सरकार और न्यायपालिका के बीच टकराव कोई नई बात नहीं है। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रहे जीपी सिंह का मामला बहुचर्चित है। तत्कालीन CJI वाई.वी. चंद्रचूड़, ने कई बार जस्टिस सिंह को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त करने की सिफारिश की, लेकिन इंदिरा गांधी सरकार ने उनकी एक न मानी थी। बिना कोई कारण बताए हर बार सिफारिश खारिज करती रही।
इंदिरा सरकार ने जस्टिस चंद्रचूड़ की एक न मानी
जस्टिस जीपी सिंह साल 1967 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जज नियुक्त हुए। 8 जुलाई 1978 को चीफ जस्टिस बने। तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया वाईवी चंद्रचूड़ (CJI YV Chandrachud) जस्टिस सिंह को सुप्रीम कोर्ट में लाना चाहते थे। एडवोकेट और लेखक अभिनव चंद्रचूड़ अपनी किताब ‘Supreme Whispers’ में लिखते हैं कि चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की दिली ख्वाहिश थी कि जस्टिस सिंह सुप्रीम कोर्ट में अप्वाइंट हों। लेकिन तत्कालीन इंदिरा सरकार ने उनकी एक न मानी।
केंद्र सरकार हर बाद देती थी एक जवाब
CJI डीवाई चंद्रचूड़ के बेट अभिनव लिखते हैं कि जिस वक्त जीपी सिंह एमपी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस थे, कांग्रेस के मुख्यमंत्री ने उन्हें हाईकोर्ट में बतौर जज नियुक्ति के लिए कुछ वकीलों के नाम भेजे, लेकिन जस्टिस जीपी सिंह ने इसे खारिज कर दिया। यह बात कांग्रेस को पसंद नहीं आई। तत्कालीन सीजेआई वाई.वी. चंद्रचूड़ जितनी बार केंद्र सरकार को जीपी सिंह का नाम भेजते, एक ही जवाब मिलता- ‘कृपया दूसरा नाम भेजिए’। नाम खारिज करने के पीछे कोई वजह भी नहीं बताई जाती थी।
जस्टिस काटजू भी करते हैं तस्दीक
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मार्कंडेय काटजू भी इसकी तस्दीक करते हैं। अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं कि जस्टिस जीपी सिंह अपने दौर के सबसे काबिल और पढ़े-लिखे जजों में से एक थे और हर हाल में सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के हकदार थे, लेकिन उनकी नियुक्ति नहीं हुई। कारण बहुत दुखद है। 30 जुलाई 2014 की इस पोस्ट में जस्टिस काटजू लिखते हैं कि जब इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस जगमोहनलाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी को अयोग्य करार दिया, उसके बाद सरकार ने तय किया कि हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट में ऐसे जज होने चाहिए जो उनके वफादार हों।
बकौल जस्टिस काटजू, 80 के दशक के शुरुआती वर्षों में केंद्र सरकार ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जीपी सिंह को 10 वकीलों के नाम भेजें और हाईकोर्ट में नियुक्त करने को कहा। 0कायदे से परंपरा यह थी कि चीफ जस्टिस, नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार को नाम भेजा करते थे लेकिन यहां ठीक उलटा हुआ।
जस्टिस जीपी सिंह ने जब उन नामों पर गौर किया तो एक एक भी जज बनाने के काबिल नहीं पाए गए। उन्होंने तत्कालीन केंद्रीय कानून मंत्री को पत्र लिखकर कहा कि क्षमा करें, मैं इन लोगों को जज नहीं बना सकता। बाद में उन्हें इसका नतीजा भुगतना पड़ा है। जनवरी 1984 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट से ही रिटायर हो गए।
जस्टिस ओजा ने फौरन वकीलों को बना दिया था जज
जस्टिस जीपी सिंह के रिटायरमेंट जस्टिस जी.एल. ओजा मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस बने। अभिनव चंद्रचूड़ लिखते हैं कि उन्होंने फौरन सरकार द्वारा सुझाए गए सभी वकीलों को हाईकोर्ट में नियुक्त कर दिया। बाद में जी.एल. ओजा पहले परमानेंट चीफ जस्टिस बने और सुप्रीम कोर्ट में भी नियुक्त हुए।