हरियाणा के विधानसभा चुनाव में एक नया गठबंधन सामने आया है। जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) और चंद्रशेखर आजाद की आसपा (कांशीराम) मिलकर हरियाणा का चुनाव लड़ने जा रहे हैं। इसका ऐलान खुद दुष्यंत चौटाला और चंद्रशेखर आजाद ने सोमवार रात को किया।
जेजेपी का हरियाणा में यह दूसरा विधानसभा चुनाव है जबकि आसपा हरियाणा में पहली बार चुनाव लड़ रही है। जेजेपी का गठन 2018 में हुआ था और आसपा का गठन 2022 में हुआ था।
इस लिहाज से दोनों राजनीतिक दलों के पास बहुत ज्यादा अनुभव नहीं है, ऐसे में हरियाणा की कठिन राजनीति में क्या उनका गठबंधन कुछ सीटों पर असर डाल सकता है, इस खबर में हम इस पर बात करेंगे।

इनेलो ने किया था बसपा से गठबंधन
दुष्यंत चौटाला के चाचा अभय चौटाला (इनेलो) ने पिछले महीने बीएसपी के साथ गठबंधन किया था। इस गठबंधन के बनने के बाद से ही अटकलें लगाई जा रही थी कि जेजेपी भी चुनाव में गठबंधन के सहारे ही उतरेगी। हालांकि इस तरह की भी अटकलें थी कि वह आम आदमी पार्टी (आप) के साथ गठबंधन कर सकती है लेकिन आप इसके लिए तैयार नहीं हुई।
हरियाणा में विधानसभा की 90 सीटें हैं।
पिछले कुछ विधानसभा चुनावों में इनेलो को मिली सीटें
राजनीतिक दल | विधानसभा चुनाव 2009 में मिली सीट | विधानसभा चुनाव 2014 में मिली सीट | विधानसभा चुनाव 2019 में मिली सीट |
कांग्रेस | 40 | 15 | 31 |
बीजेपी | 4 | 47 | 40 |
इनेलो | 31 | 19 | 1 |
जेजेपी | – | – | 10 |
हजकां(बीएल) | 6 | 2 | – |
अन्य | 9 | 7 | 8 |
युवा तुर्क हैं दुष्यंत और चंद्रशेखर
दुष्यंत चौटाला और चंद्रशेखर आजाद दोनों ही राजनीति में एकदम युवा हैं और दोनों ने ही पिछले कुछ सालों में काफी तेजी से तरक्की की है। दुष्यंत चौटाला मात्र 26 साल की उम्र में लोकसभा का चुनाव जीते थे और 31 साल की उम्र में हरियाणा के उपमुख्यमंत्री बन गए थे।

पहले चुनाव में ही जीतीं 10 सीटें
जेजेपी ने 2019 में जब पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा तो 10 सीटों पर जीत हासिल की थी। निश्चित रूप से यह हरियाणा में उसके लिए बहुत बड़ी कामयाबी थी। इसके पीछे दुष्यंत चौटाला को बड़ी वजह माना गया था।
नगीना से जीते चंद्रशेखर आजाद
दूसरी ओर, चंद्रशेखर आजाद ने पिछले कुछ ही सालों में सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक जबरदस्त लोकप्रियता हासिल की है। बसपा के संस्थापक कांशीराम को अपना आदर्श मानने वाले चंद्रशेखर ने 2024 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम उत्तर प्रदेश की नगीना लोकसभा सीट से बड़ी जीत दर्ज कर राजनीतिक विश्लेषकों को हैरान कर दिया था। उन्हें डेढ़ लाख से ज्यादा वोटों से जीत मिली थी।

जेजेपी की हालत कमजोर, पार्टी में भगदड़ वाले हालात
जेजेपी ने 10 सीटें जीतकर अपने राजनीतिक सफर का शानदार आगाज किया था लेकिन अब वह मुश्किलों में फंसी हुई दिख रही है। 10 में से सात विधायक पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं और अब सिर्फ तीन विधायक ही उसके पास बचे हैं। इसके अलावा हरियाणा जेजेपी के अध्यक्ष रहे निशान सिंह सहित कई नेता पार्टी का साथ छोड़कर चले गए।
लोकसभा चुनाव में भी जेजेपी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है और वह किसी सीट पर जीत दर्ज नहीं कर सकी। उसकी हालत इस कदर खराब रही कि वह एक प्रतिशत वोट भी हासिल नहीं कर पाई। जेजेपी लोकसभा चुनाव में हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में से किसी एक सीट पर भी बढ़त नहीं बना सकी।
दुष्यंत चौटाला की मां नैना चौटाला को हिसार लोकसभा सीट पर सिर्फ 22032 वोट मिले जबकि 2014 में दुष्यंत चौटाला इस सीट से चुनाव जीते थे। नैना चौटाला वर्तमान में विधायक भी हैं।
जेजेपी को लोकसभा चुनाव 2024 में मिले वोट
लोकसभा सीट | मिले वोट |
भिवानी-महेंद्रगढ़ | 15,265 |
हिसार | 22032 |
गुरुग्राम | 13,278 |
सिरसा | 20,080 |
हरियाणा में किसान आंदोलन की वजह से दुष्यंत चौटाला को बड़े पैमाने पर किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा था। उनके चाचा अभय चौटाला ने किसानों के समर्थन में विधानसभा से इस्तीफा देकर अपनी छवि को मजबूत किया था। हरियाणा की राजनीति में किसानों के अच्छे-खासे दखल को देखते हुए और पार्टी में लगातार हो रही भगदड़ के बाद चुनाव में जेजेपी की हालत बेहतर नहीं कही जा सकती।
चंद्रशेखर आजाद की पार्टी आसपा का हरियाणा में कोई जनाधार नहीं है लेकिन उनके लोकसभा का सांसद चुने जाने के बाद पार्टी के कार्यकर्ताओं में जोश और उत्साह जरूर है।
अब बात करते हैं कि हरियाणा में इन दोनों दलों का गठबंधन कितना असर कर सकता है?
दलित मतदाताओं का समर्थन हासिल कर रहे चंद्रशेखर
चंद्रशेखर आजाद की पार्टी को मूल रूप से दलित मतदाताओं की समर्थक पार्टी माना जाता है। दुष्यंत चौटाला हरियाणा में सभी 36 बिरादरी की राजनीति करने की बात करते हैं। लेकिन जेजेपी इनेलो से ही निकली है और इसके मुखिया अजय चौटाला जाट समुदाय से आते हैं, इसलिए पिछले विधानसभा चुनाव में जाट मतदाताओं ने बहुत हद तक जेजेपी पर भरोसा जताया था।
हरियाणा की राजनीति में निश्चित रूप से जाट और दलित समुदाय राजनीतिक रूप से प्रभावशाली हैं। जाट मतदाता जहां 22 से 25 प्रतिशत हैं, वहीं दलित मतदाता 21 प्रतिशत हैं।
हरियाणा की राजनीति में 30 से 35 विधानसभा सीटों पर जाट मतदाता असर रखते हैं। लेकिन किसान आंदोलन के दौरान दुष्यंत के बीजेपी के साथ न छोड़ने की वजह से जाट और किसान मतदाताओं में जेजेपी के लिए नाराजगी दिखाई दे रही है। हालांकि दुष्यंत ने इसके लिए माफी मांगकर किसान और जाट मतदाताओं की नाराजगी कम करने की कोशिश की है। उन्होंने साफ कहा है कि अब वह बीजेपी के साथ नहीं जाएंगे।
हरियाणा में 17 विधानसभा सीटें हैं आरक्षित
हरियाणा में 17 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं। जेजेपी पिछली बार 10 सीटें जीती थी और 10 सीटों पर वह दूसरे नंबर पर रही थी। जेजेपी की कोशिश इन 20 सीटों पर मजबूती से चुनाव लड़ने की है और अगर उसे चंद्रेशखर की वजह से दलित मतदाताओं का भी समर्थन मिला तो यह गठबंधन कुछ सीटें झटक सकता है।
विधानसभा सीट का नाम | जिला |
मुलाना | अंबाला |
नीलोखेड़ी | करनाल |
इसराना | पानीपत |
साढ़ौरा | यमुनानगर |
शाहाबाद | कुरुक्षेत्र |
नरवाना | जींद |
रतिया | फतेहाबाद |
कालांवाली | सिरसा |
उकलाना | हिसार |
बवानी खेड़ा | भिवानी |
झज्जर | रोहतक |
कलानौर | रोहतक |
बावल | रेवाड़ी |
पटौदी | गुरुग्राम |
होडल | पलवल |
गुहला | कैथल |
खरखौदा | पानीपत |