किसी देश का कानून वहीं खत्म हो जाता है, जहां से उसकी भौगोलिक सरहद खत्म होती है। इसी के साथ शुरू होता है अन्य देशों से कानूनी सहभागिता का रिश्ता। कई अपराधी देश छोड़ कर भागने में कामयाब हो जाते हैं। इनमें बड़ी संख्या होती है आर्थिक अपराधियों की। कई मामलों में आर्थिक अपराधी देश छोड़ने के बादविदेश में शानदार जीवन जीते नजर आते हैं। हाल में गोवा नाइट क्लब अग्निकांड के बाद इसके सह-मालिक गौरव और सौरभ लूथरा रातोंरात थाईलैंड भाग गए। हालांकि इंटरपोल के नोटिस के बाद दोनों हिरासत में ले लिए गए और उन्हें शीघ्र ही भारत लाया जा सकता है। कुछ दिन पहले अमेरिका से एक अपराधी अनमोल बिश्नोई को प्रत्यर्पित कर भारत लाया गया। लगभग साल भर पहले मुंबई बम धमाके के आरोपियों में से एक डेविड कोलमैन हेडली को लंबे कानूनी संघर्ष के बाद भारत लाने में कामयाबी मिली। ऐसे कई आरोपी हैं, जो अभी भी देश के हाथों में नहीं आए हैं। इनमें मेहुल चौकसी, नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे लोग भी शामिल हैं। हाल में बेल्जियम के उच्चतम न्यायालय ने भगोड़े मेहुल चौकसी के भारत प्रत्यर्पण को रोकने की याचिका खारिज कर दी। पिछले लंबे समय से भारत सरकार ने भगोड़े आर्थिक अपराधियों के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है। गोवा अग्निकांड के अपराधियों की भारत वापसी की कवायद इसकी मिसाल है। मसले पर जनसत्ता सरोकार की पड़ताल।

बीते पांच वर्षों में सीबीआइ 134 भगोड़ों को देश में वापस लाने में कामयाब रही है। यह संख्या साल 2010 से 2019 के बीच पूरे दशक के दौरान विदेश से लाए गए भगोड़ों की दोगुनी है। इनमें से 23 भगोड़ों को अकेले इसी वर्ष वापस लाया गया। इसके लिए सीबीआइ ने इंटरपोल के साथ-साथ राज्य और केंद्रीय प्रवर्तन एजंसियों के साथ घनिष्ठ समन्वय बनाया। नतीजतन साल 2020 से इन 134 भगोड़ों का प्रत्यर्पण या निर्वासन सुनिश्चित करने में सफलता मिली। वहीं, 2010 से 2019 के बीच के दशक के दौरान यह संख्या केवल 74 थी।

केंद्र सरकार ने कुख्यात कारोबारियों विजय माल्या और नीरव मोदी सहित 15 व्यक्तियों को भगोड़ा आर्थिक अपराधी घोषित किया है। इन पर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का सामूहिक रूप से 58,000 करोड़ बकाया है। संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने बताया गया कि केंद्र सरकार ने विजय माल्या और नीरव मोदी सहित 15 व्यक्तियों को 31 अक्तूबर, 2025 तक भगोड़े आर्थिक अपराधी (एफईओ) घोषित किया है।

कुल मिलाकर, भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018 (एफईओए) के अनुसार, इन भगोड़े आर्थिक अपराधियों पर लगभग 12 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का कुल 58,082 करोड़ बकाया है। इसमें गैर-निष्पादित अभियोग (एनपीए) की तिथि तक 26,645 करोड़ की मूल राशि और एनपीए की तिथि से 31 अक्तूबर 2025 तक अर्जित 31,437 करोड़ का ब्याज शामिल है। सरकार ने अपने जवाब में कहा कि 31 अक्तूबर 2025 तक इन अपराधियों से 19,187 करोड़ वसूल किए जा चुके हैं। इन 15 अपराधियों में से नौ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के खिलाफ किए गए बड़े पैमाने पर वित्तीय धोखाधड़ी में शामिल हैं।

माल्या और नीरव के खिलाफ आरोप

विजय माल्या पर भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के एक संघ से उनकी अब बंद हो चुकी किंगफिशर एअरलाइंस के लिए लिए गए 9,000 करोड़ रुपए से अधिक के ऋण में धोखाधड़ी का आरोप है। नीरव मोदी पर अपने चाचा मेहुल चोकसी के साथ मिलकर पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) के खिलाफ 13,000 करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप है। यह भारत के इतिहास में सबसे बड़े बैंकिंग घोटालों में से एक है।

इंटरपोल कितने तरह के नोटिस जारी करता है? पांच साल, सैकड़ों नोटिस और अरबों की संपत्ति का हिसाब

एफईओए की सूची में कौन-कौन शामिल हैं?

एफईओ सूची में जिन लोगों को भगोड़ा आर्थिक अपराधी घोषित किया गया है, वे हैं : विजय माल्या, नीरव मोदी, नितिन जे संदेसरा, चेतन जे संदेसरा, स्टर्लिंग बायोटेक धोखाधड़ी मामले की दीप्ति सी संदेसरा, सुदर्शन वेंकटरमण, रामानुजम शेषरत्नम, जाइलाग सिस्टम्स लिमिटेड के पूर्व प्रमोटर पुष्पेश कुमार बैद और हितेश कुमार नरेंद्रभाई पटेल। नितिन और चेतन संदेसरा ने इंडियन ओवरसीज बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, यूनियन बैंक आफ इंडिया और स्टेट बैंक आफ इंडिया के साथ कुछ बकाया राशि का निपटारा कर लिया है।

सुप्रीम कोर्ट से राहत

पिछले हफ्ते, सुप्रीम कोर्ट ने स्टर्लिंग बायोटेक बैंक धोखाधड़ी मामले में संदेसरा भाइयों के खिलाफ सभी आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने का निर्देश दिया, बशर्ते वे ऋणदाता बैंकों को 5,100 करोड़ का पूर्ण और अंतिम भुगतान जमा कर दें। अदालत ने कहा, यदि याचिकाकर्ता (संदेसरा बंधुओं) एकमुश्त निपटान (ओटीएस) में तय की गई राशि जमा करने के लिए तैयार हैं और सार्वजनिक धन उधार देने वाले बैंकों को वापस मिल जाता है तो आपराधिक कार्यवाही जारी रखने का कोई फायदा नहीं होगा। इससे यह अंदेशा पैदा हुआ कि क्या सरकार भविष्य में ऐसे अपराधियों को देश छोड़ने से रोकने के लिए कानूनी प्रतिबंधों या निगरानी सूचियों के माध्यम से कोई नीति बना रही है, तो केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने बताया कि वर्तमान में ऐसी कोई नीति तैयार नहीं की जा रही है।

हिरासत में लूथरा ब्रदर्स, गोवा अग्निकांड में थाईलैंड पुलिस का बड़ा एक्शन

पांच साल में 134 भगोड़ों को वापस लाने में सीबीआइ को सफलता यूं ही नहीं मिल गई है। इसमें नई तकनीक और कूटनीतिक प्रयासों का भी खासा योगदान रहा है। सफलता दर में वृद्धि का श्रेय सरकार द्वारा बढ़ाए गए राजनयिक जुड़ाव, वीवीआइपी यात्राओं के माध्यम से भारत की पहुंच, द्विपक्षीय संबंधों, तकनीकी प्रगति और इंटरपोल के साथ बेहतर समन्वय को दिया जा सकता है। सीबीआइ ने अपने नए डिजिटल पोर्टल भारतपोल के माध्यम से इंटरपोल के साथ समन्वय बढ़ाया है। इससे भगोड़ों के प्रत्यर्पण की प्रक्रिया तेज हुई है। एजंसी द्वारा आंतरिक रूप से विकसित यह मंच भारतीय पुलिस एजंसियों को सीबीआइ के माध्यम से इंटरपोल से जोड़ता है। इससे जांच और प्रत्यर्पण की प्रक्रिया में तेजी आई है और रेड नोटिस जारी होने में लगने वाला औसत समय छह महीने से घटकर तीन महीने रह गया है।

हाल ही में सीबीआइ ने अमेरिका में नेहल मोदी को गिरफ्तार करवाया, जो नीरव मोदी का भाई है और पंजाब नेशनल बैंक घोटाले में आरोपी है। वहीं, सीबीआइ ने एक आर्थिक अपराधी मोनिका कपूर को भी अमेरिका से प्रत्यर्पित करवाया, जो 1999 में फरार हो गई थी। वहीं, सीबीआइ ने कई साइबर अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई की है। इसके अलावा, सीबीआइ देश से भागे हुए अपराधियों को वापस लाने के लिए आपरेशन त्रिशूल चला रही है।
प्रत्यर्पण की प्रक्रिया के तीन चरण होते हैं:- इंटरपोल द्वारा रेड नोटिस जारी करना, भगोड़े की भौगोलिक स्थिति का पता लगाना, और तीसरा, कानूनी और कूटनीतिक प्रयासों के बाद प्रत्यर्पण। ये सभी प्रक्रियाएं समय लेने वाली हैं।

इंटरपोल रेड नोटिस जारी करके किसी देश में वांछित भगोड़े के बारे में सभी 195 देशों को सचेत करता है। इधर सरकार और केंद्रीय एजंसियां कोशिश कर रही हैं कि भगोड़े अपराधियों को लाने के लिए समन्वय को और मजबूत किया जाए। पिछले दिनों एक बैठक में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने फरार अपराधियों के लिए सभी राज्य सरकारों से राज्य की राजधानी में एक विशेष प्रकोष्ठ गठित करने की अपील की। उन्होंने कहा कि ऐसे प्रकोष्ठों की अनुपस्थिति हमेशा अपराधियों के प्रत्यर्पण की प्रक्रिया में चुनौतियां पैदा करती हैं। जानकारों का कहना है कि सभी राज्यों की राजधानियों में भगोड़ों के लिए एक विशेष प्रकोष्ठ होना चाहिए, जो अंतरराष्ट्रीय मानदंडों को पूरा करता हो।

कई बार, अंतरराष्ट्रीय भगोड़ों के लिए ऐसे प्रकोष्ठ का अभाव विदेशी अदालतों में मुद्दा बन जाता है। राज्य सरकारों को ऐसा प्रकोष्ठ स्थापित करना चाहिए ताकि कोई भी बहाना न बना सके। विशेषज्ञों का कहना है कि कायदे से फरार आरोपियों का एक वैज्ञानिक डेटाबेस सभी राज्य पुलिस के साथ साझा किया जाना चाहिए और आइबी व सीबीआइ को इस दिशा में काम करना चाहिए। सीबीआइ और आइबी को राज्यों को ऐसे डेटाबेस बनाने में मार्गदर्शन करने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए। डेटाबेस में फरार लोगों के खिलाफ मामले, उनके फरार होने के स्थान, भारत में उनका नेटवर्क और प्रत्यर्पण की प्रक्रिया में आई रुकावट सहित सभी विवरण होने चाहिए।

रात 11:45 बजे गोवा के नाइट क्लब में आग लगने की सूचना मिली, डेढ़ घंटे के अंदर लूथरा भाइयों ने बुक कर ली थी थाईलैंड की टिकट

जानकारों के मुताबिक नशीले पदार्थों, गिरोहबाजों, जबरन वसूली और वित्तीय अपराधों के साथ-साथ साइबर अपराधों की जांच के लिए एक केंद्रित समूह का गठन किया जाना चाहिए, जहां सूचना एवं संचार ब्यूरो (आइबी) और सीबीआइ एक बहु एजंसी केंद्र (एमएसी) की मदद से इस प्रक्रिया में मार्गदर्शन करें।

केंद्रीय एजंसियों, विदेश और गृह मंत्रालयों के एक कार्यक्रम में गृह मंत्री शाह ने कहा था कि किसी व्यक्ति के खिलाफ रेड कार्नर नोटिस जारी होने के बाद, उसका पासपोर्ट जब्त कर लिया जाना चाहिए, ताकि वह विदेश न भाग सके। भगोड़े को भारत के कानूनों से डरना चाहिए। शाह ने कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) के अनुच्छेद 355 और 356 (अनुपस्थिति में मुकदमे के मुद्दे से संबंधित है), का उपयोग राज्यों द्वारा भगोड़ों के खिलाफ मुकदमा शुरू करने के लिए किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, सीबीआइ की मदद से, सभी राज्यों को राज्य-विशिष्ट भगोड़ों के प्रत्यर्पण की प्रक्रिया के लिए इकाइयां स्थापित करनी चाहिए।

संदेसरा बंधुओं को मिली छूट के संदेश पर चिंता
पिछले महीने, सुप्रीम कोर्ट ने भगोड़े संदेसरा भाइयों के खिलाफ मामले वापस लेने पर सहमति जताई थी। शर्त यह थी कि वे 5,100 करोड़ रुपए का पूर्ण और अंतिम भुगतान करें। साथ में कोर्ट ने यह भी कहा कि इस आदेश को मिसाल के तौर पर नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने भगोड़े संदेसरा बंधुओं को 1.6 अरब अमेरिकी डालर के बैंक धोखाधड़ी मामले में 5,100 करोड़ रुपए का भुगतान करके समझौता करने की अनुमति दे दी और सभी कार्यवाही रद्द कर दी।

इससे यह बहस छिड़ गई कि क्या बड़े आर्थिक अपराधी छूट को खरीद सकते हैं। कानूनी विशेषज्ञों और ईडी को चिंता है कि इससे माल्या और मोदी जैसे अन्य भगोड़ों को भी ऐसे समझौते करने के लिए प्रोत्साहन मिल सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने 19 नवंबर को स्टर्लिंग बायोटेक लिमिटेड के प्रमोटर संदेसरा बंधुओं और उनके चार्टर्ड अकाउंटेंट के खिलाफ सभी दीवानी और आपराधिक कार्यवाही को समाप्त करने पर सहमति व्यक्त की, बशर्ते वे 17 दिसंबर तक या उससे पहले सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री को 5,100 करोड़ रुपए जुर्माने और ब्याज सहित कुल कथित धोखाधड़ी राशि का लगभग एक तिहाई पूर्ण और अंतिम भुगतान के रूप में जमा कर दें।

साल 1985 में स्थापित स्टर्लिंग बायोटेक लिमिटेड गुजरात स्थित संदेसरा समूह की कंपनी है। इसका स्वामित्व नितिन और चेतन जयंतीलाल संदेसरा भाइयों के पास है। दोनों भाइयों की एक और कंपनी है। इसका नाम स्टर्लिंग आयल एक्सप्लोरेशन एंड एनर्जी प्रोडक्शन लिमिटेड है। इसकी स्थापना साल 2003 में हुई थी और इसका मुख्यालय नाइजीरिया में है। संदेसरा परिवार 2017 में अल्बानियाई पासपोर्ट पर भारत छोड़कर चला गया क्योंकि उन्हें केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआइओ) और आयकर विभाग सहित कई एजंसियों द्वारा ऋण धोखाधड़ी के कई आरोपों का सामना करना पड़ रहा था। साल 2020 में, उन्हें साल 2018 के एक कानून के तहत भगोड़ा आर्थिक अपराधी घोषित किया गया था। इसके तहत दीवानी मुकदमों में भाग लेने की उनकी क्षमता भी निलंबित कर दी गई और संपत्तियों की कुर्की अनिवार्य कर दी गई।

उनके खिलाफ मामले की बात करें तो, इसमें 5,383 करोड़ रुपए से ज्यादा के ऋण शामिल हैं। सीबीआइ के अनुसार, इस पैसे को मुखौटा कंपनियों के जरिए संदेसरा बंधुओं के विदेशों में व्यापारिक संचालन और निजी जेट और महंगी अचल संपत्ति सहित निजी विलासिता वाली संपत्तियों को निधि देने के लिए इस्तेमाल किया गया था। सीबीआइ ने साल 2017 में कथित धोखाधड़ी की राशि 5,383 करोड़ रुपए बताई थी। समय के साथ, जुर्माने और ब्याज के चक्रवृद्धि होने से बैंकों को देय कुल राशि में काफी वृद्धि हुई, और ईडी के अनुमान के अनुसार अब धोखाधड़ी की कुल राशि 16,000 करोड़ रुपए या लगभग 1.6 अरब अमेरिकी डालर से अधिक है।

न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई ने अपने आदेश में कहा कि कार्यवाही की सामान्य भावना सार्वजनिक धन की रक्षा करने और गबन की गई राशि को वापस पाने के इरादे को दर्शाती है और चूंकि सार्वजनिक धन उधारदाताओं को लौटाया जा रहा था, इसलिए भाइयों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रखने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा।
गौरतलब है कि प्रवर्तन निदेशालय, जिसने संदेसरा परिवार से जुड़ी कंपनियों की 14,550 करोड़ रुपए की अचल और चल संपत्तियों को जब्त किया था, सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष कार्यवाही में पक्षकार नहीं था।

हालांकि, सीबीआइ ने 2017 में संदेसरा परिवार और उनकी कंपनी स्टर्लिंग बायोटेक के खिलाफ मामला दर्ज किया था। प्रवर्तन निदेशालय का मानना है कि संदेसरा को खुद को मुसीबत से बाहर निकालने की अनुमति देने वाले आदेश का संदर्भ अन्य भगोड़े आर्थिक अपराधियों द्वारा दिया जा सकता है।

एजंसी के सूत्रों ने बताया कि विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे भगोड़े लंबे समय से अपनी संपत्तियों की कुर्की का विरोध करते रहे हैं। वे अपनी अनुपस्थिति में संपत्तियों को जब्त करने की वैधता और कार्यप्रणाली को चुनौती देते हैं।

संदेसरा बंधुओं को मिली छूट के संदेश पर चिंता

पिछले महीने, सुप्रीम कोर्ट ने भगोड़े संदेसरा भाइयों के खिलाफ मामले वापस लेने पर सहमति जताई थी। शर्त यह थी कि वे 5,100 करोड़ रुपए का पूर्ण और अंतिम भुगतान करें। साथ में कोर्ट ने यह भी कहा कि इस आदेश को मिसाल के तौर पर नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने भगोड़े संदेसरा बंधुओं को 1.6 अरब अमेरिकी डालर के बैंक धोखाधड़ी मामले में 5,100 करोड़ रुपए का भुगतान करके समझौता करने की अनुमति दे दी और सभी कार्यवाही रद्द कर दी।

इससे यह बहस छिड़ गई कि क्या बड़े आर्थिक अपराधी छूट को खरीद सकते हैं। कानूनी विशेषज्ञों और ईडी को चिंता है कि इससे माल्या और मोदी जैसे अन्य भगोड़ों को भी ऐसे समझौते करने के लिए प्रोत्साहन मिल सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने 19 नवंबर को स्टर्लिंग बायोटेक लिमिटेड के प्रमोटर संदेसरा बंधुओं और उनके चार्टर्ड अकाउंटेंट के खिलाफ सभी दीवानी और आपराधिक कार्यवाही को समाप्त करने पर सहमति व्यक्त की, बशर्ते वे 17 दिसंबर तक या उससे पहले सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री को 5,100 करोड़ रुपए जुर्माने और ब्याज सहित कुल कथित धोखाधड़ी राशि का लगभग एक तिहाई पूर्ण और अंतिम भुगतान के रूप में जमा कर दें।

साल 1985 में स्थापित स्टर्लिंग बायोटेक लिमिटेड गुजरात स्थित संदेसरा समूह की कंपनी है। इसका स्वामित्व नितिन और चेतन जयंतीलाल संदेसरा भाइयों के पास है। दोनों भाइयों की एक और कंपनी है। इसका नाम स्टर्लिंग आयल एक्सप्लोरेशन एंड एनर्जी प्रोडक्शन लिमिटेड है। इसकी स्थापना साल 2003 में हुई थी और इसका मुख्यालय नाइजीरिया में है। संदेसरा परिवार 2017 में अल्बानियाई पासपोर्ट पर भारत छोड़कर चला गया क्योंकि उन्हें केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआइओ) और आयकर विभाग सहित कई एजंसियों द्वारा ऋण धोखाधड़ी के कई आरोपों का सामना करना पड़ रहा था। साल 2020 में, उन्हें साल 2018 के एक कानून के तहत भगोड़ा आर्थिक अपराधी घोषित किया गया था। इसके तहत दीवानी मुकदमों में भाग लेने की उनकी क्षमता भी निलंबित कर दी गई और संपत्तियों की कुर्की अनिवार्य कर दी गई।

उनके खिलाफ मामले की बात करें तो, इसमें 5,383 करोड़ रुपए से ज्यादा के ऋण शामिल हैं। सीबीआइ के अनुसार, इस पैसे को मुखौटा कंपनियों के जरिए संदेसरा बंधुओं के विदेशों में व्यापारिक संचालन और निजी जेट और महंगी अचल संपत्ति सहित निजी विलासिता वाली संपत्तियों को निधि देने के लिए इस्तेमाल किया गया था। सीबीआइ ने साल 2017 में कथित धोखाधड़ी की राशि 5,383 करोड़ रुपए बताई थी। समय के साथ, जुर्माने और ब्याज के चक्रवृद्धि होने से बैंकों को देय कुल राशि में काफी वृद्धि हुई, और ईडी के अनुमान के अनुसार अब धोखाधड़ी की कुल राशि 16,000 करोड़ रुपए या लगभग 1.6 अरब अमेरिकी डालर से अधिक है।

न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई ने अपने आदेश में कहा कि कार्यवाही की सामान्य भावना सार्वजनिक धन की रक्षा करने और गबन की गई राशि को वापस पाने के इरादे को दर्शाती है और चूंकि सार्वजनिक धन उधारदाताओं को लौटाया जा रहा था, इसलिए भाइयों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रखने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा।

गौरतलब है कि प्रवर्तन निदेशालय, जिसने संदेसरा परिवार से जुड़ी कंपनियों की 14,550 करोड़ रुपए की अचल और चल संपत्तियों को जब्त किया था, सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष कार्यवाही में पक्षकार नहीं था। हालांकि, सीबीआइ ने 2017 में संदेसरा परिवार और उनकी कंपनी स्टर्लिंग बायोटेक के खिलाफ मामला दर्ज किया था। प्रवर्तन निदेशालय का मानना है कि संदेसरा को खुद को मुसीबत से बाहर निकालने की अनुमति देने वाले आदेश का संदर्भ अन्य भगोड़े आर्थिक अपराधियों द्वारा दिया जा सकता है।

एजंसी के सूत्रों ने बताया कि विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे भगोड़े लंबे समय से अपनी संपत्तियों की कुर्की का विरोध करते रहे हैं। वे अपनी अनुपस्थिति में संपत्तियों को जब्त करने की वैधता और कार्यप्रणाली को चुनौती देते हैं।