भारतीय राजनीति में एक साथ कई मोर्चों पर सरगर्मी बढ़ी है। हरियाणा में अभय चौटाला देवीलाल की जयंती से जाट राजनीति साधने की कोशिश में हैं। महाराष्ट्र में शिंदे ने प्रधानमंत्री को बड़ा संदेश दिया। दिल्ली विश्वविद्यालय चुनाव ने कांग्रेस की ‘लाल’ रणनीति पर सवाल खड़े किए। वहीं, बिहार और यूपी में गठबंधन की खींचतान खुलकर सामने आई।

अभय की आस

हरियाणा की सियासत में अचानक सरगर्मी बढ़ गई है। अभय चौटाला ने जाट वोट बैंक पर दावेदारी के लिए अपने दादा की जयंती मनाने का एलान किया है। उनके दादा चौधरी देवीलाल का लंबे समय तक हरियाणा की राजनीति पर दबदबा रहा। सूबे के मुख्यमंत्री से लेकर देश के उप प्रधानमंत्री तक पहुंचे देवीलाल। एक तरह से राजीव गांधी की सरकार के खिलाफ चले संघर्ष के असली सिरमौर वही थे। हालांकि बाद में उनकी लोकप्रियता में गिरावट भी दिखी। रोहतक को हरियाणा में जाट राजनीति का गढ़ माना जाता है। रोहतक में देवीलाल के वर्चस्व को बाद में भूपिंदर सिंह हुड्डा ने तोड़ दिया था। जाट राजनीति में देवीलाल परिवार के कमजोर पड़ने की वजह उनके कुनबे की कलह भी रही। उनके बेटे ओमप्रकाश चौटाला की ही पहले तो अपने भाइयों से नहीं बनी फिर बेटे अभय से भी अनबन हो गई।

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अब देवीलाल की चौथी पीढ़ी सियासत में है। पर भाजपा राज में न हुड्डा का पहले जैसा असर बचा है और न देवीलाल के कुनबे का। हुड्डा तो कांगे्रस के 37 विधायक होने के बावजूद विपक्ष की भूमिका में कतई निष्क्रिय नजर आते हैं। यही भांप कर अभय चौटाला ने अपनी पार्टी इनेलोद की तरफ से 25 सितंबर को देवीलाल की रोहतक में जयंती आयोजित की है। उसी अवसर पर रैली कर अभय अपनी ताकत तो दिखाएंगे ही, देवीलाल की विरासत पर दावा भी ठोकेंगे।

शिंदे का संदेश

प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर 17 सितंबर के अखबारों में भाजपा की सरकारों और भाजपा नेताओं के विज्ञापन खूब दिखे। जिस विज्ञापन ने सबको चौंकाया वह महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की तरफ से दिया गया था। दिल्ली के हिंदी और अंग्रेजी के सभी प्रमुख अखबारों में पूरे पन्ने पर उनका बधाई संदेश छपा। किसी सरकारी विभाग की तरफ से नहीं अलबत्ता शिंदे ने निजी हैसियत से दिया था। शिंदे की इस दरियादिली के निहितार्थ तलाशने वालों की कमी नहीं। वे खुद ही देख और समझ रहे हैं कि देवेंद्र फडणवीस उनकी तुलना में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे से निकटता बढ़ा रहे हैं। यही वजह है कि शिंदे बार-बार दिल्ली आकर अमित शाह और प्रधानमंत्री से मिलते हैं। सरकार में अपनी स्थिति भी बचानी है और पार्टी भी। ऊपर से स्थानीय निकाय चुनाव में अपनी ताकत का प्रदर्शन भी करना है।

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‘लाल’ होने पर फिर उठे सवाल

कांग्रेस की छात्र राजनीति में वाम विचारधारा के प्रवेश ने उसे खासा नुकसान पहुंचा दिया है। दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के चुनाव में कांग्रेस को चार में से केवल एक ही सीट पर संतोष करना पड़ा है। बाकी तीन सीटों पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का कब्जा रहा है। कहा जा रहा है कि दिल्ली विश्वविद्यालय की ‘जेन जी’ भगवा के साथ चली गई है। कांग्रेस के रणनीतिकार पहले ही चिंता जता चुके थे कि जिनकी ‘लाल’ विचारधारा की अगुआई में छात्र संघ का चुनाव लड़ा जा रहा है उनकी वजह से कहीं वोट के लाले न पड़ जाएं। आरोप है कि विचारधारा के स्तर पर पार्टी पूरी तरह भटक चुकी है। कम से कम इस भटकी राह पर युवा साथ चलने को तो तैयार नहीं ही होंगे।

कांग्रेस का प्रदर्शन

ऐसा मानने वालों की अब कमी नहीं है कि बिहार में कांग्रेस पार्टी भाजपा से नहीं बल्कि अपने सहयोगी दलों से ही दो-दो हाथ करने में जुटी है। वह राजद और तेजस्वी यादव को कमजोर करने की राह पर नजर आ रही है। इस तरह के कई दृश्य सामने आ भी रहे हैं। एक तरफ पार्टी के नेता बिहार में राजद से अलग अपनी यात्रा निकाल रहे हैं तो दूसरी तरफ कांग्रेस पिछले चुनाव के बराबर 70 सीटें लेने की जिद भी पकड़े हैं। इसी बीच कांग्रेस कार्य समिति की बैठक 24 सितंबर को पटना में आयोजित करने का फैसला भी ले लिया है।

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इस बैठक में मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी सहित कांग्रेस के तमाम बड़े नेता आएंगे। तीनों मुख्यमंत्री भी और सभी प्रदेश अध्यक्ष भी मौजूद रहेंगे। यानी बैठक के बहाने पार्टी अपना शक्ति प्रदर्शन करेगी। यह प्रदर्शन वह वोटर अधिकार यात्रा के वक्त भी कर चुकी है। यात्रा के दौरान कांग्रेस ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन, समाजवादी पार्टी के अध्यक्षअखिलेश यादव और हेमंत सोरेन को भी बुलाया था। कांग्रेस को पिछला प्रदर्शन नहीं भूलना चाहिए। जीत का उसका औसत राजद से काफी कम था। सीटों के बंटवारे में खटपट होने से माहौल पर प्रतिकूल असर भी होता है। तेजस्वी यादव अड़ियल बेशक न हों पर उन्हें महागठबंधन में नए जुड़े दलों को भी तो सीटें देनी होंगी। कांग्रेस को सीटें भी ज्यादा चाहिए और वे भी जीत की ज्यादा संभावना वाली।

‘आरएलडी आइ रे’

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव कहने को अभी दूर है पर भाजपा के सहयोगी दलों ने दबाव की राजनीति अभी से बढ़ा दी है। संजय निषाद, अनुप्रिया पटेल और ओमप्रकाश राजभर के तेवर तो नाराजगी भरे दिख ही रहे थे, अब चौथे सहयोगी रालोद की तरफ से भी असंतोष की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। रालोद की नाराजगी भाजपा नेताओं की रालोद को बढ़ने से रोकने की मंशा को लेकर ज्यादा है। पिछले रविवार को हाथरस में दाऊजी महाराज के मेले में पंजाबी गायक एंडी जाट ने रालोद का चुनावी गीत ‘आरएलडी आइ रे’ गाना शुरू किया तो भाजपाई आपा खो बैठे।

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इलाके के भाजपा सांसद अनूप प्रधान की मौजूदगी में रालोद के प्रचार को भला भाजपाई कैसे सहन करते। तुरंत मंच पर चढ़े और गाना बीच में बंद करा दिया। इतना ही नहीं गायक को भी मंच से उतार दिया। रालोद के सुप्रीमो जयंत चौधरी तक शिकायत पहुंची तो उन्होंने तुरंत सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया दे डाली कि हाथरस भी जाऊंगा और ‘आरएलडी आइ रे’ गाना भी बजेगा। रालोद नेता दलील दे रहे हैं कि उनका भाजपा से गठबंधन है। भाजपा को यह नहीं भूलना चाहिए कि रालोद का अपना स्वतंत्र वजूद भी है।

संकलन : मृणाल वल्लरी