दिल्ली हाईकोर्ट में 26 जून को कुछ अनूठा हुआ। हाईकोर्ट की जज जस्टिस मुक्ता गुप्ता ने अपने रिटायरमेंट से एक दिन पहले सोमवार को दिनभर में 65 फैसले सुना दिये। इन जजमेंट में एक ऐसा कैदी भी था, जिसे मौत की सजा मिली थी। जस्टिस गुप्ता की अगुवाई वाली बेंच ने उस कैदी की मौत की सजा घटा दी। आपको बता दें कि जस्टिस मुक्ता गुप्ता दिल्ली हाईकोर्ट की छठवीं वरिष्ठतम जज थीं और दिल्ली HC के 10 वरिष्ठतम जजों में इकलौती महिला जज थीं। जस्टिस मुक्ता सिविल और क्रिमिनल मामलों की विशेषज्ञ हैं।

कौन हैं जस्टिस मुक्ता गुप्ता?

जस्टिस मुक्ता गुप्ता का जन्म 28 जून 1961 को हुआ था और उनकी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई दिल्ली के मोंटफोर्ट स्कूल (Montfort School) में हुई। इसके बाद साल 1980 में दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदू कॉलेज से लाइफ साइंसेज में बैचलर डिग्री हासिल की। चूंकि जस्टिस गुप्ता के पिता भी वकील थे, इसलिए उन्होंने वकालत की राह चुनने का फैसला लिया और डीयू के कैंपस लॉ सेंटर में एडमिशन ले लिया। साल 1983 में कानून की पढ़ाई पूरी की और अगले साल बार काउंसिल ऑफ दिल्ली में एनरोलमेंट करा लिया। एडवोकेट प्रैक्टिस शुरू की।

जेसिका लाल जैसे हाईप्रोफाइल केस की वकील

वकील रहते हुए जस्टिस गुप्ता ने तमाम हाईप्रोफाइल सिविल और क्रिमिनल मामलों में पैरवी की। दिल्ली सरकार ने साल 1993 में उन्हें एडिशनल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर नियुक्त किया था, जबकि साल 2001 में वे स्टैंडिंग काउंसिल (क्रिमिनल) नियुक्त हुई थीं। जस्टिस मुक्ता गुप्ता ने वकील रहते हुए जेसिका लाल मर्डर केस, नीतीश कटारा मर्डर केस और नैना साहनी जैसे मशहूर मुकदमे लड़े और इन हाई प्रोफाइल केसेज में आरोपियों को सजा दिलवाई थी।

जस्टिस गुप्ता ही बहुचर्चित नवल वॉर रूम लीक केस में भी सीबीआई की वकील थीं। इसके अलावा बहुचर्चित प्रियदर्शनी मट्टू और मधमिता शर्मा मर्डर केस भी उन्होंने ही लड़ा था।

2009 में बनी थीं जज

मुक्ता गुप्ता को 23 अक्टूबर 2009 को दिल्ली हाईकोर्ट का एडिशनल जज नियुक्त किया गया था। करीब 5 साल बाद 29 मई 2014 को वह परमानेंट जज बन गई थीं। दिल्ली हाईकोर्ट का जज रहते हुए उन्होंने जीबी रोड पर महिलाओं के पुनर्वास के लिए तमाम काम किये। अपनी विदाई समारोह में उस वाकये को याद किया। कहा कि हमारे पास (दिल्ली हाईकोर्ट में) जीबी रोड पर महिलाओं के पुनर्वास से संबंधित एक याचिका 10 साल से लंबित थी, कुछ ठोस नहीं हुआ था। एक दिन जस्टिस उषा मेहरा ने कहा कि हम ऐसी कुछ महिलाओं के मामले को प्रभावी ढंग से सुलझा सकें, तो बहुत खुशी की बात होगी।

जीबी रोड से 300 नाबालिग लड़कियों को छुड़ाया था

फिर हमनें योजना बनाई और काम शुरू किया। आखिरकार हम जीबी रोड से 300 से अधिक नाबालिग लड़कियों को छुड़ाने में सफल रहे। इन लड़कियों को प्रॉपर सिक्योरिटी में रखा गया। काउंसिलिंग कराई गई और रोजगार की व्यवस्था की गई। सबके पास ऐसा रोजगार था, जिसमें हर माह 8 से10 रुपये कमा सकते थे। जस्टिस गुप्ता ने कहा कि मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी, इस प्रक्रिया में हम 25 लड़कियों की शादी करा उन्हें सेटल करने में सक्षम होंगे। जब मैं उन लड़कियों से बातचीत कर रही थी, तब मुझे अंदाजा हुआ कि वे कितनी यातना से गुजरी होंगी। सच कहूं तो अब मेरी देखभाल के लिए एक से अधिक बेटियां हैं।

रिटायरमेंट के बाद क्या करेंगी?

अपने विदाई समारोह में जस्टिस गुप्ता भावुक हो गईं। कहा कि पहले एक वकील के रूप मैं इस संस्थान का हिस्सा थी, फिर जज बनी और अब अपने फैसलों के जरिए इस संस्थान का हिस्सा बनी रहूंगी। रिटायरमेंट के बाद करियर की चौथी पारी में भी धीमी गति से काम करूंगी, लेकिन ज्यादा वक्त अपने पोते-पोतियों के साथ बिताऊंगी।

जस्टिस गुप्ता ने अपने पिता को याद करते हुए कहा कि वह हमेशा कहा करते थे कि प्रत्येक केस आपको कुछ न कुछ सिखाता है, लेकिन ऐसा नहीं है कि हर मामले में कोर्ट में खड़े हो जाना चाहिए। अदालत में तभी पेश होना चाहिए जब किसी केस का ठोस आधार हो।