सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय मंत्री निशीथ प्रमाणिक (Nisith Pramanik) के काफिले पर हमले की सीबीआई से जांच कराने के कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया। 13 अप्रैल को पश्चिम बंगाल सरकार की अर्जी पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud), जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने केस वापस कलकत्ता हाईकोर्ट को ट्रांसफर कर दिया और नए सिरे से देखने का आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों पलटा HC का फैसला?
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपने फैसले में कहा कि ‘हाईकोर्ट को देखना चाहिए कि क्या पश्चिम बंगाल पुलिस ने पूरे मामले की पारदर्शी तरीके से जांच की या केस को सीबीआई के पास भेजा जाना चाहिए। हम 28 मार्च के कोलकाता हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हैं और मामले को दोबारा हाईकोर्ट के पास भेज रहे हैं’।
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा पेश किए गए रिकॉर्ड के सभी पहलुओं को कायदे से देखा ही नहीं और दिमाग भी नहीं लगाया। खासकर उस एफिडेविट को जिसमें सरकार ने बताया था कि पुलिस प्रशासन ने क्या-क्या कदम उठाए हैं।
इस एफिडेविट में बताया गया है कि CIST कंप्लेन के आधार पर पुलिस ने 30 लोगों के खिलाफ एक और मुकदमा दर्ज किया। यह मैटेरियल हाईकोर्ट के सामने था और 21 लोगों की गिरफ्तारियों से भी अवगत कराया गया था। इसके बावजूद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में किसी भी बिंदु पर ध्यान ही नहीं दिया।
हाईकोर्ट ने किस आधार CBI को सौंपी थी जांच?
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि चूंकि आरोप सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ताओं पर है, ऐसे में संभावना है कि राज्य की पुलिस पारदर्शी तरीके से जांच न करे। खासकर ऐसी परिस्थिति में जब दूसरा पक्ष, राज्य की सबसे बड़ी अपोजिशन पार्टी का कार्यकर्ता है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि घटना 25 फरवरी को हुई, इसके बावजूद एक एफआईआर 26 और एक 27 को दर्ज हुई। पुलिस की 3 मार्च की रिपोर्ट में कहा गया कि जांच अभी शुरुआती स्टेज पर ही है।
शुभेंदु अधिकारी गए थे हाईकोर्ट
आपको बता दें कि बीजेपी विधायक और बंगाल में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने हाईकोर्ट का रुख किया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि निशीथ प्रमाणिक के काफिले पर हमले के बाद वहां मौजूद पुलिस कर्मियों ने कोई कदम नहीं उठाया था। उसके बाद सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने बीजेपी के पार्टी ऑफिस पर भी हमला किया।
क्या है सीबीआई का काम?
सीबीआई (सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन) की स्थापना साल 1963 में हुई थी। इस केंद्रीय एजेंसी के गठन का मकसद गंभीर आपराधिक मामलों मसलन- रक्षा खरीद से संबंधित अपराध, भ्रष्टाचार, गंभीर धोखाधड़ी और अंतर राज्यीय प्रभाव वाले मामलों की जांच करना था। साल 1965 में टेररिज्म, मर्डर, वित्तीय अपराध, किडनैपिंग जैसे क्राइम भी सीबीआई के दायरे में आ गए।
सीबीआई में मुख्य तौर पर दो विंग हैं- एक सामान्य अपराध और दूसरा आर्थिक अपराध। देश के चार शहरों दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में केंद्रीय जांच एजेंसी के दफ्तर हैं।
किसके पास है CBI को जांच देने का अधिकार?
सीबीआई के पास, डीएसपीई अधिनियम 1946 की धारा 2 के तहत मुख्य तौर पर केंद्र द्वारा अधिसूचित मामलों और केंद्र शासित प्रदेशों में जांच की शक्ति है। यदि कोई राज्य, केंद्र सरकार से सीबीआई जांच का अनुरोध करता है तो केंद्र इसकी सिफारिश कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के पास भी शक्ति
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट भी सीबीआई जांच का आदेश दे सकते हैं। हालांकि मजिस्ट्रेट के पास सीबीआई जांच का आदेश देने की शक्ति नहीं है। CBI खुद भी किसी मामले का संज्ञान लेकर अथवा लोगों की शिकायत के आधार पर जांच शुरू कर सकती है।