भारत के हिंदू दशकों से उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की मांग कर रहे थे। यह मांग दो महत्वपूर्ण दावों पर टिकी थी, दोनों ही इतिहासकारों और राजनेताओं के बीच विवाद का मुद्दा हैं। पहला- यह विश्वास है कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था और दूसरा यह दावा कि 16वीं शताब्दी के मुगल सम्राट बाबर के आदेश पर राम जन्मभूमि पर बनी मंदिर को तोड़कर एक मस्जिद का निर्माण करवाया गया था।
राम के जन्मस्थान के रूप में अयोध्या की पवित्रता हिंदुओं में रामायण से आयी। गौरतलब है कि मंदिर के वर्तमान स्थल के अलावा, अयोध्या नाम दुनिया के अन्य हिस्सों में भी मौजूद है। थाईलैंड में अयुत्या साम्राज्य था जिसके बारे में माना जाता है कि इसका नाम रामायण की अयोध्या पर रखा गया था। वहीं वर्तमान पाकिस्तान में भी अजुधियापुर नाम की एक जगह है।
पत्रकार और शोधकर्ता वलय सिंह ने ‘Ayodhya: City of faith, city of discord’ (2018) नाम से एक किताब लिखी है। सिंह ने ‘अयोध्या’ नाम के विभिन्न पहलुओं पर द इंडियन एक्सप्रेस से बात की है:
क्या हम जानते हैं कि रामायण में वर्णित अयोध्या वही जगह है जहां आज मंदिर बनाया जा रहा है?
इतनी सारी रामायणें हैं; आइए वाल्मिकी रामायण लें। इसमें दिए गए विवरण की पुष्टि अब तक हुई सभी खुदाइयों से से भी नहीं होती। यह निष्कर्ष निकालने का कोई तरीका नहीं है कि यह वही अयोध्या है। यह भी हो सकता है कि वह स्थल अब घाघरा/सरयू नदी के नीचे डूब गया हो। राजा राम के साक्ष्यों की कमी को लोगों की आस्था ने ईश्वरीय राम में खोज लिया है। इस प्रकार, आज की अयोध्या राम राज्य और राम पूजा दोनों को समाहित करती है।
क्या रामायण के अन्य संस्करणों में भी राम की जन्मभूमि का नाम अयोध्या ही था? अलग-अलग लेखकों के बीच इस नाम को लोकप्रियता कैसे मिली?
एक कहानी को अनगिनत तरीकों से दोहराया जा सकता है। यह रामायण के बारे में सच है जिसके कई संस्करण और व्याख्याएं हैं। बौद्धों और जैनियों ने अपनी-अपनी विचारधारा के अनुरूप रामायण को फिर से लिखा था। वाल्मीकि और तुलसीदास संस्करणों के साथ इन विभिन्न रामायणों का तुलनात्मक अध्ययन करने पर कुछ स्पष्ट पैटर्न नजर आते हैं। जैनियों के लिए केंद्रीय विषय दीक्षा और निर्वाण (त्याग और मुक्ति) हैं, वाल्मीकि और तुलसीदास के लिए वे धर्म (कर्तव्य) और ब्राह्मणवाद हैं, जबकि बौद्ध धर्म के दशरथ जातक पैमाने में छोटे और दृष्टिकोण में अधिक व्यावहारिक हैं। इन विविधताओं के अलावा, इन कथनों की धार्मिक संरचना में भी कई अंतर हैं।
कुछ विद्वानों का मानना है कि दशरथ जातक रामायण का सबसे पुराना संस्करण है, जबकि अन्य का तर्क है कि यह वाल्मीकि के बाद लिखा गया था। दशरथ जातक में राम की नगरी बनारस है न कि अयोध्या। दोनों दावों के लिए सबूत पर्याप्त नहीं हैं और यह मामला अनिर्णायक है। दूसरों का तर्क है कि यह संभवतः एक मौखिक लोक परंपरा थी, जिसे वाल्मीकि द्वारा एक महाकाव्य-कविता में संकलित किया गया था। जो भी हो, वाल्मीकि कृत विशाल रामायण के विपरीत, दशरथ जातक 2,000 शब्दों से भी कम है।
बौद्ध संस्करण के अलावा, रामायण के लगभग सभी संस्करणों में राम के जन्मस्थान का नाम अयोध्या ही है। इसका पता एक महाकाव्य के रूप में रामायण की लोकप्रियता से लगाया जा सकता है, इसलिए कोई भी नाम बदलना नहीं चाहेगा। रामायण जहां भी गई, उसे स्थानीय रीति-रिवाजों के अनुरूप ढाल लिया गया। मूल आवरण काफी हद तक अपरिवर्तित रहा। लेकिन पुरातात्विक साक्ष्यों के संदर्भ में, यह स्पष्ट नहीं है कि क्या यह वही अयोध्या है जिस पर मंदिर बनाया जा रहा है।
क्या भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के अन्य हिस्से भी हैं जहां अयोध्या नाम मिलता है? यदि हां, तो इसे कैसे समझा जाना चाहिए?
इस बात की अत्यधिक संभावना है कि रामायण ने देश के चारों कोनों तक पहुंचने से पहले ही भारत की वर्तमान सीमा से बाहर निकल चुका था। ऐसा माना जाता है कि थाईलैंड का अयुत्या साम्राज्य रामायण की अयोध्या पर आधारित था। ऐसा पता चलता है कि थाईलैंड (तब सियाम) में कभी हिंदू धर्म का व्यापक प्रभाव था। तीन तरफ एक बड़ी नदी से घिरे, अयुत्या के पुराने मानचित्र महाकाव्य में वर्णित अयोध्या से एक अद्भुत भौगोलिक समानता रखते हैं। 1350 ई. में अयुत्या साम्राज्य को एक ऐसे व्यक्ति द्वारा वर्तमान बैंकॉक से लगभग 150 किमी उत्तर में स्थानांतरित कर दिया गया था, जिसने खुद को राजा रामथिबोडी (राम के आदेश से) कहा करता था।
लाहौर में एक क्षेत्र ऐसा भी है जिसे अजुधियापुर नाम से जाना जाता है; इसी तरह पश्चिम बंगाल के पूर्वी मेदिनीपुर जिले में एक क्षेत्र है जिसे अजोध्यापुर नाम से जाना जाता है। पश्चिम बंगाल के ही पुरुलिया हिल्स जिले में अजोध्या नाम की जगह भी है। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि रामायण ने इन स्थानों के नामकरण को किस हद तक प्रभावित किया होगा, विशेषकर अविभाजित भारत में।
दिलचस्प बात यह है कि रामायण के फ़ारसी अनुवादों का पता मुगल काल से लगाया जा सकता है, उर्दू में सबसे पुरानी ज्ञात रामायण कहानी 1864 की है। यह मुंशी जगन्नाथ लाल ख़ुश्तर द्वारा लिखी गई थी और नवल किशोर प्रेस, इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित की गई थी। इसे ख़ुश्तर रामायण के नाम से जाना जाता है और इसकी शुरुआत ‘बिस्मिल्लाह इर रहमान इर रहीम’ शब्दों से होती है।
आधुनिक समय के भारत में ऐसे कई स्थान हैं जिनका नाम अयोध्या है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि लोग अपने बच्चों और स्थानों के नाम लोकप्रिय तीर्थ स्थलों के नाम पर रखते हैं। उदाहरण के लिए, भोपाल में एक अयोध्यापुरम है।
पौराणिक स्थलों के अलावा हम स्थानों के समकालीन नामों के साथ भी ऐसी ही घटनाएं घटित होते देखते हैं। इसका एक उदाहरण मरीन ड्राइव होगा। सबसे लंबे समय तक, मुंबई में केवल एक ही था । अब रायपुर , पटना, भोपाल में भी मरीन ड्राइव है। जब कोई चीज़ बहुत अधिक लोकप्रियता हासिल कर लेती है, तो लोग अपने स्थानों का नाम उसके नाम पर रखना चाहते हैं।
क्या हम जानते हैं कि यूपी स्थित वर्तमान अयोध्या का नाम कैसे पड़ा?
यह निश्चितता के साथ कहना लगभग असंभव है। जैनियों के 23 आध्यात्मिक गुरुओं या तीर्थंकरों में से पाँच (हंस बेकर जैसे विद्वानों के अनुसार सात) का जन्म अयोध्या में हुआ माना जाता है। उनमें से तीन का जन्म बहुत दूर बनारस में हुआ था। जैनियों का मानना है कि अयोध्या का अर्थ है ‘युद्ध रहित स्थान’ और अवध का अर्थ है वह स्थान जहां ‘कोई हत्या नहीं होती’। लेकिन स्पष्ट रूप से यह कहना कठिन होगा कि वर्तमान नाम जैन स्रोतों से आया है।
कहा जाता है कि अयोध्या को अन्य नामों से भी जाना जाता है। पुराणों और वाल्मीकि रामायण जैसे महाकाव्यों के आधार पर कहा जाता है कि बुद्ध, राम और राम के पूर्वज जैसे इक्ष्वाकु और हरिश्चंद्र कोसल राज्य में रहते थे। इसलिए विद्वानों ने कोशल की पहचान अयोध्या के लिए प्रयुक्त नामों में से एक के रूप में की है।
धार्मिक ग्रंथों से यह भी पता चलता है कि ईसा पूर्व पाँचवीं शताब्दी के आसपास, कोसल राज्य में दो प्रमुख मार्गों के चौराहे पर एक व्यस्त शहर था। एक मार्ग था, जो उत्तर में श्रावस्ती से दक्षिण में प्रतिष्ठान (महाराष्ट्र) तक जाता था। दूसरा मार्ग था, जो पूर्व में राजगृह से पश्चिम में तक्षशिला तक जाता था। जिस व्यस्त शहर का जिक्र है वह साकेत था। साकेत का राजा प्रसेनजित था, जो साकेत से लगभग 80 किमी दूर अपनी राजधानी श्रावस्ती से शासन करता था। प्रसेनजित को कोसल का राजा भी कहा जाता है।
अक्सर ये भी पूछा जाता है कि क्या साकेत अयोध्या में स्थित था। हम निश्चित रूप से यह नहीं जानते, लेकिन हम ये जरूर जानते हैं कि साकेत बुद्ध के समय में एक बड़ा और महत्वपूर्ण शहर बन गया था। ये बात बुद्ध की यात्राओं के वृत्तांतों से पता चलता है। हालांकि कई इतिहासकार और कई ग्रंथ – साकेत और अयोध्या को एक ही स्थान होने की पुष्टि करते हैं, लेकिन इस पर कोई आम सहमति नहीं है।
हालांकि, नए शासकों के आने से साकेत और अयोध्या के एक होने की किंवदंती को और अधिक बल मिला। ऐसा ही एक उदाहरण गुप्त शासक स्कंदगुप्त का था (स्कंद का अर्थ है छलकना या बहना, संभवतः यह रक्तपात का संकेत है)।
यह भी माना जाता है कि गुप्तों के समय में ब्राह्मणवादी पुनरुत्थान हुआ था और साकेत शहर को फिर से प्रमुखता मिली थी। विद्वानों का मानना है कि गुप्त राजाओं ने सचेत रूप से अयोध्या के महत्व को बढ़ाने के लिए काम किया क्योंकि वे राजाओं के देवताकरण के समर्थन में राम के अवतार के विचार का उपयोग करना चाहते थे।
यह भी माना जाता है कि स्कंदगुप्त ने गुप्तों की राजधानी को पाटलिपुत्र (पटना) से साकेत स्थानांतरित कर दिया था। इस एक शहर के अनेक इतिहास और अनेक नाम हैं।