देते हुए चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया के ऑफिस को आरटीआई के दायरे में लाने का फैसला दिया था।