“रिवाज़ बदल रहा है (परंपरा बदलने वाली है)”। हिमाचल में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के हल्कों में यह लोकप्रिय चर्चा है, जहां पिछले तीन दशकों से सत्ता कांग्रेस और भाजपा के बीच बारी-बारी से चलती रही है। सत्तारूढ़ भाजपा मतदाताओं से इस परंपरा को तोड़ने और 12 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों में लगातार दूसरी बार सत्ता में लाने का आग्रह कर रही है।

दिल्ली में जहां पार्टी के नेता उत्साहित हैं, वहीं लंबे समय से राज्य की राजनीति पर नजर रखने वाले ज्यादा सतर्क हैं. इस चुनाव पर नजर रख रहे एक अनुभवी पत्रकार का कहना है कि “यह शुरुआती दिन हैं, कांग्रेस अब भी गेम में है और सरकार के खिलाफ कई मुद्दों पर लोगों में गुस्सा है, साथ ही आम आदमी पार्टी का इस लड़ाई में आना हिमाचल जैसे राज्य में परिणामों को प्रभावित कर सकता है, जहां जीत का अंतर कम होता है।

भाजपा द्वारा 11 मौजूदा विधायकों के टिकट काटे जाने के बाद पार्टी को विरोध का सामना करना पड़ा है। इन विधायकों ने पार्टी के विरुद्ध बगावत के सुर अपना लिए हैं, जिससे भाजपा को नियम तोड़ने और बगावत करने वाले नेताओं को को छह साल के लिए निलंबन की धमकी देने के लिए मजबूर होना पड़ा।

एक बगावत सीएम जयराम ठाकुर के गृह जिले मंडी में देखने को मिली, जहां पार्टी के मीडिया सह प्रभारी प्रवीण शर्मा ने ऐलान किया कि वह मंडी सदर से निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे।

कांग्रेस के दो दलबदलुओं को मैदान में उतारने के भाजपा के फैसले से स्थानीय नेताओं में भी नाराजगी है। कांग्रेस विधायक लखविंदर सिंह राणा ने हाल ही में कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी जॉइन की थी, भाजपा के उन्हे मैदान मे उतारने कि घोषणा के बाद नालागढ़ में भाजपा के पूर्व विधायक केएल ठाकुर ने गुरुवार को निर्दलीय के रूप में अपना नामांकन दाखिल कर दिया। पार्टी द्वारा चेतावनी के बावजूद उन्होंने अपनी रैली में एक बड़ी भीड़ को संबोधित किया जिसका नारा था “मेरा कसूर क्या है (मेरी गलती क्या है?)। धर्मशाला में भी बीजेपी के मौजूदा विधायक विशाल नैहरिया के करीब 200 समर्थकों ने कांग्रेस से बीजेपी में आए राकेश चौधरी को टिकट दिए जाने के विरोध में इस्तीफा दे दिया।

राजनीतिक परिवारों में अंदरूनी कलह भी बीजेपी काफी परेशान कर रही है। जल शक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर की बेटी वंदना गुलेरिया ने उनके छोटे भाई रजत ठाकुर को टिकट दिए जाने के बाद पार्टी के महिला मोर्चा से अपना पद छोड़ दिया। कुल्लू शाही हितेश्वर सिंह भी बंजार से निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ने की धमकी दे रहे हैं, क्योंकि उनके पिता पूर्व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेश्वर सिंह को कुल्लू (सदर) से टिकट दिया गया था लेकिन उन्हें भाजपा के “एक परिवार, एक टिकट” नियम के तहत अस्वीकार कर दिया गया था। इस सबके बावजूद भाजपा नेता आश्वस्त हैं कि वे सभी को समय रहते मना लेंगे।

भाजपा सरकार पर बीते पाँच वर्षों में खराब शासन व्यवस्था के आरोप भी लग रहे हैं, उदाहरण के लिए, सीएमओ ने पिछले पांच वर्षों में छह मुख्य सचिवों को देखा है। सरकार द्वारा की गई कई पहल अदालत की छानबीन के सामने नहीं टिक पाई हैं। सबसे हाल ही में अरी नगर पंचायत अधिसूचना थी, जिसे हिमाचल उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था। शिमला विकास योजना 2041 के मसौदे पर भी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने रोक लगा दी थी। इस तरह के गलत कदमों ने इस धारणा को पैदा किया है कि हिमाचल में भाजपा ठीक तरह से सरकार चला पाने में समर्थ नहीं रही है।

इस बात से यह समझना आसान है कि भाजपा इन चुनावों में मोदी के जादू और केंद्रीय योजनाओं पर क्यों निर्भर है। जो लोग भाजपा के लिए बढ़त देखते हैं, वे केंद्र में कांग्रेस की खराब स्थिति और भाजपा की राष्ट्रवादी नीतियों का हवाला देते हैं। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के एक राजनीतिक वैज्ञानिक प्रो हरीश ठाकुर कहते हैं, “कई केंद्रीय योजनाओं से स्थानीय लोगों को फायदा हुआ है। मिसाल के तौर पर आयुष्मान भारत कई लोगों के लिए वरदान साबित हुआ है। साथ ही लोग मोदी के दीवाने हैं। उनका राष्ट्रवादी दृष्टिकोण उस राज्य में प्रतिध्वनित होता है जहां बड़ी संख्या में युवा सशस्त्र बलों में शामिल होते हैं।”

बीजेपी ने काटा 11 मौजूदा विधायकों का टिकट

बीजेपी ने 11 मौजूदा विधायकों को टिकट नहीं देकर सत्ता विरोधी लहर से लड़ने की ओर इशारा किया है। पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को टिकट से वंचित कर शीर्ष पद के लिए मैदान में होने की सभी अटकलों को भी सफलतापूर्वक खारिज कर दिया है । हालांकि उनके कुछ वफादारों को दूसरी सूची में शामिल किया गया था, लेकिन पार्टी आलाकमान ने स्पष्ट कर दिया है कि यह धूमल युग के सामने एक पर्दा है।

दूसरी ओर कांग्रेस नेतृत्व के गंभीर संकट का सामना कर रही है, क्योंकि वह अपना पहला विधानसभा चुनाव वीरभद्र सिंह के बिना लड़ रही है जो इस पहाड़ी राज्य के छह बार के सीएम रहे हें। उनका जुलाई 2021 में निधन हो गया था। “वीरभद्र का एक जन अनुयायी था। ऐसा माना जाता था कि उनके पास हर निर्वाचन क्षेत्र में कम से कम 4,000 वोट थे”, एचपीयू के सेवानिवृत्त प्रोफेसर प्रोफेसर कमल कहते हैं।

हालांकि पार्टी ने उनकी विधवा प्रतिभा सिंह को सामने किया है, कई लोग उन्हें समस्या के रूप में देखते हैं ना की समाधान के, भले ही उन्होंने अक्टूबर 2021 के उपचुनाव में मंडी संसदीय सीट जीती हो।

2017 में 68 सदस्यीय राज्य विधानसभा में पार्टी को केवल 21 सीटें मिली थीं, जो भाजपा की 44 में से आधी थी। इस साल यह संख्या घटकर 19 हो गई, जब उसके दो विधायक भाजपा में शामिल हो गए।

कांग्रेस भी अंदरूनी कलह से परेशान

अंदरूनी कलह कांग्रेस को परेशान कर रही है, जो पार्टी के सितंबर में जारी किए गए महत्वाकांक्षी घोषणापत्र के जरिए हासिल होने वाले प्रभाव को कम कर रहा है। इस घोषणा पत्र में 10 चुनावी गारंटी शामिल हैं, जिसमें मुफ्त बिजली, 18 से 60 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं को 1,500 रुपये का मासिक भत्ता, पुरानी पेंशन व्यवस्था की वापसी और 2 रुपये प्रति किलो के हिसाब से गोबर की खरीद शामिल है।

सबसे पुरानी पार्टी सत्ता विरोधी लहर, महंगाई के खिलाफ गुस्से और वापसी के लिए कुशासन पर निर्भर है। सीएम जयराम ठाकुर ने अक्टूबर 2021 के उपचुनाव में कांग्रेस की जीत के लिए महंगाई को जिम्मेदार ठहराया था जब भाजपा की मंडी लोकसभा सीट फतेहपुर, अर्की और जुब्बल कोटखाई की तीन विधानसभा सीटों हार हुई थी।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके डिप्टी मनीष सिसोदिया ने गर्मियों में राज्य का दौरा किया और लोगों से कहा कि वे यहां पंजाब को दोहराएंगे। लेकिन उनकी राज्य इकाई चरमरा गई है, पार्टी के वरिष्ठ नेता जो 2017 से इससे जुड़े थे, कांग्रेस या भाजपा में शामिल हो गए हैं जबकि राज्य इकाई के प्रमुख अनूप केसरी भाजपा में शामिल हो गए हैं । राज्य में पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक, निक्का सिंह पटियाल कांग्रेस में चले गए हैं।

आम आदमी पार्टी गुजरात पर ध्यान केंद्रित कर रही है। पिछले हफ्ते ही पंजाब कैबिनेट में सबसे कम उम्र के मंत्री हरजोत सिंह बैंस को राज्य का चुनाव प्रभारी नियुक्त किया गया है। पार्टी की सूची में कुछ दिलचस्प नाम हैं, लेकिन क्या वे सेंध लगा पाएंगे या नहीं यह देखना बाकी है। हालांकि,आप का दावा है कि उसके कई उम्मीदवार हैरान कर