आज हम जिस डिजिटल दुनिया में जी रहे हैं, उसकी धड़कन सेमीकंडक्टर चिप हैं। मोबाइल फोन से लेकर इंटरनेट, कारों से लेकर मिसाइल और अंतरिक्ष यानों तक हर एडवांस तकनीक का दिमाग यही सेमीकंडक्टर चिप हैं। दुनिया भर के देशों में सेमीकंडक्टर चिप के बाजार पर कब्जा करने की होड़ मची है। ‘विक्रम’ 32 बिट प्रोसेसर और चार सेमीकंडक्टर टेस्ट चिप बनाकर भारत ने भी इस दिशा में कदम बढ़ा दिया है।
दुनिया में सेमीकंडक्टर का बाजार
सेमीकंडक्टर चिप का इस्तेमाल मोबाइल फोन, कंप्यूटर, लैपटाप, कार, इलेक्ट्रिक वाहन, टीवी, वाशिंग मशीन से लेकर इंटरनेट, क्लाउड और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तक में होता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, वैश्विक सेमीकंडक्टर बाजार करीब 600 अरब डालर (करीब 52 लाख करोड़) का है। 2030 तक इस बाजार के एक ट्रिलियन डालर यानी करीब 80 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचने की संभावना है।
फिलहाल दुनिया में कहीं भी सेमीकंडक्टर चिप बन रही है, उसमें भारतीय इंजीनियरों का कुछ न कुछ योगदान जरूर होता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, ग्लोबल डिजाइन सेंटर में बड़ी तादात में आपको भारतीय इंजीनियर मिलेंगे। अभी तक हम ग्लोबल कंपनियों के लिए काम कर रहे थे, लेकिन अब उत्पादन और डिजाइन हमारे होंगे। प्रोफेसर मृदुला गुप्ता का कहना है कि भारत सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम बनाने के काम पर लग गया है और कुछ ही सालों में इसका बड़ा असर दिखाई देने लगेगा।
अमेरिका का दबदबा
जानकारों के मुताबिक, भारत में इस वक्त सेमीकंडक्टर का बाजार करीब दो लाख करोड़ का है, जो 2030 तक बढ़कर करीब 5 लाख करोड़ को पार कर जाएगा। फिलहाल ताइवान दुनिया के करीब 60 फीसद चिप बनाता है। डिजाइन और इनोवेशन के मामले में अमेरिका का दबदबा है और चीन तेजी से बड़े पैमाने पर सेमीकंडक्टर चिप बना रहा है।
भारत सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम बनाने के काम पर लग गया है और कुछ ही सालों में इसका बड़ा असर दिखाई देने लगेगा। भारत में इस वक्त सेमीकंडक्टर का बाजार करीब दो लाख करोड़ का है, जो 2030 तक बढ़कर करीब 5 लाख करोड़ को पार कर जाएगा। डिजाइन के मामले में अमेरिका का दबदबा है और चीन बड़े पैमाने पर चिप बना रहा है।
मृदुला गुप्ता , दिल्ली विश्वविद्यालय के इलेक्ट्रानिक विज्ञान विभाग की प्रोफेसर
इलेक्ट्रानिक्स उपकरण के एक बड़े उपभोक्ता देश के तौर पर भारत, माइक्रोचिप के लिए विदेशों पर निर्भर है। देश में पेट्रोल और सोने के बाद सबसे ज्यादा आयात इलेक्ट्रानिक्स का होता है और इसमें सबसे अहम सेमीकंडक्टर चिप हैं। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की एक रपट के मुताबिक साल 2022-23 में भारत का इलेक्ट्रानिक्स आयात, कुल आयात का करीब 10 फीसद था, जो भारत के विदेशी मुद्रा भंडार पर एक बड़ा बोझ है।
भारत के सामने चुनौतियां
विशेषज्ञों के मुताबिक, सेमीकंडक्टर चिप बनाने के लिए 150 से अधिक रसायनों की जरूरत पड़ती है। सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम बनाने के लिए डिजाइनिंग, टेस्टिंग और पैकेजिंग जैसी सभी चीजों की जरूरत है। जानकारों के मुताबिक सेमीकंडक्टर चिप बनाने के लिए 150 से अधिक रसायनों और 30 से अधिक प्रकार की गैसों और खनिजों का इस्तेमाल होता है। ये सभी चीजें कुछ ही देशों में उपलब्ध हैं, इन्हें घरेलू स्तर पर उपलब्ध करवाना एक बड़ी चुनौती है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत के पास चिप डिजाइनिंग का अच्छा अनुभव है और फिलहाल यह काम बंगलुरु जैसे बड़े शहरों में हो रहा है। भारत को एक बैलेंस इकोसिस्टम की जरूरत है। हमें 25 से 30 सालों का रोडमैप लेकर चलना होगा। विशेषज्ञों का कहना है, इसके अलावा यह तय करना होगा कि पहले पांच साल में हमें क्या चाहिए, फिर अगले 10 साल में क्या चाहिए। तभी भारत सेमीकंडक्टर की दुनिया में एक बड़ी लकीर खींच सकता है।
भारत के पास चिप डिजाइनिंग का अच्छा अनुभव है और फिलहाल यह काम बंगलुरु जैसे बड़े शहरों में हो रहा है। अब हमे यह तय करना होगा कि पहले पांच साल में हमें क्या चाहिए, फिर अगले 10 साल में क्या चाहिए। तभी भारत सेमीकंडक्टर की दुनिया में बड़ी लकीर खींच सकता है। ताइवान,दक्षिण कोरिया जैसे देश को दबदबा कायम करने में कई दशक लगे।
सत्य गुप्ता, वीएलएसआइ सोसाइटी आफ इंडिया के अध्यक्ष
विशेषज्ञों के मुताबिक, साल 2021 में भारत सरकार ने करीब 75 हजार करोड़ की लागत से एक बड़ा कार्यक्रम शुरू किया, जिसे इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन कहते हैं। आज आप जो देख रहे हैं, वह इसी की वजह से संभव हो पा रहा है। इस मिशन का मकसद भारत में सेमीकंडक्टर चिप बनाने के लिए एक मजबूत माहौल तैयार करना है। इसके तहत उन कंपनियों को आर्थिक मदद दी जाती है।
यह भी पढ़ें: ‘Made in India’ सेमीकंडक्टर चिप क्या है? भारत की टेक क्रांति की शुरुआत! जानें इसकी खासियत, क्यों है गेमचेंजर…