गुजरात के पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट से जुड़े एक मामले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एमआर शाह मौजूद रहेंगे। जस्टिस शाह ने मामले से हटने की दलील को ठुकराते हुए कहा कि 10 साल पहले दिए गए किसी फैसले को इसकी वजह नहीं बना सकते हैं। संजीव भट्ट ने 1990 के कस्टोडियल डेथ के मामले में गुजरात हाईकोर्ट से मिली सजा को चुनौती दी है। वो इस मामले में अतिरिक्त साक्ष्य पेश करना चाहते हैं।

संजीव भट्ट के वकील ने इस आधार पर जस्टिस शाह के इस केस से हटने की मांग की थी कि वो गुजरात हाईकोर्ट के जज रहते हुए इस मामले की सुनवाई से जुड़े थे। जस्टिस शाह और जस्टिस सीटी रवि कुमार की बेंच ने संजीव भट्ट के वकील को Adjournment देने से इनकार करते हुए कहा कि वो दस साल पहले किसी फैसले को उनके केस से हटने का आधार नहीं बना सकते। जस्टिस शाह का कहना था कि वो केस से नहीं हटने जा रहे। गुजरात सरकार की तरफ से पेश हुए एडवोकेट आत्माराम नादकर्णी ने कहा कि सरकार ने भी इस तरह की मांग का विरोध किया है।

संजीव भट्ट को गुजरात के जामनगर की सेशन कोर्ट ने प्रभूदास नामके शख्स की मौत के मामले में उम्र कैद की सजा सुनाई थी। आरोप है कि प्रभूदास से पुलिस कस्टडी में सिट अप्स लगवाई गई थीं। इसी वजह से प्रभूदास की मौत हुई। हालांकि संजीव भट्ट ने ट्रायल कोर्ट में एक मेडिकल रिपोर्ट देकर दावा किया कि प्रभूदास की मौत सिट अप्स लगवाने की वजह से नहीं हुई थी। लेकिन ट्रायल कोर्ट ने दलील को मानने से मना कर दिया।

गुजरात हाईकोर्ट ने 2022 में भट्ट की याचिका को किया था खारिज

रिटायर्ड आईपीएस ने सीआरपीसी के सेक्शन 391 के तहत गुजरात हाईकोर्ट में अतिरिक्त एविडेंस जमा कराने की अपील दी। लेकिन 2022 में हाईकोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया। उसके बाद भट्ट की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई गई है। ध्यान रहे कि 2011 में गुजरात दंगों को लेकर भट्ट ने सीधे सूबे के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी पर आरोप लगाया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की तरफ से गठित स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम ने उनके आरोपों को खारिज कर दिया।