चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) की पहचान एक ऐसे जज की है जो मुस्कुराते हुए बड़ी से बड़ी बात कह जाते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि जब पहली बार डीवाई चंद्रचूड़ को जज बनने का ऑफर आया तो सोच में पड़ गए थे। तब उन्होंने एक शख्स से सलाह मांगी थी। वह शख्स थे, भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एएम अहमदी। सीजेआई चंद्रचूड़ ने जस्टिस एएम अहमदी की याद में 11 मई को सुप्रीम कोर्ट में आयोजित एक कार्यक्रम में खुद पूरा किस्सा सुनाया।
CJI चंद्रचूड़ ने किससे सलाह ली थी?
CJI चंद्रचूड़ ने बताया कि जब मेरे पास जज बनने का ऑफर आया तो उन दिनों मैं आरबीआई की तरफ से एक मुकदमा लड़ रहा था। रिजर्व बैंक और कनाडा की एक कंपनी के बीद विवाद चल रहा था और ट्रिब्यूनल मामले की सुनवाई कर रही थी। इस ट्रिब्यूनल के तीन मध्यस्थों में से एक, जस्टिस अहमदी भी थे। ओटावा (कनाडा) में सुनवाई के आखिरी दिन मैंने जस्टिस अहमदी से अपॉइंटमेंट मांगा और कहा कि कुछ पर्सनल मैटर पर बात करनी है।
जस्टिस अहमदी ने क्या मंत्र दिया था?
जस्टिस चंद्रचूड़ कहते हैं कि मेरे मन में जजशिप को लेकर कई तरह के ख्याल चल रहे थे। जब मैं जस्टिस अहमदी से मिला तो पहला सवाल किया, ‘इतना सब कुछ करने के बावजूद क्या है ये (जज बनने का ऑफर) वर्थ है?’ उन्होंने एक पल सोचे बिना कहा- बिल्कुल वर्थ है… मुझे आज तक एक भी पल पछतावा नहीं हुआ। सीजेआई चंद्रचूड़ कहते हैं कि जस्टिस अहमदी ने मुझे एक मंत्र दिया था। उन्होंने कहा था, ‘कभी भी पीछे मुड़कर मत देखना, मैंने भी कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा है…’।
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़, पूर्व सीजेआई एएम अहमदी से जुड़ा एक और किस्सा साझा करते हैं। बताते हैं कि कानून का पेशा जस्टिस अहमदी की पहली पसंद नहीं थी। हालांकि बाद में जस्टिस अहमदी, अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए इस प्रोफेशन में आए। उनके पिता भी जज थे। जस्टिस चंद्रचूड़ ने बताया कि जस्टिस अहमदी अक्सर कहा करते थे, ”मैंने कानून को नहीं चुना, बल्कि कानून ने मुझे चुन लिया’।
आपको बता दें कि चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की है। इसके बाद हार्वर्ड यूनिवर्सिटी चले गए, जहां पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की। हार्वर्ड से ही ज्यूडिशियल साइंस में पीएचडी भी की है।
कानून की पढ़ाई के बाद क्यों बैठना पड़ा था घर?
डीवाई चंद्रचूड़ जब हार्वर्ड से पढ़ाई पूरी कर लौटे (CJI DY Chandrachud Education) तो उन्हें लंबे वक्त तक घर बैठना पड़ा था, क्योंकि उनके पिता और पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया वाईवी चंद्रचूड़ ने एक शर्त रख दी थी। सीजेआई बनने के बाद बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में जस्टिस चंद्रचूड़ ने खुद पूरा वाकया सुनाया था। वह कहते हैं कि मेरे पिता बहुत सख्त आदमी थे। जब मैं कानून की पढ़ाई पूरी कर लौटा तो उन्होंने मुझे वकालत करने से रोक दिया। शर्त रखी कि जब तक मैं सुप्रीम कोर्ट का जज हूं, तब तक वकालत में आने की इजाजत नहीं है।
पिता रिटायर हुए तभी शुरू की प्रैक्टिस
जस्टिस चंद्रचूड़ बताते हैं कि जब उनके पिता सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हो गए तब उन्होंने वकालत की शुरुआत की। अपनी मेधा के बूते साल 1998 में महज 39 साल की उम्र में बॉम्बे हाईकोर्ट में सीनियर एडवोकेट नियुक्त हुए, जो एक रिकॉर्ड था। फिर साल 1998 से 2000 तक देश के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल रहे। 29 मार्च 2000 को बॉम्बे हाईकोर्ट में बतौर जज नियुक्त हुए। 31 अक्टूबर 2013 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बने। फिर 13 मई 2016 को सुप्रीम कोर्ट में तबादला हुआ था।