ज्योतिरादित्य सिंधिया वर्तमान में भाजपा सदस्य, मध्य प्रदेश से राज्यसभा सांसद और मोदी सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री हैं। सिंधिया पिछले 22 साल से राजनीति में सक्रिय हैं। हालांकि वह खुद बताते हैं कि कॉलेज की पढ़ाई के दौरान उन्होंने राजनीति में आने के बारे में सोचा भी नहीं था। भारतीय राजनीति में उनका पदार्पण एक आकस्मिक घटना से हुई थी।

बिजनेस प्लान पर काम कर रहे सिंधिया कैसे बने नेता?

जनसत्ता डॉट कॉम के संपादक विजय कुमार झा से बातचीत में सिंधिया बताते हैं, “मैंने कभी नहीं सोचा था कि राजनीति में आऊंगा। मैंने अपने लिए अलग रास्ता चुना था। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से एम.बी.ए. करने के दौरान मैंने एक टीम बनाई थी। उस टीम ने एक बिजनेस प्लान कंपटीशन में भाग लिया था। यह हमारे एक कोर्स का हिस्सा था, जिसमें हमें बहुत अच्छे नंबर मिले थे। मैं अपनी टीम के साथ मिलकर, अपने बिजनेस प्लान को साकार करने में जुट गया था। मैं अगस्त महीने में बिजनेस के लिए जगह देखने भारत आया था। हम अपना बिजनेस बेंगलुरु और मुंबई लगाना चाहते थे। लेकिन नसीब को कुछ और मंजूर था। सितंबर में मेरे पिता गुजर गए और पूरी जिंदगी बदल गई। फिर मैं जनसेवा के पथ पर निकल गया।”

जब पिता माधवराव सिंधिया की विमान दुर्घटना में मृत्यु हुई, तब ज्योतिरादित्य सिंधिया केवल 31 वर्ष के थे। उनके पिता संसद के निचले सदन में गुना निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते थे।

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सिंधिया के स्कूल के दिन

भारत के सबसे युवा मंत्रियों में से एक ज्योतिरादित्य सिंधिया, ग्वालियर की मराठा रियासत के अंतिम शासक दिवंगत महाराजा जीवाजीराव सिंधिया के पोते हैं। उनका जन्म 1 जनवरी, 1971 को मुंबई में हुआ था।

सिंधिया की स्कूली पढ़ाई मुंबई के चैंपियन स्कूल और देहरादून के द दून स्कूल से हुई है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में दून स्कूल में उनके पूर्व हाउस मास्टर सुमेर सिंह के हवाले से बताया गया है कि कैसे राजपरिवार का यह लड़का अपनी धन, संपत्ति और विशेषाधिकारों से अंजान था। बकौल सिंह, “जब वह मेरे घर आता था, तो सिंक में रखे गंदे बर्तन भी धोता था। मेरे कार्यालय में वह अक्सर मेरी मेज पर रखे कलमों को छांटता रहता था।”

सिंधिया परिवार के बच्चे ‘सिंधिया स्कूल’ में पढ़ा करते थे, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया को द दून स्कूल भेजा गया। सिंधिया स्कूल की स्थापना उनके दादा जीवाजीराव ने 1897 में की थी। जीवाजीराव ने इस स्कूल को भारत के कुलीनों और राजकुमारों के बेटों के लिए बनवाया था। बहुत बाद में ज्योतिरादित्य सिंधिया, ‘सिंधिया स्कूल’ के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष पद पर रहे।

अपनी जिद से हार्वर्ड गए थे सिंधिया

स्कूल के दिनों में सिंधिया का मन खेल से अधिक पढ़ाई में लगता था। परिवार में उन्होंने पहला विद्रोह स्कूल खत्म होने के दौरान किया। ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता उन्हें ऑक्सफोर्ड भेजना चाहते थे। लेकिन सिंधिया हार्वर्ड जाना चाहते थे। सुमेर सिंह कहते हैं, “ज्योतिर मेरे पास आया और कहा कि मैं हार्वर्ड जाना चाहता हूं, ऑक्सफोर्ड नहीं। वह हमेशा अपने पिता को प्रभावित करना चाहता था क्योंकि वह उसकी बहुत प्रशंसा करते थे। जब वह हार्वर्ड गया, तो उसके पिता ने मुझे फोन करके कहा कि उन्हें खुशी है कि उनका बेटा अपने फैसले खुद ले रहा है।” सिंधिया ने 1993 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन किया था।

सिंधिया ने 2001 में स्टैनफोर्ड ग्रेजुएट स्कूल ऑफ बिजनेस से एम.बी.ए. पूरा किया। उनकी शादी 12 दिसंबर 1994 को शाही गायकवाड़ मराठा परिवार की बेटी एच.एच. प्रियदर्शनी राजे सिंधिया से हुई थी। उनका एक बेटा और एक बेटी है।

राजनीति में आने से पहले

राजनीति में आने से पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मुंबई के मॉर्गन स्टेनली और मेरिल लिंच में एक इन्वेस्टमेंट बैंकर के रूप में काम किया था। इसके अलावा सिंधिया यूएन इकोनॉमिक डेवलपमेंट सेल में इंटर्न भी रह चुके हैं।