विपक्षी दलों ने जबसे (18 जुलाई, 2023) अपने गठबंधन का नाम I.N.D.I.A. (Indian National Developmental Inclusive Alliance) रखा है, तभी से यह नाम चर्चा में है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का कहना है कि इस नाम का बीजेपी पर इतना असर होगा, इसका अंदाजा भी नहीं था। अब्दुल्ला 31 जुलाई को जनसत्ता डॉट कॉम के कार्यक्रम ‘बेबाक’ में मेहमान थे। संपादक विजय कुमार झा से बातचीत में नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता अब्दुल्ला ने पहली बार I.N.D.I.A. नाम रखने के पीछे की कहानी भी बयां की।
राहुल गांधी के वाट्सऐप पर कहां से आया था आइडिया?
17-18 जुलाई को बेंगलुरु में दो दिवसीय बैठक के दौरान 26 विपक्षी दलों ने अपने गठबंधन का नया नाम I.N.D.I.A रखा था। उमर अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कांफ्रेंस भी इस गठबंधन का हिस्सा है। जनसत्ता डॉट कॉम के संपादक विजय कुमार झा से बातचीत में उमर अब्दुल्ला ने बताया कि उन्हें लगता है जयराम रमेश (कांग्रेस के मीडिया प्रमुख) की टीम ने काफी मेहनत के बाद इस नाम का आइडिया सुझाया था, क्योंकि यह राहुल गांधी के मोबाइल में वाट्सऐप मैसेज के रूप में था।
औपचारिक बैठक से पहले पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अब्दुल्ला को यह वाट्सऐप फॉरवर्ड दिखाया, जिसमें गठबंधन के नाम के रूप में I.N.D.I.A का सुझाव था और फुल फॉर्म भी बताया गया था।
वाट्सऐप फॉरवर्ड किसका था? इस सवाल के जवाब में उमर अब्दुल्ला ने कहा कि मैंने यह ध्यान नहीं दिया कि राहुल को वह मैसेज किसने भेजा था। मेरी ऐसी आदत नहीं है। हां, इतना जरूर पता है कि यह सुझाव कांग्रेस की सोशल मीडिया टीम की तरफ से आया था। इस नाम के पीछे उनकी ही मेहनत थी।
कांग्रेस ने बनाई रणनीति कि बैठक में नाम ममता बनर्जी की ओर से पेश हो
उमर अब्दुल्ला ने गठबंधन के नाम को लेकर एक दिलचस्प बात और बताई। उन्होंने कहा कि विपक्षी दलों की बैठक में I.N.D.I.A नाम का प्रस्ताव ममता बनर्जी की तरफ से पेश किया गया।
जब उनसे पूछा गया कि ऐसा क्यों हुआ कि कांग्रेस द्वारा लाए गए नाम को ममता बनर्जी ने बैठक में आगे किया? अब्दुल्ला ने समझाने की कोशिश करते हुए कहा कि गठबंधन की बैठकों में ऐसे ही होता है। उन्होंने बताया कि यह रणनीतिक रूप से लिया गया फैसला था, ताकि वे दल भी नाम पर सहमत हों, जिनके कांग्रेस द्वारा प्रस्तावित नाम पर असहमत होने की आशंका थी। हालांकि सब इस नाम पर सहमत नहीं थे।
अब्दुल्ला ने बता कुछ और नाम भी सुझाए गए थे लेकिन कांग्रेस ने इस नाम का बचाव किया और इसके पक्ष में तर्क दिए।

और कौन-कौन से नाम आए थे?
उमर अब्दुल्ला ने बताया कि एक पार्टी के नेता का इस बात पर जोर था कि नाम में ‘मेन’ जरूर आना चाहिए। उनकी ओर से IMF-इंडियन मेन फ्रंट और IMA-इंडियन मेन अलायंस जैसे नाम सुझाए गए। उनकी दलील थी कि I.N.D.I.A. में से ‘आई’ हटा दें तो ‘एनडीए’ रह जाता है। वामपंथी नेताओं ने भी कुछ नाम सुझाए। लेकिन, खूब विचाार-विमर्श के बाद अंतत: विपक्षी गठबंधन का नाम ‘इंडिया’ रखने पर सहमति बनी।
सफल रहा I.N.D.I.A. नामकरण
I.N.D.I.A. नाम के प्रभाव पर चर्चा करते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा, “विपक्षी गठबंधन के नाम का भाजपा पर बहुत असर हुआ है और कोई अन्य नाम ऐसा नहीं कर पाता। भाजपा के नेता सोशल मीडिया (X) अकाउंट पर अपना बायो एडिट करने लगे। इंडिया की जगह भारत लिखने लगे। प्रधानमंत्री इंडियन मुजाहिदीन और पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया का जिक्र ले आए। दिन भर समर्थक पार्टियों के साथ बैठक करके फोटो जारी करवाया। कोई और नाम ऐसा असर नहीं छोड़ पाता।”
I.N.D.I.A. में आगे क्या
उमर अब्दुल्ला ने बताया कि अब गठबंधन की अगली बैठक सितंबर के पहले हफ्ते में हो सकती है, क्योंकि अगस्त में जिस समय बैठक का प्रस्ताव था उस वक्त कुछ नेता व्यस्त रहने वाले हैं। उन्होंने कहा कि अब सबसे बड़ी चुनौती सीटों का बंटवारा है। इसके लिए उन्होंने एक सुझाव दिया है कि दलों द्वारा जीती हुई सीटें न छेड़ी जाएं, जिन सीटों पर बीजेपी या उसके साथी दलों के सांसद हैं, उन सीटों को लेकर ही बंटवारे की बात होनी चाहिए।
धारा 370 पर मुझे विपक्षी दलों से भी उम्मीद नहीं
उमर अब्दुल्ला के लिए सबसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा अनुच्छेद 370 को पहले की तरह बहाल करना और जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा वापस पाना है। वह और उनकी पार्टी जिस I.N.D.I.A गठबंधन का हिस्सा हैं, उस गठबंधन के कई राजनीतिक दलों ने खुले तौर पर कश्मीर से अनुच्छेद 370 को डाइल्यूट किए जाने का समर्थन किया था। अब सवाल उठता है कि उमर अब्दुल्ला एक ऐसे गठबंधन में क्यों हैं, जिसके कई दल उनके सबसे बड़े राजनीतिक मुद्दे के खिलाफ हैं?
इस सवाल के जवाब में उमर अब्दुल्ला ने कहा कि गठबंधन में उनकी पार्टी की भूमिका बहुत सीमित है। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में लोकसभा की कुल छह सीटें हैं। हम भाजपा को सिर्फ इन्हीं सीटों पर रोकने के लिए लड़ सकते हैं। लेकिन अगर हमने गठबंधन के सामने अनुच्छेद 370 का मुद्दा रख दिया, तो हम एकजुट ही नहीं हो पाएंगे। इतनी समझदारी दिखानी ही होगी। अनुच्छेद 370 हमारा मुद्दा है, हम सुप्रीम कोर्ट में अपनी लड़ाई जारी रखेंगे।
उमर अब्दुल्ला ने धारा 370 हटाए जाने के दौरान नजरबंदी की आपबीती भी बताई, देखें वीडियो
अब्दुल्ला ने आगे कहा कि उन्हें विपक्षी दलों से अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर ज्यादा उम्मीद भी नहीं है। जब अनुच्छेद 370 को निरस्त किया जा रहा था, तब यह देखकर निराशा हुई कि उन दलों ने भी इसका समर्थन किया, जिनसे इसकी उम्मीद नहीं थी। उन्होंने कहा कि हमारा जोर इस बात पर है कि विधानसभा में जब भी प्रस्ताव आए तो वहां इसे पास नहीं होने दें और वह हम करेंगे।
बता दें कि अब्दुल्ला और कश्मीर के अन्य नेताओं को धारा 370 हटाए जाने से पहले नजरबंद कर लिया गया था। वह 230 दिनों से भी ज्यादा नजरबंद रहे थे। उन दिनों की आपबीती भी अब्दुल्ला ने भी साझा की।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट केंद्र के फैसले (धारा 370 हटाने) को चुनौती देने वाली कम से कम 23 याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए तैयार है, जिसके तहत 5 अगस्त, 2019 को संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया था। याचिकाओं पर सुनवाई 2 अगस्त को है।
UCC पर क्या बोले अब्दुल्ला?
समान नागरिक संहिता के सवाल पर उमर अब्दुल्ला ने कहा कि इस पर तो तब बात होगी जब केंद्र अपना आधिकारिक मसौदा पेश करेगी। मसौदा आने से पहले कुछ भी कहना ठीक नहीं होगा। अगर यूसीसी को एक समान तरीके से लागू किया जाए और इसमें हर समुदाय को शामिल किया जाए, तो हम बात कर सकते हैं। लेकिन अगर पूर्वोत्तर की जनजातियों या कुछ समुदायों को छूट मिलती है, तो मुसलमान भी इसकी मांग करेंगे। तो फिर समान नागरिक संहिता का क्या मतलब रह जाएगा?
समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लेकर बीजेपी नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने जनसत्ता डॉट कॉम के कार्यक्रम ‘बेबाक’ में ही कहा था कि यह मुसलमानों को टारगेट करने के लिए नहीं लागू किया जाएगा, बल्कि सब पर लागू होगा। इस मसले पर उनकी पूरी बात नीचे वीडियो में सुन सकते हैं।
‘बेबाक’ में यूसीसी को समझाते हुए नकवी ने कहा था, “यूसीसी एक समावेशी सुधार है। किसी भी प्रगतिशील समाज या देश के लिए परिवर्तन और सुधार वक्त की जरूरत होती है। दुनिया के लगभग 42-43 देश ऐसे हैं, जहां कॉमन सिविल कोड लागू है। दुनिया के कई ऐसे देश हैं जहां कॉमन सिविल कोड लागू है और वहां मुस्लिम आबादी एक प्रतिशत से सात प्रतिशत है। भारत में तो 20 प्रतिशत मुसलमान हैं। जब उन देशों में इस्लाम के पांच में से एक भी स्तंभ नहीं गिरे तो भारत में क्या ही हो जाएगा।” (विस्तार से पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें)
पूर्व कानून मंत्री अश्विनी कुमार भी जब कुछ समय पहले जनसत्ता.कॉम के कार्यक्रम ”बेबाक” में शामिल हुए थे तो उन्होंने भी यूसीसी से जुड़े कानूनी पहलुओं पर बात की थी और कहा था कि कोई भी कानून सही समय पर लाए जाने से ही कारगर हो सकता है। उनका पूरा इंटरव्यू इस वीडियो में देख सकते हैं: