साल 2001 में शीतकालीन सत्र के दौरान संसद भवन पर आतंकी हमला हुआ था। हमले की रोज यानी 13 दिसंबर 2001 को संसद के भीतर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, विपक्ष की नेता सोनिया गांधी समेत सैकड़ों सांसद मौजूद थे। पत्रकार कुलदीप नैयर भी उन दिनों
राज्यसभा सांसद हुआ करते थे।

नैयर संसद से बाहर निकल ही रहे थे कि आतंकियों ने हमला शुरू कर दिया। वह भागते हुए दीवार के पास जाकर छिपे, तभी उन्हें एक सुरक्षाकर्मी दिखा, उन्होंने उससे खीजते हुए कहा, ”हम हथियार मांगते रहे हैं, लेकिन गृह मंत्रालय सुनने को तैयार नहीं है।”

हमले के 15 मिनट बाद बजा सायरन

नैयर अपनी आत्मकथा में हैरान होते हुए बताते हैं कि संसद का इमरजेंसी सायरन गोलीबारी शुरू होने के करीब 15 मिनट बाद बजा था। गौरतलब है कि हलमा सुबह 11 बजकर 25 मिनट पर शुरू हुआ था। हमले को काबू करने में ज्यादा देर इसलिए भी लगा क्योंकि तब संसद में हथियारबंद सुरक्षाकर्मियों नहीं रखे जाते थे। जो टीम संसद की सुरक्षा का काम देखती थी उसे पार्लियामेंट हाउस वॉच और वॉच स्टाफ कहा जाता था।

बाहर निकलने से डर रही थीं सुषमा स्वराज?

तब केंद्र में भाजपा की सरकार थी और दिवंगत सुषमा स्वराज सूचना और प्रसारण मंत्री हुआ करती थी। हमला शुरू होने के करीब दो घंटे बाद सेंट्रल हॉल की मेज पर प्रमोद महाजन खड़े हुए। उन्होंने बताया कि हमला रुक चुका है। आतंकी मारे जा चुके हैं। अब सभी लोग बाहर जा सकते हैं। उन्होंने सबसे पहले महिलाओं को जाने के लिए कहा। सुषमा स्वराज ने महिलाओं के जत्थे के साथ जाने से मना कर दिया। नैयर याद करते हैं कि उन्होंने कहा, ‘मैं पता लगाना चाहती हूं कि क्या हुआ था?’

एके-47 और हैंड ग्रेनेड से लैस थे आतंकी

पिछले कई दिनों से सदन में महिला आरक्षण बिल को लेकर बहस भी चल रही थी इसलिए 13 दिसंबर को मीडिया का भी जमावड़ा लगा था। संसद भवन पर हमला करने के लिए कुल पांच आतंकी एम्बेसडर कार से आए थे। सभी एके-47 बंदूकों और हैंड ग्रेनेड से लैस थे।  इस हमले में कुल चौदह लोगों की मौत हुई थी, जिसमें से 5 आतंकी और शेष सुरक्षाकर्मी थे।

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