राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने गुरुवार की सुबह एक राष्ट्रव्यापी तलाशी अभियान शुरू किया। इसे आतंकवाद विरोधी सबसे बड़ा तलाशी अभियान बताया जा रहा है। 10 राज्यों में तलाशी शामिल के दौरान NIA ने PFI (पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया) से जुड़े 100 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया है। आतंकी फंडिंग, प्रशिक्षण शिविर आयोजित

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, यह अभियान टेरर फंडिंग की जांच, प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने और संगठन में शामिल करने के लिए लोगों को उकसाने वाले लोगों की तलाश के लिए चलाया जा रहा है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने PFI के कर्नाटक प्रदेश अध्यक्ष नज़ीर पाशा के घर सहित बेंगलुरु और कर्नाटक के कम से कम 10 स्थानों पर छापेमारी की है। PFI ने पुष्टि की है कि उसके राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय नेताओं के घरों पर छापेमारी हो रही है। साथ ही राज्य समिति कार्यालय की जांच भी जारी है।

NIA तलाशी अभियान को एजेंसियों का गलत इस्तेमाल बताते हुए पीएफआई ने एक बयान जारी किया है: ”हम असहमति की आवाज़ों को चुप कराने के लिए एजेंसियों का इस्तेमाल करने वाली फासीवादी शासन के कदमों का कड़ा विरोध करते हैं।”

क्या है पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया?

साल 2007 में तीन मुस्लिम संगठनों के विलय से पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) जन्म हुआ था। वह तीन संगठन हैं- नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट (केरल) कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और मनिथा नीति पासराई (तमिलनाडु)

तीनों संगठनों को एक साथ लाने का निर्णय नवंबर 2006 में केरल के कोझीकोड में एक बैठक में लिया गया था। PFI के गठन की औपचारिक घोषणा 16 फरवरी, 2007 को बेंगलुरु में “एम्पॉवर इंडिया कॉन्फ्रेंस” के दौरान एक रैली में की गई थी। PFI खुद को NGO बताता है।

स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) पर प्रतिबंध के बाद उभरे पीएफआई ने खुद को एक ऐसे संगठन के रूप में पेश किया, जो अल्पसंख्यकों, दलितों और हाशिए के समुदायों के अधिकारों के लिए लड़ता है। इसने कर्नाटक में कांग्रेस, भाजपा और जेडी-एस की कथित जनविरोधी नीतियों को अक्सर निशाना बनाया। जबकि इन मुख्यधारा की पार्टियों ने एक दूसरे पर उस समय मुसलमानों का समर्थन हासिल करने के लिए पीएफआई से हाथ मिलाने का आरोप लगाया

पीएफआई खुद कभी चुनाव नहीं लड़ा है। यह संगठन खुद को मुसलमानों के बीच कुछ उसी तरह के कार्य करते दिखाता है, जैसे हिंदू समुदाय के बीच आरएसएस और वीएचपी जैसे दक्षिणपंथी संगठन करते हैं। पीएफआई मुसलमानों के बीच सामाजिक और धार्मिक कार्यों पर जोर देता है। यह संगठन अपने सदस्यों का रिकॉर्ड नहीं रखता। हालांकि 20 राज्यों में इसकी यूनिट है। पहले इसका मुख्यालय केरल के कोझिकोड में था। अब दिल्ली में है।

2009 में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) नाम का एक राजनीतिक संगठन मुसलमानों, दलितों और अन्य हाशिए के समुदायों के राजनीतिक मुद्दों को उठाने के उद्देश्य से PFI से बाहर निकला था।

SDPI का घोषित लक्ष्य मुसलमानों, ”दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों सहित सभी नागरिकों की उन्नति और विकास है।” SDPI की राजनीतिक गतिविधियों के लिए PFI जमीनी कार्यकर्ता प्रदान करता है।

PFI और विवाद

साल 2012 में केरल हाईकोर्ट ने कांग्रेस की ओमान चंडी सरकार को बताया था कि पीएफआई प्रतिबंधित संगठन SIMI का ही बदला हुआ रूप है। सरकारी एफिडेविट में पीएफआई कार्यकर्ताओं को हत्या के 27 मामलों से सीधा कनेक्शन बताया गया था। ज्यादातर मामलों में RSS और CPM के कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया गया था।

दो साल बाद केरल सरकार ने एक अन्य हलफनामे में उच्च न्यायालय को बताया कि पीएफआई का एक गुप्त एजेंडा इस्लाम के लाभ के लिए धर्मांतरण को बढ़ावा देकर समाज का इस्लामीकरण करना भी है।

इस साल अप्रैल में केरल के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुरेंद्रन ने 18 अप्रैल को बताया था, “पिछले छह सालों में केरल में 24 बीजेपी-आरएसएस कार्यकर्ता मारे गए हैं, जिनमें से सात को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के लोगों ने मारा है।”