Hindi Diwas: भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) की पढ़ाई-लिखाई देश और विदेश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों से अंग्रेजी माध्यम में हुई है। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से इकोनॉमिक्स (Economics) और इसी यूनिवर्सिटी के कैंपस लॉ सेंटर से एलएलबी किया है।

लॉ में मास्टर डिग्री और पीएचडी की उपाधि हॉर्वर्ड लॉ स्कूल (Harvard Law School) से हासिल की है। हालांकि यह बहुत कम लोग जानते हैं कि UG (Undergraduate) की पढ़ाई के दौरान उनका वैकल्पिक विषय हिंदी भी था।

सेंट स्टीफेंस में हिंदी पढ़ते थे चंद्रचूड़

अपने अंग्रेजी और एलीट कल्चर के लिए चर्चित, दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस कॉलेज के बारे में ऐसा कहा जाता है कि वहां दाखिला के लिए 95 फीसदी अंक भी कई बार कम पड़ जाते हैं। डीवाई चंद्रचूड़ ने इसी सेंट स्टीफेंस में इकोनॉमिक्स की पढ़ाई के दौरान हिंदी को वैकल्पिक विषय (Optional Subject) के तौर पर चुना था। ऐसा करने वाले वह कुछ चुनिंदा छात्रों में थे। हिंदी पढ़ने का लाभ डीवाई चंद्रचूड़ को बाद के वर्षों में मिला, जब वह इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बने।

बंबइया हिंदी से करते थे कार्यवाही की शुरुआत

डीवाई चंद्रचूड़ 31 अक्टूबर, 2013 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने थे। बतौर चीफ जस्टिस उनका कार्यकाल 12 मई, 2016 तक था। इसके बाद उन्हें सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति मिल गई। इलाहाबाद हाईकोर्ट में डीवाई चंद्रचूड़ की यंग चीफ जस्टिस के तौर ख्याति थी। वह कड़े फैसले लेने वाले जज के साथ-साथ एक व्यवहार कुशल व्यक्ति के रूप में भी अक्सर सुर्खियों में रहते थे।

‘द वीक’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील हिंदी में बहस करने में अधिक सहज थे, इसलिए चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ कोर्ट की कार्यवाही की शुरुआत अपनी ‘बंबइया हिंदी’ से करते थे। जस्टिस चंद्रचूड़ के ऐसा करने से वकीलों पर अंग्रेजी में जिरह करने का दबाव कम हो जाता था और वह सहज होकर हिंदी में ही अपनी बात रखते थे। कोर्ट के भीतर स्थिति को अधिक सुविधाजनक बनाने के लिए जस्टिस चंद्रचूड़ द्वारा किए गए प्रयासों की वकीलों ने अक्सर सराहना की।

हिंदी को एकता की पहचान मानते हैं चंद्रचूड़

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ हिंदी भाषा को राष्ट्रीयता और एकता की पहचान मानते हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश रहते हुए डीवाई चंद्रचूड़ ने हाईकोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित हिंदी दिवस के कार्यक्रम में कहा था, “हिंदी मातृभाषा ही नहीं यह मानवता का अहसास है। यह मानव जीवन की विषमताओं की याद दिलाती है। यह एक माध्यम न होकर उससे परे एक भाव है।”

14 सितंबर को क्यों मानया जाता है हिंदी दिवस?

साल 1949 से भारत प्रति वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाता आ रहा है। संविधान सभा में हिंदी को लेकर जमकर बहस हुई थी। सभा में शामिल अलग-अलग भाषाई पृष्ठभूमि के विद्वानों पर भाषा संबंधी कानून बनाने की जिम्मेदारी थी। विविधता को ध्यान में रखते हुए संविधान सभा ने तय किया कि भारत की कोई राष्ट्रीय भाषा नहीं होगी, बल्कि राजभाषा होगी। राजभाषा यानी सरकार के कामकाज की भाषा क्या होगी, इसे लेकर भी मुबाहिसा हुआ।

भारत सरकार की ‘राजभाषा भारती’ पत्रिका के 145वें अंक में प्रकाशित डॉ. रुक्मिणी तिवारी के लेख में बताया गया है कि हिंदी को संवैधानिक मान्यता कैसे मिली थी। आजादी के बाद गठित ‘संविधान समिति’ को मुंशी-आयंगार समिति कहते हैं। इस समिति के इसके अधिकांश सदस्य हिंदी भाषी नहीं थे, जैसे- गोपाल स्वामी आयंगार, टी टी कृष्णमाचारी, ए के आयंगार, कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी, डॉ भीम राव अंबेडकर, सआदुल्ला, एल एम राव, मौलाना अबुल कलाम आजाद, गोविंद बल्लभ पंत, पुरुषोत्तमदास टंडन, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और के संथानम। फरवरी 1948 में संविधान का जो प्रारूप प्रस्तुत किया गया उसमें राजभाषा का कोई उल्लेख नहीं था। लेकिन कन्हैयालाल माणिक लाल मुंशी के अथक प्रयासों से सितंबर 1949 में संविधान सभा में राजभाषा के विषय पर चर्चा हुई।

हिंदी को राजभाषा बनाने का सबसे पहला प्रस्ताव संविधान सभा में 12 सितंबर 1949 को पेश किया गया था। जिन तीन सदस्यों ने इसे पेश किया था, वे सभी अहिंदी भाषी थे। सभा की तीन दिवसीय 12, 13 एवं 14 सितंबर 1949 की बहस में 71 सदस्यों ने भाग लिया। अंतत: 14 सितंबर को हिंदी को राजभाषा बनाने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हुआ। इसी तारीख को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने स्पष्ट कहा था कि, ‘हिंदी को किसी भाषायी श्रेष्ठता के कारण अखिल भारतीय भाषा नहीं बनाया गया बल्कि इसलिए बनाया गया क्योंकि यह अधिकांश भागों में फैली हुई है। साथ ही सबसे अधिक आसान भी है।’