26 जून 1916…वो तारीख जब ग्वालियर के पूर्व महाराजा जीवाजी राव सिंधिया (Jiwajirao Scindia) का जन्म हुआ। जीवाजी, अभी महज 9 साल के थे तभी पिता माधो राव सिंधिया का साया सिर से उठ गया। पिता की मौत के बाद जीवाजी राव को सिंधिया राजघराने का वारिस बनाया गया और साल 1936 में जब बालिग हुए तो गद्दी संभाली। जीवाजी राव सिंधिया की, आजादी के वक्त तमाम देशी रियासतों का भारत में विलय कराने में महत्वपूर्ण योगदान है।

खुद जीवाजी राव सिंधिया, उन 5 राजाओं में शुमार थे, जिन्होंने सबसे पहले अपनी रियासत का भारत में व‍िलय किया था। वीपी मेनन अपनी किताब ‘स्टोरी ऑफ द इंटीग्रेशन ऑफ इंडियन स्टेट्स’ में लिखते हैं कि ग्वालियर के महाराजा जीवाजी राव ने न सिर्फ सबसे पहले ग्वालियर के विलय का ऐलान किया, बल्कि तमाम दूसरी रियासतों की भारत में विलय में भी मदद की।

मेनन लिखते हैं कि जीवाजी राव ने दिसंबर 1946 में ऐलान कर दिया था कि वह एक जिम्मेदार सरकार के साथ खड़े रहेंगे और आजादी से 3 महीने पहले मई 1947 में ही आंतरिक सरकार और संविधान सभा को समर्थन की घोषणा की थी। यह एक तरीके से सरकार, विशेषकर सरदार पटेल के लिए राहत की बात थी। क्योंकि रियासतों के एकीकरण का जिम्मा पटेल के ही कंधों पर था।

जीवाजी राव की जयंती पर पोते ज्‍योत‍िराद‍ित्‍य स‍िंंध‍िया ने भी उनके इस योगदान को एक ट्वीट के जर‍िए याद क‍िया। बता दें क‍ि ज्‍योत‍िराद‍ित्‍य इन द‍िनों मोदी सरकार में मंत्री हैं और नागर‍िक उड्डयन जैसा अहम मंत्रालय संभाल रहे हैं।

54 करोड़ रुपये दिये थे दान

15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ तो करीब 500 देशी रियासतों ने पंडित नेहरू की अगुवाई वाली सरकार को भारत के विकास के लिए 74 करोड़ रुपये दान दिए। दूसरी तरफ ग्वालियर राजघराने के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया ने अकेले 54 करोड़ रुपए दान दिए थे। यही नहीं, उन्होंने सरकारी दफ्तर बनाने के लिए तमाम बेशकीमती बिल्डिंग और जमीन भी दान दी थी।

संसद में लगवाई थी पटेल की फोटो

आजादी के बाद देश की संसद में तमाम स्वतंत्रता सेनानियों की तस्वीरें लगाई गईं, जिसमें सरदार पटेल का चित्र भी शामिल है। बहुत कम लोग जानते हैं कि संसद में वल्लभभाई पटेल की जो आदमकद तस्वीर लगी है, वह जीवाजी राव सिंधिया ने गिफ्ट की थी।

पहले राजप्रमुख

आजादी के बाद देसी रियासतों के भारत में विलय के बाद राजा, महाराजा और निजाम आदि का दर्जा तो खत्म हो गया, लेकिन ग्वालियर राजघराने की लोकप्रियता को देखते हुए सरकार ने जीवाजी राव सिंधिया को राजप्रमुख का दर्जा दिया। ग्वालियर के जय विलास पैलेस में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में खुद पंडित नेहरू ने जीवाजी राव सिंधिया को शपथ दिलाई थी।

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जीवाजी राव सिंधिया को शपथ दिलाते पंडित नेहरू। https://jaivilaspalace.in/our-historyjvp/

निधन के बाद प्रॉपर्टी विवाद

जीवाजी राव सिंधिया की शादी नेपाल राजघराने की महारानी विजयाराजे सिंधिया से हुई थी। साल 1961 में जब जीवाजी राव सिंधिया का निधन हुआ, तब पत्नी विजयाराजे और इकलौते बेटे माधवराव सिंधिया के बीच संपत्ति को लेकर विवाद हो गया। मामला इतना बढ़ा कि कोर्ट तक पहुंच गया।

लेखक और इतिहासकार रशीद किदवई अपनी किताब ‘द हाउस ऑफ सिंधियाज’ में लिखते हैं कि 1961 में जब जीवाजी राव सिंधिया का निधन हुआ तो उन्होंने कोई वसीयत जैसी चीज नहीं छोड़ी थी। न तो कोई निर्देश दिया था कि उनके मरने के बाद चल-अचल संपत्ति का बंटवारा कैसे होगा।

किदवई लिखते हैं कि शुरुआत में तो विजयाराजे और बेटे माधवराव के बीच संपत्ति बराबर-बराबर बांट दी गई। बाद में साल 1984 में विजयाराजे बॉम्बे हाईकोर्ट चली गईं, जहां दोनों के हिस्से 50-50% प्रॉपर्टी आई थी।