हाल ही में AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने लोकसभा चुनाव में एआईएडीएमके को समर्थन देने का ऐलान किया है। हैदराबाद सांसद ने कहा कि AIADMK ने उन्हें यह आश्वासन दिया है कि वह बीजेपी के साथ गठबंधन नहीं करने वाले हैं। हैदराबाद सीट पर 10 बार से सिर्फ एक ही पार्टी का उम्मीदवार लगातार जीतते आ रहा है। इस सीट पर AIMIM 1984 से लगातार जीतती आ रही है, दूसरी पार्टी का कोई उम्मीदवार सामने मैदान में टिक ही नहीं पाया। आइए जानते हैं देश के ताकतवर राजनीतिक परिवारों में से एक ओवैसी परिवार के बारे में।

क्या ओवैसी के पूर्वज ब्राह्मण थे?

सबसे पहले बात करते हैं उस सवाल का जो अक्सर उठाया जाता है कि क्या असदुद्दीन ओवैसी के पूर्वज ब्राह्मण थे? दरअसल, जुलाई 2021 में राज्यसभा सांसद प्रोफेसर राकेश सिन्हा ने दावा किया था कि चार पीढ़ी पहले असदुद्दीन ओवैसी के पूर्वज हैदराबाद के ब्राह्मण थे। धर्म बदलने के बाद वह मुस्लिम बने। इससे पहले 2017 में राकेश सिन्हा ने जब ओवैसी के पूर्वजों को हैदराबाद का ब्राह्मण बताया था तो असदुद्दीन ने इसका जवाब देते हुए कहा था, ‘नहीं, मेरे परदादा, उनके परदादा और उनके परदादा और सभी दादा पैगंबर आदम से आए थे।’

अगस्त 2023 में जम्मू-कश्मीर के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा था कि भारत में पैदा हुआ प्रत्येक व्यक्ति स्वाभाविक रूप से हिंदू है। इसके बाद दोबारा सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने दावा किया कि असदुद्दीन ओवैसी के दादा अब्दुल वहीद का नाम तुलसीराम दास था। उन्होंने अपना धर्म बदल लिया था और मुस्लिम धर्म को स्वीकार करने से पहले वह ब्राह्मण थे।

ऐसी बातें करने वालों को करारा जवाब देते हुए ओवैसी ने कहा था, “यह मेरे लिए हमेशा मजेदार होता है कि जब उन्हें वंश गढ़ना होता है, तब भी संघियों को मेरे लिए एक ब्राह्मण पूर्वज ढूंढना पड़ता है। हम सभी को अपने कर्मों का जवाब देना होगा। हम सभी आदम और हव्वा के बच्चे हैं। जहां तक मेरी बात है, मुसलमानों के समान अधिकारों और नागरिकता के लिए लोकतांत्रिक संघर्ष आधुनिक भारत की आत्मा की लड़ाई है। यह ‘हिंदूफोबिया’ नहीं है।” ऐसे में ओवैसी के पूर्वजों के ब्राह्मण होने का कोई पुख्ता सुबूत नहीं मिलता है।

कैसी हुई MIM की शुरुआत?

बहुत समय पहले, निजाम नामक राजाओं का एक समूह था जो हैदराबाद में शासन करता था। उनमें से एक, जिसका नाम आसफ जाह मुजफ्फुरुल मुल्क सर मीर उस्मान अली खान था वह 1911 में हैदराबाद का राजा बना। हैदराबाद रिसायत के एक व्यक्ति बहादुर यार जंग और उनके दोस्तों ने मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन यानी एमआईएम नामक एक समूह शुरू किया क्योंकि वो मुसलमानों के लिए अपनी संस्कृति और धर्म के बारे में अपने विचार साझा करने के लिए एक जगह बनाना चाहते थे। बहादुर यार जंग का 1944 में अचानक निधन हो गया। कुछ लोगों का मानना ​​है कि उन्हें जहर दिया गया था। उनकी मृत्यु के बाद कासिम रजवी ने संगठन के नेता के रूप में पदभार संभाला।

इतिहासकार मोहम्मद नूरुद्दीन खान के मुताबिक, अगस्त 1948 में रजाकारों ने भैरोंपल्ली नामक गांव पर हमला किया। उन्होंने कई लोगों को चोट पहुंचाई और कुछ को मार भी डाला। उन्होंने महिलाओं से रेप किए और 118 लोगों को मार डाला। अगर किसी ने रजाकारों के बारे में कुछ भी बुरा कहने की कोशिश की तो उन्हें भी चोट पहुंचाई गयी या मार दिया गया।

एमआईएम पर लगा प्रतिबंध

भैरोपल्ली घटना के बाद रजवी जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल को खटकने लगे। पटेल नहीं चाहते थे कि हैदराबाद अलग देश बने। 13 सितंबर, 1948 को पटेल ने ऑपरेशन पोलो के लिए भारतीय सेना को हैदराबाद में जाने की अनुमति दी। उन्होंने रजाकारों के खिलाफ 5 दिनों तक लड़ाई लड़ी और अंततः जीत हासिल की। हैदराबाद भारत में शामिल हो गया और सरकार ने एमआईएम समूह को बंद कर दिया और कासिम रजवी को जेल में डाल दिया। 9 साल बाद रजवी को तब रिहा किया गया जब उन्होंने कहा कि वह पाकिस्तान चले जाएंगे, जिसके बाद एमआईएम पर से प्रतिबंध भी हटा लिया गया।

ओवैसी परिवार के हाथ आई MIM की सत्ता

पाकिस्तान जा रहे रजवी ने एमआईएम का नियंत्रण अब्दुल वहीद ओवैसी को दे दिया। 1957 में भारत छोड़ने से पहले, रजवी और अन्य एमआईएम नेताओं ने एक वकील के घर पर एक गुप्त बैठक की। इसमें अब्दुल वहीद ओवैसी भी शामिल हुए। रजवी एमआईएम का नेतृत्व किसी नए व्यक्ति को सौंपना चाहते थे जिसके बाद अब्दुल वहीद ओवैसी एमआईएम के नेता बने।

अब्दुल वहीद ओवैसी ने समूह का नाम बदलकर ऑल-इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) रख दिया और इसे सिर्फ एक मुस्लिम संगठन के बजाय एक राजनीतिक पार्टी में बदल दिया। उनका परिवार 1957 से पार्टी का प्रभारी रहा है और अब उनके पोते असदुद्दीन ओवैसी इसका नेतृत्व कर रहे हैं।

हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में उतरी AIMIM

1960 में पहली बार, AIMIM ने हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में उतरी। उस समय तक चुनाव आयोग में पंजीकृत न होने के कारण पार्टी अपने उम्मीदवारों को स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत करती थी। इस नगर निगम चुनाव में AIMIM ने 24 वार्डों में जीत हासिल की।

ओवैसी परिवार की दूसरी पीढ़ी का राजनीति में प्रवेश

इस दौरान ओवैसी परिवार की दूसरी पीढ़ी का राजनीति में प्रवेश हुआ। हैदराबाद नगर निगम के मल्लेपल्ली वार्ड से अब्दुल वहीद ओवैसी ने अपने बेटे सलाहुद्दीन ओवैसी को उम्मीदवार बनाया था। सलाहुद्दीन ने इस नगर निगम चुनाव में जीत हासिल की। दो साल बाद, आंध्र प्रदेश विधानसभा के लिए चुनाव आयोजित किया गया। इस चुनाव में सलाहुद्दीन ने पथरघट्टी विधानसभा से पहली बार जीत हासिल की और विधायक बने।

1975 में अब्दुल वहीद ओवैसी हज जाने के लिए निकलने ही वाले थे कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उनका निधन हो गया। अब्दुल वहीद ओवैसी के निधन के बाद, उनके बेटे सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी ने पार्टी की नेतृत्व संभाला। 1984 में सलाहुद्दीन हैदराबाद से लोकसभा चुनाव जीते। इसके बाद साल 2004 13 मई 1969 को हैदराबाद में जन्मे असदुद्दीन ओवैसी ने राजनीति में कदम रखा। पहले उन्होंने लंदन से कानून की पढ़ाई की थी, फिर लौटकर उनके पिता सलाहुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व में AIMIM पार्टी में शामिल हो गए।

असदुद्दीन ओवैसी की राजनीति में एंट्री

1994 में अपने पिता की ही तरह सलाहुद्दीन ने अपने बेटे असदुद्दीन को राजनीति में प्रवेश कराने का निर्णय लिया। ओवैसी राजनीति में आने से पहले लंदन से कानून की पढ़ाई कर रहे थे। असदुद्दीन ने 1994 में आंध्र प्रदेश विधान सभा चुनाव से अपनी राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। चारमीनार निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ते हुए उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी मजलिस बचाओ तहरीक के उम्मीदवार को 40 हजार वोटों के अंतर से हराया था। चारमीनार निर्वाचन क्षेत्र से उनकी पार्टी 1967 से जीत रही थी। 1999 में उन्होंने फिर से उसी क्षेत्र से चुनाव लड़ा और भारी बहुमत से जीत हासिल की।

2004 में अपने पिता के बाद पहली बार असदुद्दीन ओवैसी ने हैदराबाद लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। उसके बाद से वो लगातार इस सीट पर चुनाव जीत रहे हैं। 2008 में, असदुद्दीन ओवैसी को AIMIM का अध्यक्ष नियुक्त किया गया, वो भी बिना किसी विरोध के। सलाहुद्दीन के समय में AIMIM आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और कर्नाटक के इलाकों में सक्रिय थी पर असदुद्दीन ने इसे राष्ट्रीय पहचान दिलाई।

असदुद्दीन ओवैसी के भाई के राजनीति में कदम

जब असदुद्दीन लंदन में कानून की पढ़ाई कर रहे थे तब असदुद्दीन के छोटे भाई अकबरुद्दीन अक्सर अपने पिता के साथ राजनीतिक कार्यक्रमों में जाते थे। पिता चाहते थे कि अकबरुद्दीन अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी करें और डॉक्टर बनें लेकिन उन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी।

इसी दौरान सलाहुद्दीन को पता चला कि अकबरुद्दीन का एक ईसाई लड़की के साथ अफेयर चल रहा है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस घटना के बाद पिता-पुत्र के बीच रिश्ते तनावपूर्ण हो गए। 1995 में अकबरुद्दीन ने अपने परिवार से बगावत कर अपनी गर्लफ्रेंड सबीना से शादी कर ली।

बात 1998 की है जब सलाहुद्दीन का स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता जा रहा था। इस बीच ओवैसी परिवार के वफादार रहे अमानुल्लाह खान ने अपना परिवार छोड़ दिया और मजलिस बचाओ तहरीक पार्टी की स्थापना की। 1999 में आम चुनाव होने थे और अमानुल्लाह पहले भी पांच बार चंद्रयानगुट्टा सीट जीत चुके थे। सलाहुद्दीन को लगा कि उसका इकलौता बेटा अकबरुद्दीन अमानुल्लाह को हरा सकता है। एक दिन सलाउद्दीन ने बेटे अकबरुद्दीन को अपने पास बुलाया। पिता-पुत्र के बीच बातचीत हुई और सारे मतभेद दूर हो गये। जिसके बाद कहा गया कि सबीना धर्म बदलकर मुस्लिम बनेंगी और उनका नाम सबीना फरजानेह होगा। 1999 में अकबरुद्दीन ने चुनाव में अमानुल्लाह के खिलाफ चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।

क्रिकेटर बनना चाहते थे असदुद्दीन ओवैसी

असदुद्दीन औवेसी ने एक इंटरव्यू में बताया था कि जब वह छोटे थे तो क्रिकेटर बनना चाहते थे। उन्होंने बताया था कि 1994 में विज्जी ट्रॉफी टूर्नामेंट में वह उस्मानिया यूनिवर्सिटी के लिए खेले थे और देश के मशहूर क्रिकेटर वेंकटेश प्रसाद बेंगलुरु टीम के लिए खेले थे। उन्होंने बतौर ओपनर उस मैच में छह विकेट लिए थे जबकि वेंकटेश प्रसाद ने सिर्फ दो विकेट लिए थे। ओवैसी ने बताया था कि उन्हें साउथ जोन यूनिवर्सिटी टीम में चुना गया लेकिन वेंकटेश प्रसाद को नहीं। हालांकि, बाद में पिता ने उन्हें अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने की सलाह दी और लंदन पढ़ने के लिए भेजा। लंदन से लौटकर अपने पिता के कहने पर वह राजनीति में आ गए।

कैसे असदुद्दीन ओवैसी ने AIMIM को दिलाई राष्ट्रीय पहचान?

असदुद्दीन ऑल-इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) पार्टी के तीसरे राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। पहले उनके पिता और दादा इसके प्रेसीडेंट रह चुके हैं। 2012 में, AIMIM ने पहली बार आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बाहर किसी अन्य राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इस साल महाराष्ट्र के नांदेड़ नगर निगम चुनाव में AIMIM ने 81 में से 11 सीटें जीतीं। 2015 में, एमआईएम ने 113 सीटों वाले औरंगाबाद नगर निगम के लिए 54 उम्मीदवार उतारे, जिनमें से 26 जीते।

ऐसी जीतों से AIMIM की हिम्मत बढ़ी और ऐसा लगा कि महाराष्ट्र में इसकी गुंजाइश है। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने पांच सीटें जीतीं। हालांकि, बाद में उनके चार विधायक लालू यादव की पार्टी राजद में शामिल हो गए। इस तरह, औवेसी की पार्टी ने हिंदी पट्टी के राज्यों में भी अपनी पकड़ बना ली।

हैदराबाद लोकसभा सीट का समीकरण

हैदराबाद अभेद्य औवेसी किला बन गया है। एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन औवेसी के पिता दिवंगत सलाहुद्दीन ओवेसी ने 1984 से 1999 तक अपनी हैदराबाद सीट से लगातार छह चुनाव जीते। इसके बाद 2004 से 2019 तक चार बार असदुद्दीन औवेसी ने यहां झंडा फहराया। औवेसी परिवार लगातार दस बार से यहां सत्ता में है। 2014 और 2019 के चुनावों में, ओवैसी ने दो लाख से अधिक वोट से अन्य उम्मीदवारों को धूल चटाई। 1984 के बाद से इस सीट पर ओवैसी और उनकी पार्टी को कोई चुनौती नहीं दे पाया है। आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू भी एक बार इस सीट से चुनाव लड़े थे और हार गए थे। पूर्व उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने भी 1996 में बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा थे, उन्हें भी हार का मुंह देखना पड़ा था।

इस सीट पर मुस्लिम आवाजों का सबसे ज्यादा प्रभाव है और औवेसी परिवार हमेशा से मुस्लिम राजनीति करता आया है। हाल के वर्षों में जिस तरह से असदुद्दीन औवेसी के छोटे भाई अकबरुद्दीन ओवेसी और अन्य नेताओं ने अपनी सभाओं में खुलेआम विवादास्पद बयान दिए हैं, उससे यह भी पता चलता है कि पार्टी ने हमेशा दिखाया है कि वह अकेली है जो मुसलमानों के बारे में बात करती है। अन्य पार्टियों ने यहां कभी ज्यादा प्रयास नहीं किया। इस बार के लोकसभा चुनाव की बात करें तो भाजपा ने फायरब्रांड नेता माधवी लता को उम्मीदवार बनाया है। माधवी लता पहली बार चुनाव लड़ रही हैं।

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