क्या नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल में संविधान बदलने का प्लान है? भाजपा की एक उम्मीदवार के ताजा बयान से यह विवाद एक बार फिर खड़ा हो गया है और विपक्ष को एक मुद्दा मिल गया है। हालांकि, विवाद नया नहीं है।
30 मार्च को राजस्थान के नागौर में दिए गए एक भाषण में भाजपा की ज्योति मिर्धा ने कहा, “देश के हित में कुछ फैसले लेने पड़ते हैं। उनके लिए हमें संवैधानिक बदलाव करने पड़ते हैं। अगर संविधान के अंदर हमें कोई बदलाव करना होता है तो आप में से कई लोग जानते हैं कि उसके लिए जो हमारे सदन हैं, लोकसभा और राज्यसभा, उनके अंदर हमें शक्ति चाहिए होती है। देश हित में कई कड़े फैसले लेने की जरूरत है और उसके लिए हमें संवैधानिक संशोधन करना होगा। अगर हमें संविधान में संशोधन करना है, तो आप में से कई लोग जानते होंगे कि हमें संसद के दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा की मंजूरी की आवश्यकता है।”
भाजपा पर कांग्रेस का हमला
ज्योति मिर्धा का वीडियो एक्स पर शेयर करते हुए कांग्रेस ने अपने आधिकारिक हैंडल से पोस्ट किया, “यह राजस्थान के नागौर से बीजेपी उम्मीदवार ज्योति मिर्धा चुनाव लड़ रही हैं। ज्योति मिर्धा का कहना है कि संविधान को बदलने के लिए हमें दोनों सदनों में भारी बहुमत की जरूरत है। बीजेपी सांसद अनंत हेगड़े ने भी कहा है कि अगर हमें लोकसभा चुनाव में 400 सीटें मिलीं तो हम संविधान बदल देंगे। इन बयानों से साफ है कि बीजेपी और पीएम मोदी को संविधान और लोकतंत्र से नफरत है। बाबा साहेब के दिए संविधान को खत्म कर बीजेपी लोगों का हक छीनना चाहती है।”
बीजेपी का लक्ष्य संविधान को बदलना- कांग्रेस
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भी उनकी टिप्पणियों पर कहा, “अनंत हेगड़े द्वारा अपने पत्ते खोलने के बाद, भाजपा नेताओं ने जल्दबाजी में उन्हें अपनी उम्मीदवार सूची से बाहर कर दिया। अब एक और बीजेपी उम्मीदवार खुलेआम कहती हैं कि बीजेपी का लक्ष्य संविधान को बदलना है। सच्चाई उजागर करने के लिए भाजपा और कितने उम्मीदवारों को अस्वीकार कर सकती है?”
शशि थरूर को जवाब देते हुए ज्योति मिर्धा ने कहा, “जहां तक मैं समझती हूं, बीजेपी का उद्देश्य राष्ट्रीय और सार्वजनिक हित की रक्षा करना है। अगर उन उद्देश्यों के लिए संविधान में संशोधन की जरूरत पड़े तो ऐसा ही होगा।”
राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के प्रमुख हनुमान बेनीवाल, जिन्हें नागौर सीट पर INDIA गठबंधन के उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतारा गया है, उन्होंने कहा कि इन बयानों से यह साफ होता है कि भाजपा बाबासाहेब के संविधान को खत्म करने पर तुली हुई है।
भाजपा नेताओं के बयान
जिसके बाद एक स्पष्टीकरण जारी करते हुए ज्योति मिर्धा ने कहा कि संवैधानिक संशोधन की प्रक्रिया को समझाने के उद्देश्य से की गई उनकी टिप्पणी को अनावश्यक रूप से बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया। उन्होंने कहा, ‘1950 से लेकर पिछले साल तक संविधान में 106 संशोधन हो चुके हैं। यह कहना जरूरी है कि हमारे पवित्र संविधान में लोगों और देश के कल्याण को ध्यान में रखते हुए समय-समय पर संशोधन किया जाता है।’
पिछले महीने बीजेपी सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री अनंतकुमार हेगड़े ने कहा था कि पार्टी राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत हासिल करने के बाद संविधान में संशोधन करेगी। उन्होंने कहा कि संशोधन कांग्रेस द्वारा हिंदू समुदाय को गुलाम बनाने के लिए पेश की गई अनावश्यक चीजों को बदल दिया जाएगा। बाद में, उन्हें भाजपा ने उत्तर कन्नड़ से अपने उम्मीदवार के रूप में हटा दिया।
हेगड़े ने छह साल पहले भी ऐसी बात कही थी।
जेडीयू ने भी लगाया था बीजेपी पर संविधान बदलने की मंशा रखने का आरोप
2023 में 20 अगस्त को जदयू के तत्कालीन अध्यक्ष ललन सिंंह ने भी कहा था कि अगर 2024 में नरेंद्र मोदी फिर से प्रधानमंत्री बने तो वह संविधान बदल देंगे। यह अलग बात है कि अब ललन कुमार जदयू अध्यक्ष नहींं हैं। उन्हें हटा कर नीतीश कुमार अध्यक्ष बने और फिर उन्होंने बीजेपी से हाथ मिलाया। अब जेडीयू नरेंद्र मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने के लिए मिल कर चुनाव लड़ रही है।
बिबेक देवरॉय ने भी की थी नए संविधान की वकालत
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) के चेयरमैन बिबेक देबरॉय ने भी कुछ महीने पहले एक लेख लिख कर बताया था कि अगर जरूरी हो तो संविधान बदला जा सकता है। उन्होंने लिखा, “1973 से हमें बताया जा रहा है कि हमारे लोकतंत्र की इच्छा चाहे कुछ भी हो संसद के जरिये बेसिक ढांचा नहीं बदला जा सकता है। जहां तक मैं समझता हूं, 1973 का फैसला मौजूदा संविधान में लागू होता है नए संविधान में नहीं लागू होगा।”
बिबेक देबरॉय ने अपने लेख में लिखा, “संविधान जिसे हमने 1950 में अपनाया था, वो अब वैसा नहीं रह गया है। इसमें संशोधन किए गए और संधोशन हमेशा अच्छे काम के लिए नहीं किए गए। 1973 से हमें बताया जा रहा है कि इसका बेसिक स्ट्रक्चर नहीं बदला जा सकता है। अगर इसके खिलाफ कुछ होगा तो अदालतें उसकी व्याख्या करेंगी।”
लेख में बिबेक ने लिखा, “लिखित संविधानों पर यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो का रिसर्च बताता है कि इसकी औसत उम्र सिर्फ 17 साल रही है। ये 2023 है, 1950 के बाद 73 साल बीत चुके हैं। हमारा संविधान काफी हद तक गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 पर आधारित है, इस तरह ये भी उपनिवेश के दिनों से जुड़ा है।”
14 अगस्त, 2023 को मिंट अखबार में Bibek Debroy का यह लेख छपा था, जिसमें उन्होंने भारत के लिए एक ‘नए संविधान’ की वकालत की थी। देबरॉय की दलील थी कि हमारा मौजूदा संविधान काफी हद तक साल 1935 के भारत सरकार अधिनियम पर आधारित है। ऐसे में विचार किया जाना चाहिए कि साल 2047 के लिए भारत के लिए कैसे संविधान की जरूरत होगी?