भारत की राजनीति में गुरुजी के नाम से मशहूर शिबू सोरेन जब 16 साल के थे तो उनके पिता की हत्या कर दी गई थी। तब उन्होंने संथाल परगना में मनी लैंडर्स के खिलाफ बड़ा अभियान चलाकर हजारों एकड़ ट्राईबल लैंड मुक्त कराई। उस अभियान से उनका नाम चमका। लेकिन उसके बाद सोरेन ने जो किया उसने उन्हें रातोंरात मशहूर कर दिया। 1971 में शिबू ने कोयले की अवैध खदानों के खिलाफ आंदोलन किया। तब झारखंड बिहार का हिस्सा था। आंदोलन से मिली लोकप्रियता की वजह से ही शिबू तीन बार सीएम बने। लेकिन उस वाकये के 50 साल बाद फिर से खदान की लीज उनके बेटे और दो बार के सीएम हेमंत सोरेन का शिकार करने की वजह बनती दिख रही है।
IAS पूजा सिंघल के सीए पर हुई रेड के बाद जो परतें खुलीं उसमें हेमंत सोरेन की कुर्सी पर खतरा मंडरा रहा है। चुनाव आयोग ने उन्हें नोटिस भेजकर जवाब मांगा है। हालांकि हेमंत सोरेन ने खनन लीज को लेकर भारत निर्वाचन आयोग के नोटिस का जवाब देने के लिए एक माह का समय मांगा है। मुख्यमंत्री ने मां की बीमारी का हवाला देते हुए मानवीय आधार पर अतिरिक्त समय की मांग की है। सीएम की ओर से कहा गया है कि मां की बीमारी के चलते वो नोटिस का जवाब देने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हैं। उनकी मां रूपी सोरेन गंभीर रूप से बीमार हैं। उनका हैदराबाद में इलाज चल रहा है। हेमंत सोरेन लगातार उनकी निगरानी और देखरेख में लगे हैं।
हेमंत के बाद उनके छोटे भाई बसंत सोरेन को भी निर्वाचन आयोग ने नोटिस भेजा है। उनसे 10 मई तक अपना पक्ष रखने को कहा गया है। बसंत दुमका से झामुमो विधायक हैं। आयोग ने नोटिस में बसंत सोरेन से पूछा है कि खनन कंपनी में पार्टनर होने के कारण लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 9 ए के तहत उनके खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही क्यों नहीं शुरू की जानी चाहिए? आयोग ने भाजपा प्रदेश कार्यालय और रजिस्ट्रार ऑफ कंपनी को भी नोटिस भेजकर जानकारी मांगी है। उधर बसंत का कहना है कि आपनी आमदनी और कारोबार का जिक्र वो अपने शपथपत्र में पहले ही कर चुके हैं।
उधर, तकरीबन 50 सालों तक चुनाव आयोग को अपनी सेवाएं देने वाले विशेषज्ञ एसके मेहंदीरत्ता का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसले में कहा है कि सभी कांट्रेक्ट डिस्क्वालीफाई का आधार नहीं बन सकते। मेहंदीरत्ता का कहना है कि उन्हें नहीं लगता कि हेमंत के खिलाफ कोई एक्शन बनता है। क्योंकि न तो उन्होंने सरकार को कोई सामान सप्लाई किया और न ही वो कोई ऐसा काम कर रहे थे जिसमें सरकार सीधी शामिल हो। झारखंड के एडवोकेट जनरल राजीव रंजन की भी सुनवाई के दौरान दलील थी कि वो लीज को सरेंडर कर चुके हैं। वो मानते हैं कि सरकार ने लीज उन्हें देकर गलती की। ये कोड ऑफ कंडक्ट का उल्लंघन है। लेकिन हेमंत ने ऐसा कोई काम वहीं किया जो संविधान की मर्यादाओं को तार-तार कर रहा हो।