भाजपा नेता व नई दिल्ली सीट से सांसद बांसुरी स्वराज का दावा है कि तिहरी इंजन की सरकार ने दिल्ली की काया पलट कर दी है। आयुष्मान भारत योजना शुरू कर दिल्ली के लोगों को अच्छे स्वास्थ्य का हक दिया गया है। उन्होंने कहा कि दिल्ली के लोग पिछली सरकार को गुमशुदा तलाश केंद्र में खोजते थे। जेन जी को असली, नकली की पहचान है, इसलिए दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में भाजपा की विचारधारा को चुना। उन्होंने कहा कि कुपात्र को लाभ देना पाप है, इसलिए महिलाओं से किया वादा निभाने में समय लग रहा है। साथ ही दावा किया कि पांच साल में दिल्ली से कूड़े के पहाड़ हट जाएंगे। नई दिल्ली में बांसुरी स्वराज के साथ कार्यकारी संपादक मुकेश भारद्वाज की बातचीत के चुनिंदा अंश।
भाजपा लंबे समय से दिल्ली में दोहरे इंजन की सरकार की मांग, जनता से कर रही थी। अब तो दिल्ली में तिहरे इंजन की सरकार है। आपके हिसाब से दिल्ली ने इस बदलाव का क्या फर्क देखा?
बांसुरी स्वराज: मैं आयुष्मान भारत से शुरू करती हूं। यह एक ऐसा मुद्दा है, जो मेरे मन के बहुत करीब है। सांसद बनने के बादमैं एक साल ऐसे राज्य में थी, जहां हमारी हैसियत विपक्ष की थी। मैं जानती हूं कि किस तरह की जमीनी दिक्कतें रहीं। दिल्ली और पश्चिम बंगाल दो राज्य, आयुष्मान भारत से वंचित थे। मोदी सरकार दिल्ली को चार हजार करोड़ से ज्यादा पैसे देने के लिए तैयार थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री ने इसके लिए मना कर दिया। दिल्ली में आयुष्मान भारत लागू करवाने के लिए यहां के सातों सांसदों ने अदालत में याचिका दायर की। अदालत ने आदेश दिया कि पांच जनवरी तक इसे लागू किया जाए। अदालत ने यह भी कहा कि यह आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन नहीं होगा। मैं हैरान थी कि तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री ने जनहित के इस फैसले के खिलाफ खुद अपने नाम का हलफनामा देकर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे डाली। देखिए, बदलाव क्या है। बीस फरवरी की दोपहर को रेखा गुप्ता ने शपथ ग्रहण की, और उसी दिन शाम को मंत्रिमंडल की बैठक बुला कर दिल्ली में लागू किया। आयुष्मान भारत दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना है, जिसमें नरेंद्र मोदी पांच लाख का सालाना मुफ्त इलाज दे रहे हैं। सत्तर साल से बड़े वरिष्ठ नागरिकों को भी इसका लाभ मिल रहा है। दोहरे इंजन की सरकार का जलवा रहा कि रेखा गुप्ता ने पांच लाख पर पांच लाख का अतिरिक्त लाभ दिया। यानी दिल्ली का बाशिंदा दस लाख का लाभार्थी बन गया। दूसरी बात, हर बार दिल्ली जलमग्न हो जाती थी, सिर्फ बीस मिनट की बारिश में।
दिल्ली इस बार की बारिश में भी जलमग्न हुई।
बांसुरी स्वराज: पहले से बहुत अंतर आया है। मैं खुद अपने संसदीय क्षेत्र का उदाहरण देती हूं। आपको याद होगा, राजेंद्र नगर में दुखद हादसा हुआ था। सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे तीन विद्यार्थी डूब कर मर गए थे, क्योंकि भूतल में पानी भर गया था। पानी इसलिए भर गया था कि तत्कालीन विधायक ने नाली की सफाई नहीं करवाई थी। ग्यारह वर्षों में दिल्ली में नालों की सफाई हुई ही नहीं। मैं खुद रेखा गुप्ता के साथ काम की निगरानी के लिए जाती थी। दयाल सिंह कालेज के पास जो कुशक नाला है, वहां बस डिपो की पूरी सड़क काट कर सफाई हुई। लोक निर्माण मंत्री प्रवेश सिंह वर्मा खुद खड़े होकर काम को देख रहे थे। इस मानसून राजेंद्र नगर इलाके में एक बूंद पानी नहीं जमा।
शिकायत तो इस मानसून में भी खूब हुई दिल्ली के कई इलाकों के जलमग्न होने की।
बांसुरी स्वराज: जो समस्या 11 वर्षों से रही है, वह छह महीने में दूर नहीं होती। लेकिन वृहद स्तर पर सुधार हुए हैं। जमीन-आसमान का अंतर है। छह महीने के ही अंदर इतना अंतर आ गया है, तो आप सोचिए पांच साल के कार्यकाल में क्या होगा?रेखा गुप्ता ने छह महीने में एक बात दिखा दी कि नीयत हो तो व्यक्ति नियति भी बदल सकता है।
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यह नीयत है, या पिछली सरकार के हश्र से सबक सीखा गया?
बांसुरी स्वराज: सबक गलतियों से सीखा जाता है। सबक सीखने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। इतना जरूर है कि काम करना है, ये चेतना पहले से थी। भाजपा सत्ता भोगने के लिए नहीं लेती है। सत्ता सेवा का माध्यम है।
रेखा गुप्ता के शासन-प्रशासन की शैली को देख कर लग रहा कि दृश्यता पर ज्यादा ध्यान है। सब जगह दिखना, सब जगह होना, हर मुद्दे पर बोलना। इस वजह से कई तरह के विवाद भी सामने आ रहे हैं।
बांसुरी स्वराज: दृश्यता तो ध्येय ही नहीं है।
गैर सांस्थानिक व्यक्तियों का साथ में रहना और दिखना जैसी चीजें भी सामने आई हैं।
बांसुरी स्वराज: दरअसल, पिछले ग्यारह वर्षों में दिल्ली वालों को अपनी सरकार को गुमशुदा तलाश केंद्र में जाकर ढूंढ़ने की आदत हो गई थी। अब नई सरकार प्रत्यक्ष रूप से काम करते हुए दिख रही है। इस सरकार में मंत्रिगण, विधायकगण आपको जमीन पर काम करते हुए दिखेंगे। मैं सच कह रही हूं, इसका दृश्यता की राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। जनता सब जानती है। खास कर तब, जब हम जेन जी के दायरे में हैं।
आज के परिदृश्य में जेरे-बहस जेन जी ही है। क्या यह पीढ़ी किसी तरह की राजनीतिक चुनौती बन रही है?
बांसुरी स्वराज: जेन जी असली पीढ़ी है। यह पीढ़ी जिंदगी में उद्देश्य ढूंढ़ती है। ये बच्चे कहते हैं, अगर सोशल मीडिया पर फोटो भी लगानी है तो ‘फिल्टर’ की जरूरत नहीं है। थके हुए हो, तो थके दिखो। इस पीढ़ी को अभी तक ठीक से समझा ही नहीं गया है। विकसित भारत का संकल्प इस पीढ़ी के जरिए ही सिद्धि तक लेकर जाना है। यानी, युवाओं के नेतृत्व में हमें देश को सशक्त करना है। युवा तो हमारे देश की ताकत हैं। आज हमारी 65 फीसद जनसंख्या 35 साल से कम की है। भारत पूरे विश्व के युवा देशों में है। दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र-संघ चुनाव में जेन जी ने दिखा दिया कि उन्होंने राष्ट्रवादी विचारधारा को चुना है। आपके पिछले दृश्यता के सवाल पर भी इस संदर्भ में कहना चाहती हूं। कौन असली है, कौन नकली, जेन जी को इसकी खूब पहचान है। सोशल मीडिया पर भी कोई सामग्री तभी चलती है जब आप अपने असल रूप में उसे सामने लेकर आ रहे हों। यह पीढ़ी महज दृश्यता को स्वीकार ही नहीं करती है। आपकी दृश्यता का उद्देश्य क्या है, उसका हासिल क्या है, उसकी पड़ताल करती है।
समस्याओं में भी यही पीढ़ी है। खास कर रोजगार के संबंध में। सरकारी नौकरी तो नहीं ही है, निजी क्षेत्रों पर भी सवाल हैं।
बांसुरी स्वराज: सरकारी नौकरी की चाह वाली मानसिकता में पीढ़ीगत बदलाव हो चुका है। यह पीढ़ी नौकरी मांग नहीं रही है, नौकरी सृजित कर रही है। इनके अंदर ईश्वर ने आत्मनिर्भरता की ज्योति प्रज्वलित कर भेजी है। इस भाव के बिना भारत दुनिया में नवाचार का तीसरा सबसे बड़ा गढ़ नहीं बन जाता। भारत में डेढ़ लाख से ज्यादा नवाचार पंजीकृत हो चुके हैं। आप यकीन नहीं करेंगे, इनमें से एक हजार से ज्यादा ‘यूनीकार्न’ हैं। यह इन्ही बच्चों के उत्साही चरित्र से ही संभव हुआ है। आप सोशल मीडिया पर जाकर देख लीजिए, आज के समय में कोई भी बच्चा नौ से पांच की नौकरी नहीं करना चाहता है। वे अपना खुद का नवाचार करना चाहते हैं। मोदी की सारी नीतियां इस बात को प्रोत्साहित कर रही हैं। ‘स्टैंड अप इंडिया’, ‘स्टार्टअप इंडिया’, ‘मुद्रा योजना’, ‘पीएम स्वनिधि योजना’ इसका ही हिस्सा है। यहां सिर्फ चकाचौंध वाले नवाचार की बात नहीं है। ‘बुटीक’ चलाने वाली, ‘पार्लर’ चलाने वाली महिलाएं भी नवाचार का हिस्सा हैं। ये आजीविका के बड़े साधन हैं। पीएम स्वनिधि योजना की बात करें तो क्या किसी ने सोचा था कि कि बिना कुछ गिरवी रखे रेहड़ी-पटरी वाले संगठित बैंकिंग माध्यम से कर्ज ले पाएंगे? जिनकी कोई गारंटी नहीं लेता, उनकी गारंटी नरेंद्र मोदी लेते हैं। मुद्रा योजना में 69 फीसद कर्ज हमारी मातृशक्ति ने लिया है। हम पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अंत्योदय वाले हैं। अंतिम पंक्ति में खड़ा व्यक्ति लाभार्थी बने, यही हमारी नीति है। स्वच्छ भारत मिशन में लगभग 12 करोड़ शौचालय बने हैं। अब तो हम उज्ज्वला योजना के दूसरे चरण में आ गए हैं। अब गैस की पाइपलाइन डाली जा रही है। ये चीजें सच में मायने रखती हैं। जीवन बदलती हैं।
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शौचालय तो बने हैं, लेकिन आरोप है उनका रख-रखाव ठीक से नहीं हो रहा। उज्ज्वला में एक सिलेंडर मिलने के बाद दूसरा नहीं मिला।
बांसुरी स्वराज: इन योजनाओं के प्रभाव को महसूस करने के लिए महिला होना होगा। शौचालय ने परिवारों की मानसिकता बदल दी है। एक महिला होने के नाते मैं खुद यह दर्द महसूस करती हूं। मेरे पास उत्तर प्रदेश की एक महिला आई थी। उसने कहा, दीदी जिन घरों में शौचालय नहीं है, वहां हम बेटियों की शादी नहीं करते हैं। स्वच्छता और उज्ज्वला का बड़ा फर्क पड़ा है। गांवों के जीवन का बड़ा रूमानी वर्णन होता है। चूल्हे पर करारी रोटियां बनती हैं। हकीकत में फेफड़े खराब हो जाते थे महिलाओं के, धुएं के कारण। पहले सिर पर लकड़ी का गट्ठर ढो कर लाओ, फिर रोटियां बनाओ। महिलाओं को इससे आजादी मिली है। शौचालय, गैस चूल्हा, ये दोनों बहुत बड़े परिवर्तन हैं।
आपके दिए विवरण के आधार पर, अगर हर तरफ इतनी आत्मनिर्भरता है तो फिर चुनावों के वक्त भाजपा भी मुफ्त-मुफ्त का राग क्यों अलाप रही है? बिहार जैसे आर्थिक रूप से पिछड़े राज्य में जिस तरह सरकारी खजाना खोल दिया गया है, उस पर बहुत सारे सवाल हैं। आर्थिक आत्मनिर्भरता और रेवड़ी एक साथ कैसे हो सकते हैं? दिल्ली में महिलाओं से जो वादा किया गया था, वह भी भाजपा सरकार ने पूरा नहीं किया है।
बांसुरी स्वराज: दिल्ली में भाजपा की सरकार अभी आई ही है। छह महीने के शिशु से आपने पूछना शुरू कर दिया कि तुमने वादा पूरा नहीं किया। रेखा गुप्ता सरकार ने दिल्ली के बजट में सबसे पहले इस योजना के लिए आबंटन रखा। हर चीज के लिए एक व्यवस्था बन रही है। कुपात्र को लाभ देना भी पाप होता है। हर चीज हो रही है। राम मंदिर निर्माण से लेकर अनुच्छेद 370 के खात्मे तक, भाजपा ने अपना हर वादा पूरा किया है। आपके अखबार के माध्यम से दिल्ली की जनता को बताना चाहती हूं, हम यह वादा जल्द पूरा करेंगे। रही बात रेवड़ी की तो रंगीन टीवी देना ‘लग्जरी’ में आता है। यह कहीं से भी बुनियादी जरूत नहीं है। लेकिन कोविड में गरीबी रेखा से नीचे के अस्सी करोड़ लोगों को राशन देना जनकल्याण की श्रेणी में आता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले का संज्ञान लिया है। देखते हैं, इस मामले में न्यायपालिका क्या रुख अपनाती है।
न्यायपालिका की साख तो खुद खतरे में है। मुख्य न्यायाधीश तक नहीं बख्शे गए। आरोप है कि ऐसा देश में हावी घृणा की राजनीति के कारण हुआ।
बांसुरी स्वराज: इस घटना की मैं कड़ी से कड़ी निंदा करती हूं। प्रधानमंत्री ने खुद माननीय न्यायमूर्ति से बात की। देश में किसी भी तरह की घृणा की राजनीति नहीं है। इस एक घटना के कारण पूरे देश को घृणा की राजनीति से जोड़ना बिल्कुल भी सही नहीं है।
विपक्ष ने केंद्रीय सत्ता पर वोट चोरी का इल्जाम लगाया है। चुनाव आयोग पर भी गंभीर सवाल उठे। इस तरह के हालात क्यों पैदा हुए?
बांसुरी स्वराज: क्योंकि विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं है। देश में इतना विकास हुआ है, तो वे इस पर बात कर ही नहीं सकते हैं। संवैधानिक पदों का लिहाज नहीं किया जा रहा। भाषा का लिहाज नहीं किया जा रहा। विपक्ष के आरोप को गंभीरता से लिया ही नहीं जा सकता।
पहले प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में सिर्फ चार जातियां-युवा, महिला, किसान और गरीब हैं। उसके बाद केंद्र सरकार जाति जनगणना भी करवा रही है। यह विरोधाभास क्यों?
बांसुरी स्वराज: आपको मेरे नाम में जाति दिखती है? मैंने अपने नाम के साथ पिता का पहला नाम-स्वराज लगाया है। विपक्ष ने कभी भाषा तो कभी जाति के नाम पर देश को बांटने की कोशिश की। क्या हम विभाजन से कुछ नहीं सीखेंगे? विपक्ष विचारधारा की राजनीति में नहीं आता है, और हमेशा देश को बांटने की बात करता है।
फिर जाति जनगणना की जरूरत क्यों? हाई कोर्ट के एक फैसले के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने तुरंत फैसला लिया कि सूबे में न तो जाति आधारित रैलियां निकलेंगी और न ही प्राथमिकी में व्यक्ति की जाति लिखी जाएगी।
बांसुरी स्वराज: उनसे यही अपेक्षित है-जात न पूछो साधू की। वे मानवता को वर्णों में बांटने की मानसिकता से ऊपर उठ चुके हैं?
दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने पर आपकी क्या राय है?
बांसुरी स्वराज: यह विस्तृत विचार-विमर्श का मुद्दा है।
ऐसा लग रहा है, भाजपा नरेंद्र मोदी के चेहरे पर पूरी तरह निर्भर हो चुकी है।
बांसुरी स्वराज: वे हमारे पंथ-प्रधान हैं। पिता की अंगुली पकड़ कर नहीं चलेंगे, तो हम दिशाहीन हो जाएंगे।
दिल्ली एक राजनेता को खोज रही है। अरविंद केजरीवाल कहां हैं?
बांसुरी स्वराज: गुमशुदा की तलाश के लिए नई कोतवाली, दरियागंज में संपर्क करें।
राजनेताओं की डिग्री पर सवाल उठ रहे हैं। आप उच्च शिक्षा प्राप्त हैं। राजनीति बनाम डिग्री पर आपका क्या कहना है?
बांसुरी स्वराज: मेरा मानना है, बुद्धिमता का औपचारिक शिक्षा से कोई लेना-देना नहीं है।
दिल्ली में प्रवेश की सड़कें अभी भी कूड़ों के ढेर से स्वागत कर रही हैं।
बांसुरी स्वराज: अभी छह महीने ही हुए हैं। पांच साल बाद हम इस मुद्दे पर दुबारा बात करेंगे।
प्रस्तुति : मृणाल वल्लरी, विशेष सहयोग: पंकज रोहिला