ब्रह्म दत्त द्विवेदी भाजपा के पुराने नेताओं में से थे। वह एक कवि और अच्छे व्यक्ति के तौर पर भी पहचाने जाते थे। साल 1995 में  लखनऊ के कुख्यात ‘गेस्ट हाउस’ कांड में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं से बसपा सुप्रीमो मायावती की रक्षा करने के बाद, वह एक बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी के भी दावेदार थे।

साल 1997 में  गैंगस्टर-राजनेता मुख्तार अंसारी के सहयोगी गैंगस्टर संजीव माहेश्वरी जीवा ने ब्रह्म दत्त द्विवेदी की हत्या कर दी थी। बीते बुधवार को लखनऊ अदालत के परिसर में माहेश्वरी की गोली मारकर हत्या कर दी गई।

फर्रुखाबाद के तत्कालीन भाजपा विधायक द्विवेदी की 10 फरवरी, 1997 को तब हत्या की गई थी, जब वह तिलक समारोह में भाग लेने के बाद घर जाने के लिए अपनी कार में बैठे हुए थे। हमले में उनके गनर बीके तिवारी की भी मौत हो गई थी। वहीं उनका ड्राइवर घायल हो गया था।

17 जुलाई, 2003 को लखनऊ की सीबीआई अदालत ने माहेश्वरी और सपा के पूर्व विधायक विजय सिंह को इस हत्याकांड के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई थी। दोनों दोषियों ने फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। 2017 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था।

आजीवन संघ के कार्यकर्ता रहे द्विवेदी

द्विवेदी यूपी की राजनीति के कद्दावर नेता थे और बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व से उनके अच्छे संबंध थे। उनकी हत्या के बाद अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी उन्हें श्रद्धांजलि देने फर्रुखाबाद आए। तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी और सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने भी दौरा किया। वाजपेयी 13 दिनों के बाद अन्य अनुष्ठानों में भाग लेने के लिए अमृतपुर में द्विवेदी के पैतृक गांव भी गए।

आजीवन आरएसएस कार्यकर्ता के रूप में द्विवेदी ने नागपुर में संघ के प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया था। वह राम जन्मभूमि आंदोलन से भी जुड़े थे। उन्होंने अपने चुनावी करियर की शुरुआत जनसंघ से की थी और 1971 में फर्रुखाबाद नगर पालिका परिषद में पार्षद बने थे। बाद में उन्हें उसी नगरपालिका बोर्ड का उपाध्यक्ष चुना गया।

द्विवेदी पहली बार 1977 में फर्रुखाबाद से जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में विधायक चुने गए थे। इसके बाद वह तीन बार और विधायक चुने गए। वह कल्याण सिंह सरकार (1991-92) में राजस्व और ऊर्जा मंत्री भी रहे।

गेस्ट हाउस कांड में मायावती को बचाया

यह जून 1995 की बात है। तब मायावती ने तय किया कि वह दिसंबर 1993 से चली आ रही सपा-बसपा गठबंधन सरकार से बाहर निकलेंगी। यानी सपा के साथ गठबंधन तोड़ लेंगी। इसके बाद सपा कार्यकर्ताओं ने उस गेस्ट हाउस का घेराव किया, जहां वह ठहरी थीं। मायावती ने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया, बाहर सपा कार्यकर्ता घूमते रहे।

फर्रुखाबाद से तत्कालीन भाजपा विधायक द्विवेदी बगल की इमारत में ठहरे हुए थे। वह बसपा सुप्रीमो की रक्षा के लिए पहुंचे, अन्य भाजपा नेता भी स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए मिनटों में पहुंच गए। घटना के तुरंत बाद द्विवेदी ने वाजपेयी से संपर्क किया, जिनकी सलाह पर भाजपा ने मायावती को गवर्नर हाउस तक पहुंचाया और उनकी पार्टी को समर्थन दिया। अगली सुबह उन्होंने सीएम पद की शपथ ली।

सूत्रों ने कहा कि उस घटना के बाद से मायावती ने द्विवेदी को बहुत सम्मान दिया। एक बार तो यह भी कहा कि अगर बसपा यूपी में भाजपा के साथ गठबंधन सरकार बनाती है तो आधे कार्यकाल (ढाई साल) के लिए केवल द्विवेदी को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार करेंगी। आखिरकार, भाजपा द्वारा उनकी पसंद पर अड़े रहने के बाद उन्होंने कल्याण सिंह को सीएम के रूप में स्वीकार कर लिया।

द्विवेदी के बाद पत्नी और बेटों ने संभाली विरासत

द्विवेदी की पत्नी प्रभा उनकी हत्या के बाद हुए उपचुनाव में फर्रुखाबाद से विधायक चुनी गईं। उन्हें कल्याण सिंह सरकार में मंत्री के रूप में भी शामिल किया गया था।

फिलहाल द्विवेदी के बेटे मेजर सुनील दत्त द्विवेदी फर्रुखाबाद से दूसरी बार विधायक हैं। सुनील के चचेरे भाई प्रांशु दत्त द्विवेदी भाजपा युवा मोर्चा के यूपी अध्यक्ष हैं और फर्रुखाबाद-इटावा स्थानीय निकाय निर्वाचन क्षेत्र से एमएलसी हैं।

अपनी हत्या को लेकर कानूनी लड़ाई लड़ने वाले द्विवेदी के भतीजे सुधांशु दत्त द्विवेदी ने कहा कि उनके चाचा भी एक वकील थे, जो बाबरी मस्जिद विध्वंस से जुड़े एक मामले में आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती सहित वरिष्ठ भाजपा नेताओं के लिए अदालत में पेश हुए थे।