आम बजट पेश करने का समय जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, इनकम टैक्‍स को लेकर अटकलें बढ़ती जा रही हैं। क्‍या तीसरे कार्यकाल के पहले बजट में मोदी सरकार की ओर से आय करदाताओं को राहत म‍िलेगी? क्‍या इनकम टैक्‍स में छूट बढ़ेगी? क्‍या स्‍टैंडर्ड ड‍िडक्‍शन की सीमा बढ़ेगी? क्‍या कर मुक्‍त आय की सीमा बढ़ेगी? ऐसे सवालों को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं।

माना जा रहा है क‍ि पहली बार नरेंद्र मोदी के नेतृत्‍व में भाजपा ने लोकसभा चुनाव में चोट खाई है तो इस बार मोदी सरकार करदाताओं को राहत दे सकती है। लेक‍िन, कर में राहत देने का यह कोई ठोस आधार नहीं है। राजनीत‍िक रूप से मोदी सरकार ने अभी तक दबाव में आने का संकेत नहीं द‍िया है और आर्थ‍िक कार्यक्रम को लेकर नई सरकार अपने पहले के व‍िजन पर ही चलने का संकेत देती रही है।

लेक‍िन, कुछ आ‍र्थ‍िक कारण हैं, ज‍िनके आधार पर कर में राहत की उम्‍मीद की जा सकती है। लोगों के पास खर्च करने के ल‍िए पैसा नहीं है। न‍िजी खपत वैसी नहीं है जैसी मजबूत अर्थव्‍यवस्‍था में होनी चाह‍िए। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है क‍ि लोगों के पास पैसा आए। इस मकसद से सरकार कर में राहत की घोषणा कर सकती है।

बहरहाल, आने वाले बजट में क्‍या होगा, इस पर अटकलें लगाने के बजाय यह जानें क‍ि आजादी के बाद से अब तक इनकम टैक्‍स में बदलाव कैसे और कब-कब हुआ। शुरुआत में कर की प्रभावी दर 97.75 प्रत‍िशत तक हुआ करती थी और इसे लगातार कम करके 30 फीसदी तक लाया गया है। एक कारण यह भी है क‍ि हर बार बजट से पहले लोग इनकम टैक्‍स में राहत की उम्‍मीद लगाने लगते हैं।

एक जमाना था जब इनकम टैक्‍स की दर 97.75 प्रत‍िशत तक हुआ करती थी। तब 11 टैक्‍स स्‍लैब हुआ करते थे। आज तीन स्‍लैब और अध‍िकतम  30 प्रत‍िशत है। आजाद भारत में जब पहली बार इनकम टैक्‍स में बदलाव क‍िया गया तब व‍ित्‍त मंत्री थे जॉन मथाई। बात 1949-50 की है। 

जॉन मथाई ने दस हजार रुपये तक की कमाई पर चौथाई आना टैक्‍स कम कर द‍िया था। पहले स्‍लैब पर टैक्‍स एक आना से घटा कर नौ पाई और दूसरे स्‍लैब में दो आना से कम करके 1.9 पाई कर द‍िया था।

जान लीज‍िए क‍ि आना उस जमाने में करंसी की इकाई हुई करती थी। एक आना, रुपये का 16वां भाग हुआ करता था। मतलब एक रुपये में 16 आने होते थे। एक आना में 4 पैसे या 12 पाई होते थे।

करीब 25 साल तक अध‍िकतम कर की सीमा 97.75 फीसदी बनी रही। 1974-75 में वाई.बी. चह्वान व‍ित्‍त मंत्री थे। उन्‍होंने इसे 75 फीसदी क‍िया और 6000 रुपये तक की आय टैक्‍स-फ्री कर द‍िया। 

1985-86 में व‍िश्‍वनाथ प्रताप स‍िंह ने बड़ा बदलाव करते हुए टैक्‍स स्‍लैब आठ से घटा कर चार कर द‍िया। उन्‍होंने 18000 रुपये तक की आय को करमुक्‍त क‍िया और एक लाख रुपये से अध‍िक की आमदनी पर टैक्‍स की अध‍िकतम दर 50 फीसदी रखी।   

1992-93 में मनमोहन स‍िंह ने बड़ा सुधार क‍िया। उन्‍होंने टैक्‍स स्‍लैब तीन रखा और अध‍िकतम टैक्‍स दर 40 फीसदी क‍िया। दो साल बाद मनमोहन स‍िंंह ने टैक्‍स स्‍लैब में फ‍िर बड़ा बदलाव क‍िया। हालांक‍ि, टैक्‍स की दर जस की तस रखी। 

1997-98 में पी. च‍िदंबरम व‍ित्‍त मंत्री बने तो उन्‍होंने 10, 20 और 30 प्रत‍िशत का टैक्‍स रेट रखा। साथ ही, कुछ और राहत भी दी। उन्‍होंने नौकरीपेशा लोगों के ल‍िए बड़ा ऐलान करते हुए ऐसी व्‍यवस्‍था दी क‍ि 75 हजार रुपये सालाना सैलरी पाने और 10 फीसदी रकम पीएफ में जमा करने वाले नौकरीपेशा लोग आय कर चुकाने से मुक्‍त हो गए। 

करीब दस साल बाद 2005-06 में च‍िदंबरम ने एक लाख रुपये तक की आय टैक्‍स-फ्री कर दी और स्‍लैब की रेंज भी बढ़ा दी। 

2010-11 में प्रणब मुखर्जी ने एक बार फ‍िर बड़ी राहत का ऐलान क‍िया। 1.6 लाख तक की इनकम टैक्‍स-फ्री। उसके बाद पांच लाख रुपये तक की आय पर 10 फीसदी, 5-8 लाख पर 20 और उससे ज्‍यादा पर 30 फीसदी का टैक्‍स लगा। 

2012-13 में भी प्रणब मुखर्जी ने बड़ा ऐलान करते हुए जहां दो लाख रुपये तक की आय को करमुक्‍त क‍िया, वहीं दस फीसदी के दायरे में पांच लाख और 20 फीसदी के दायरे में 10 लाख तक की आय को ला द‍िया। 

2014-15 में अरुण जेटली आए तो उन्‍होंने संपत्‍ति‍ कर खत्‍म एक करोड़ से ज्‍यादा आय वालों पर दो फीसदी सरचार्ज लगाया। जेटली ने 2017-18 में ऐसी व्‍यवस्‍था की क‍ि तीन लाख रुपये तक सालाना आय वालों को कुछ भी टैक्‍स नहीं देना पड़े और 3-3.5 लाख रुपये की आय पर 2500 रुपये का टैक्‍स बना। 

2020-21 में न‍िर्मला सीतारमण ने आयकरदाताओं के ल‍िए नई टैक्‍स व्‍यवस्‍था का व‍िकल्‍प द‍िया। उन्‍होंने कर प्रणाली को आसान बनाने के मकसद से 70 के करीब छूट वाली व्‍यवस्‍था खत्‍म कर दी।