कांग्रेस महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल आजकल एक गलत कारण से चर्चा में हैंं। पार्टी के पूर्व नेता संजय निरुपम ने कांग्रेस पार्टी पर टिप्पणी करते हुए कहा कि पार्टी में पावर के 5 सेंटर हैं। निरुपम ने कहा कि आज कांग्रेस में सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और केसी वेणुगोपाल एक पावर सेंटर बन गए हैं। कांग्रेस छोड़ने वाली केरल की नेता पद्मजा वेणुगोपाल ने भी कहा है कि आज पार्टी में हमारी बात सुनने वाला कोई भी नहीं रह गया था। पहले भी कांगेस के कई नेता वेणुगोपाल को कांग्रेस की सत्ता का केंद्र बता चुके हैं।
कांग्रेस के लोग बताते हैं कि आज की तारीख में के सी वेणुगोपाल ही पार्टी के आंख और कान हैं। एआईसीसी के संगठन प्रभारी महासचिव राहुल गांधी के लिए वही हैं जो दिवंगत अहमद पटेल सोनिया गांधी के लिए थे। उन पर कांग्रेस के सर्वोच्च नेता तक अन्य नेताओं की पहुंच को कंट्रोल करने का भी आरोप है।
1991 में वेणुगोपाल पहली बार तब सुर्खियों में आए जब केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री और उनके गुरु करुणाकरण ने उन्हें कासरगोड से लोकसभा का टिकट दिलाया था। उस समय सिर्फ 28 साल के और पार्टी छात्र विंग के अध्यक्ष थे, हालांकि इस चुनाव में वेणुगोपाल मामूली अंतर से हार गए थे।
राजनीति में केसी वेणुगोपाल के कदम
साल 1995 तक, केसी वेणुगोपाल और उनके गुरु के बीच मतभेद हो गए। अर्जुन सिंह को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित करने के तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष और प्रधान मंत्री पीवी नरसिम्हा राव के फैसले पर सार्वजनिक रूप से करुणाकरण के खिलाफ हो गए थे। अर्जुन सिंह का खुले तौर पर समर्थन करते हुए, वेणुगोपाल ने करुणाकरण से अलग रुख अपनाया था। करुणाकरण राव के साथ जुड़े हुए थे और उन्हें उनका संरक्षण प्राप्त था। पर राज्य में उन्हें अपने समर्थकों के बढ़ते विरोध का सामना करना पड़ रहा था।
वेणुगोपाल पहली बार 1996 में विधायक बने
वेणुगोपाल पहली बार 1996 में विधायक बने, इसके बाद 2001 और 2006 में फिर से जीते। 2004 में वह ओमन चांडी सरकार में मंत्री बने। 2009 तक वह एक लोकसभा सांसद थे और अगले दो सालों में वह एक केंद्रीय राज्य मंत्री बन गए। 2014 में, जब पूरे देश में कांग्रेस का सफाया हो गया था, वेणुगोपाल केरल से जीतने वाले मुट्ठी भर सांसदों में से थे और उन्हें पार्टी का व्हिप बनाया गया था।
स्कूल के दौरान स्टूडेंट एक्टिविस्ट, कॉलेज में वॉलीबॉल प्लेयर, गणित में स्नातकोत्तर और कन्नूर की हिंसक राजनीति से उभरे एक नेता, वेणुगोपाल ने न केवल राजनीति में निपुणता दिखाई है बल्कि पक्ष चुनने में भी निपुणता दिखाई है। वह जानते हैं कि कांग्रेस पार्टी में वफादारी को सर्वोच्च स्थान दिया जाता है, उनके करीबीयों का कहना है कि उन्होंने नेतृत्व के लिए काफी हद तक अपनी वफादारी को प्रदर्शित भी किया है।
राहुल गांधी के फेवरेट
केसी वेणुगोपाल ने अपनी राजनीतिक कुशलता का पर्याप्त सबूत भी दिया है। उनके विश्वासपात्रों का कहना है कि उन्होंने राहुल को 2019 के चुनावों में केरल के वायनाड में दूसरी सीट से लड़ने के लिए मनाया था क्योंकि उन्होंने उत्तर प्रदेश में राजनीतिक हवा को सही ढंग से समझ लिया था। हुआ भी कुछ ऐसा ही राहुल वायनाड से जीते थे और अमेठी से हार गए थे।
हालांकि, उनके आलोचकों ने तब अमेठी में राहुल और हिंंदी पट्टी में कांग्रेस की हार को मुस्लिम बहुल वायनाड से लड़ने के राहुल के फैसले से जोड़ा था। लेकिन, इसके बाद भी वेणुगोपाल का कद पार्टी में कम नहीं हुआ।
साफ छवि के नेता माने जाने वाले केसी वेणुगोपाल को राहुल गांधी ने अशोक गहलोत की जगह एआईसीसी संगठन प्रभारी महासचिव के रूप में चुना था। गहलोत तब राजस्थान भेजे जा रहे थे। राहुल के फैसले पर सब हैरान थे क्योंकि वेणुगोपाल के पास संगठन चलाने और देश भर के पार्टी नेताओं के साथ तालमेल बनाने का अनुभव नहीं था लेकिन वेणुगोपाल ने राहुल का विश्वास जीता। दो-तीन साल में ही वेणुगोपाल कांग्रेस में महत्वपूर्ण भूमिकाओं में आ गए। पार्टी में महत्वपूर्ण पद और चुनावी टिकट दिलाने जैसे महत्वपूर्ण काम में भी उनकी भूमिका अहम हो गई थी।
लोकसभा चुनाव 2024 के मैदान में उतरे
कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव 2024 के लिए 8 मार्च को 39 प्रत्याशियों के नामों की पहली सूची जारी की थी जिसमें केसी वेणुगोपाल को भी चुनावी मैदान में उतारा गया है। पार्टी ने केसी वेणुगोपाल को केरल के अलाप्पुझा लोकसभा सीट से टिकट दिया है। केसी वेणुगोपाल पहले से ही राजस्थान से राज्यसभा सांसद हैं। बावजूद इसके कांग्रेस ने अपने सीनियर नेता को लोकसभा चुनाव में उतारने का निर्णय लिया है। इसके पीछे एक बड़ी वजह यह मानी जाती है कि केरल की अलाप्पुझा लोकसभा सीट से वह 2009 से 2014 तक जीतते आए थे।
केसी वेणुगोपाल ने इस सीट से 2019 का चुनाव नहीं लड़ा था और 2020 में वह राज्यसभा चले गए थे। उनके इस सीट से चुनाव नहीं लड़ने से कांग्रेस के हाथ से यह सीट फिसल गई थी, जिसके बाद 2024 लोकसभा चुनाव में इस सीट से उनको दोबारा मैदान में उतारा गया है।