रशीद किदवई ने अपनी किताब ‘THE HOUSE OF SCINDIAS’ में सिंधिया परिवार और उनके निजी जीवन से लेकर राजनीतिक जीवन तक का विस्तृत वर्णन किया है। उनमें से ही एक किस्सा विजया राजे के चुनाव प्रचार में उतरने का है।

बात 1962 के आम चुनाव की है जब विजया राजे ग्वालियर की राजमाता के रूप में मतदाताओं के पास उनकी सबसे छोटी बेटी यशोधरा के लिए वोट मांगने और चुनाव प्रचार करने जाती थीं। युवा यशोधरा उनके साथ जाती थीं लेकिन जब उनकी मां राजनीतिक भाषण देती थीं।

जब राजमाता से मिलने के लिए भी दौरे पर जातीं थीं यशोधरा

यशोधरा ने लेखक को बताया था, “अम्मा (राजमाता) कभी भी हमारे या अपने दोस्तों के साथ पार्टी का मजा लेने के लिए नहीं बैठती थीं। वह इस बात को लेकर आश्वस्त थीं कि वह देश में बदलाव लाएंगी।” यशोधरा बताती हैं, “उनका पैर हमेशा एक्सीलेटर पर रहता था। अगर हम छुट्टियों के दौरान उनसे मिलना चाहते हैं तो हमें उनके साथ दौरे पर जाना होता था।”

यशोधरा को जन्मदिन की पार्टी पर लगा झटका

यशोधरा राजे जब हिंदू कैलेंडर के अनुसार इक्कीस वर्ष की हो गईं तब दिल्ली के राजपुर रोड स्थित सिंधिया आवास के ग्वालियर हाउस में उनके लिए एक सरप्राइज पार्टी का आयोजन किया गया था, जिसमें परिवार के करीबी दोस्तों और रिश्तेदारों को आमंत्रित किया गया था।

उस बीच एक संघ कार्यकर्ता ने राजमाता को आधी रात को बुलाया और बताया कि सरकार द्वारा नेताओं को गिरफ्तार किया जा रहा था। राजमाता जन्मदिन की पार्टी में लौट आयीं पर यशोधरा को आभास हो गया था कि सब कुछ ठीक नहीं है। उन्होंने सुना कि राजमाता अपने पूजा कक्ष में गईं और नौकरानी से सामान पैक करने और किसी भी बाहरी व्यक्ति को अंदर न आने देने के लिए कहा। अगली सुबह राजमाता जल्दी चली गईं। उनके जाने के कुछ मिनट बाद यशोधरा ने पुलिस अधिकारियों को दरवाज़ा खटखटाते हुए सुना, जो उनकी मां के बारे में पूछ रहे थे।

सिंधिया आवास पर रेड

कुछ महीनों बाद जब यशोधरा ग्वालियर के जय विलास पैलेस में अकेली थीं तब उनका अधिकारियों से सामना हुआ। राजमाता हिरासत में थीं जबकि माधवराव गिरफ्तारी से बचने के लिए नेपाल में थे। उनकी दो बड़ी बहनें, वसुंधरा और उषा राजस्थान और नेपाल में थीं। माधवराव के दोस्त, राम बत्रा और नुस्ली वाडिया, इस दौरान यशोधरा के साथ खड़े रहे। वह अक्सर बिलों का भुगतान करने और महल के कर्मचारियों को वेतन देने के लिए उन्हें पैसे भी देते थे।

एक दिन, यशोधरा ने सुबह-सुबह जयविलास पैलेस में दस्तक सुनी। आयकर विभाग, राजस्व खुफिया निदेशालय और प्रवर्तन निदेशालय की टीमें तलाशी और जब्ती अभियान के लिए पहुंची थीं। उन्होंने टेलीफोन अपने कब्‍जे में ले ल‍िया और तोशखाना की चाबियां मांगी। जहां महल के उपहार और महंगे आभूषण, कीमती पत्थर, कलाकृतियां और सोना-चांदी रखे जाते थे। सिंधियाओं पर आरोप यह था कि उन्होंने यह जानकारी छुपा ली थी कि उनके पास कितना सोना है। राजमाता ने हालांकि, इस बात पर ज़ोर दिया कि उन्होंने और उनके बेटों ने नियमित रूप से सभी करों का भुगतान किया था।

अधिकारियों ने दी यशोधरा को धमकी

जब तोशखाना की चाभी मांगने पर यशोधरा ने कुछ भी पता होने से इनकार किया तो अधिकारियों ने यशोधरा से साफ शब्दों में कहा कि अगर वह जानकारी छिपाती हैं और सरकारी अधिकारियों के काम में बाधा डालती है, तो उनके खिलाफ मामला दर्ज किया जा सकता है और उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है। यह धमकी सुनकर महल की एक नौकरानी ने कहा कि चाबियां उसके पास हैं। जैसे ही अधिकारी तोशखाना के अंदर घुसे तो यशोधरा ने उन्हें अपने जूते उतारने के लिए कहा क्योंकि सिंधिया तोशखाना को अपना ‘पूजा घर’ मानते थे।

टैक्स अधिकारियों को जब कुछ भी बरामद नहीं हुआ तो उन्होंने टेलीफोन पर बड़ी बरामदगी का दावा किया। यशोधरा की स्वतंत्रता और प्राइवेसी कम हो गई थी क्योंकि उन्हें एक कमरे से दूसरे कमरे में जाने या फोन पर बात करने के लिए भी अधिकारियों से ​​अनुमति लेनी पड़ती थी। तलाशी के बीच में एक टेलीग्राम आया; इसे जब्त कर लिया गया और इसकी तलाशी ली गई क्योंकि कर अधिकारियों को इसके कोडेड या एन्क्रिप्टेड मैसेज होने का संदेह था।

इनकम टैक्स ऑफिसर ‘बीजक’ की तलाश में थे

सिंधिया के करीबी सूत्रों ने बाद में खुलासा किया कि इनकम टैक्स ऑफिसर ‘बीजक’ की तलाश में थे, एक सीक्रेट कोड जो उन्हें गुप्त खजाने तक ले जाता। बीजक और सिंधिया की संपत्ति की कहानी लोककथाओं का हिस्सा रही है।

जैसा कि किताब में बताया गया है सत्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध तक सिंधिया का संपूर्ण उत्तर और मध्य भारत में धाक था और ग्वालियर किला इस क्षेत्र के केंद्र में था। उस युग में, संपत्ति या नकदी छुपाने के लिए कोई बैंक या स्ट्रांगरूम नहीं थे। संपत्ति को सुरक्षित करने के लिए सिंधिया ने धन की रक्षा के लिए रहस्यमयी तहखानों के साथ-साथ बीजक का भी इस्तेमाल किया, जिन्हें ‘गंगाजली’ के नाम से जाना जाता है। केवल ग्वालियर के महाराजा ही गुप्त कोड जानते थे और यह पिता के द्वारा बच्चे को सौंपा जाता था।

खो गया राग विजया

ग्वालियर दरबार में किसी को भी बीजक या गंगाजली के रहस्यमय कक्षों के बारे में नहीं पता था। इंदिरा गांधी शासन का शायद यह मानना ​​था कि ऐसे कई अनदेखे कक्ष हैं जहां से छिपा हुआ धन बरामद किया जा सकता है। 1975 की छापेमारी के बारे में परस्पर विरोधी दावे किए गए हैं। जहां अधिकारियों ने दावा किया कि भारी मात्रा में सोना और चांदी जब्त किया गया, वहीं सिंधिया का कहना ​​था कि कुछ भी नहीं मिला। टैक्स विभाग और अन्य एजेंसियों के अधिकारियों ने उस सामग्री को नष्ट कर दिया जो अमूल्य थी।

ऐसा ही एक आइटम एक लेटर था जिसमें 1953 में विजया राजे के नाम पर भारतीय शास्त्रीय संगीत की सबसे बड़ी किंवदंती, उस्ताद अलाउद्दीन खान द्वारा रचित एक राग के नोटेशन शामिल थे। छापेमारी करने वाले कानून प्रवर्तन अधिकारियों ने नोटेशन को किसी तरह का रहस्य समझ लिया। उन्‍होंने उसे जब्त कर लिया और राग विजया हमेशा के लिए खो गया।