आएंगे तो नरेंद्र मोदी ही…पर सीटें कितनी आएंगी? लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा समर्थकों के बीच यह सवाल आम है। कम से कम बिहार की एक सप्ताह की यात्रा में तो मुझे चुनाव का रोमांच बस इसी सवाल के इर्द-गिर्द घूमता दिखा। बाकी तो चुनावी माहौल ठंडा ही नजर आया।
मोदी लहर नहीं, पर बेअसर भी नहीं:
बिहार की 40 में से करीब 20 फीसदी लोकसभा क्षेत्रों में घूमने पर यह साफ लगा कि इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोई ‘लहर’ नहीं है, लेकिन वह बेअसर भी नहीं हैं। लगभग सभी जगह भाजपा उम्मीदवारों से नाराजगी रखने वाले मतदाताओं में से अधिकांश ने भाजपा को वोट देने से इनकार नहींं किया। उम्मीदवार के नाम पर नहीं, नरेंद्र मोदी के नाम पर उन्होंने अपना वोट भाजपा के खाते में ही डालने के संकेत दिए।
‘विकास’ अभी भी बड़ा नहीं हुआ:
यहां की जनता अभी भी ‘विकास’ को खाने-खेलने की उम्र में ही देख रही है। लिहाजा चुनावी मुद्दों में भी ‘विकास’ उस हद तक ही शामिल है जितना कोई नाबालिग वोटर चुनावी मेले में शरीक हो सकता है। चुनाव के मुख्य मुद्दे जाति, धर्म, आरक्षण, परिवारवाद, हिंंदू-मुसलमान ही हैं। नेताओं के भाषणों में ज्यादातर इन्हीं से जुड़ी बातों का जिक्र होता है और वोटर्स भी काम का हिसाब मांगने के बजाय नेताओं की इन्हीं बातों में ज्यादा उलझे दिखते हैं।
विकास के ‘विकास’ की बात करें तो ज्यादातर जगह फ्लाईओवर का काम चल रहा है और स्थानीय सांसद विकास के नाम पर इसे गिनाते हैं। हाईवे के जरिए एक शहर से दूसरे शहर तो आसानी से चले जा सकते हैं, लेकिन शहर के अंदर सड़क, सफाई, नाली का हाल बुरा ही मिलेगा।
मुंगेर (जहां से जदयू के लल्लन सिंंह और राजद की कुमारी अनीता मैदान में हैं) की बात करें तो यहां राज्य सरकार ने विकास के नाम पर एक मेडिकल कॉलेज सह अस्पताल बनाने की घोषणा की। आनन-फानन में शिलान्यास कार्यक्रम भी कर दिया गया, लेकिन अस्पताल के लिए जमीन लेने का काम अभी तक पूरा नहीं हुआ है। जिन किसानों की जमीनें ली गई हैं, उनमें से कुछ को भुगतान किया जा चुका है, कुछ का अभी बाकी ही है। जिस जमीन के लिए किसानों को भुगतान कर दिया गया है, उसका कब्जा अब तक सरकार ने नहीं लिया है।
सरकार से पूरा पैसा लेने के बाद भी किसान उस जमीन पर खेती कर रहे हैं। और, जदयू (एनडीए) उम्मीदवार ललन सिंंह इस अस्पताल को मुंगेर के विकास के काम में गिना कर उसके नाम पर वोट मांग रहे थे। यही नहीं, जब इस अस्पताल का शिलान्यास हुआ था, तब बिहार में एनडीए के विरोधी महागठबंधन (राजद, जदयू, कांग्रेस) की सरकार थी।
यही नहीं, फरवरी, 2023 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मुंगेर में एक वाणिकी महाविद्यालय का उद्घाटन किया था। लेकिन, अभी तक इस कॉलेज में ताला लगा है। पढ़ाई की व्यवस्था नहीं की जा सकी है। कैंपस में लगे पेड़-पौधों की देखभाल और इमारत की सफाई आदि के लिए सरकारी खर्च पर 50 से ज्यादा मजदूर लगातार काम कर रहे हैं, लेकिन छात्रों को अब भी इंतजार है कि कब इस कॉलेज का ‘विकास’ हो और वे दाखिला ले सकें।
राज्य की चर्चित लोकसभा सीट सारण (पुराना नाम छपरा) में शहर से सटी हुई ऐसी बस्ती है जहां के ज्यादातर लोग खुले में शौच जाते हैं, गंदगी के बीच रहते हैं, पार्टियों के निशान नहीं पहचानते हैं, उम्मीदवारों के नाम नहीं जानते हैं, एक व्यक्ति के निर्देश पर बस्ती के सभी लोग मतदान करते हैं।
लाभार्थियों का दर्द:
नरेंद्र मोदी ने ‘लाभार्थी’ नाम को जो बड़ा वोट बैंक खड़ा किया है, आज उसका दर्द भी बढ़ रहा है। केंद्र सरकार की कई योजनाओं का फायदा लोग तो उठा रहे हैं, लेकिन इन्हें जमीन पर उतारने में दो बड़ी कमियां हैं। इन कमियों को दुरुस्त करके बीजेपी बड़ी संख्या में नाराज वोटर्स का भरोसा फिर से पा सकती है।
लगभग हर जगह लोगों ने जो बताया उससे यही समझ आया कि इन योजनाओं के अमल में भ्रष्टाचार की घुसपैठ गहरी है। प्रधानमंत्री आवास योजना हो या शौचालय के लिए सरकारी मदद मिलने की बात, घूस की राशि बंधी है। घूस दिए बिना यह विरले ही किसी को मिलती है। मुफ्त राशन की योजना जिन डीलर्स के जरिए चलाई जा रही है, उनमें से कई लाभार्थियों को पूरा अनाज नहीं देते।
भ्रष्टाचार और सरकारी लापरवाही के चलते कई ऐसे लोगों को भी सरकारी योजनाओं का फायदा मिल रहा है, जिन्हें नहीं मिलना चाहिए। और, इसका उल्टा भी हो रहा है।
नल-जल योजना का मोदी और नीतीश कुमार, दोनों खूब बखान करते हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव के समय नीतीश कुमार अपनी सरकार को पूरा श्रेय देते हुए इस योजना के नाम पर वोट मांग रहे थे। लेकिन, इस योजना का सच यह है कि नल लग गया, पर उसमें नियमित पानी नहीं आता है।
सरकार की इन योजनाओं का लोगों पर काफी असर है, लेकिन अमल में कमियों के चलते लाभार्थियों में सरकार के प्रति गुस्सा भी बढ़ता जा रहा है।
लोगों की असली समस्या:
बेरोजगारी, स्कूल-कॉलेज-यूनिवर्सिटी की कमी, शहरों में ट्रैफिक जाम, साफ-सफाई की कमी, प्रदूषण आदि कुछ ऐसी समस्याएं हैं जिनका सामना पूरे बिहार में लोगों को करना पड़ रहा है। लेकिन, सालों से इनका समाधान नहीं निकलने के बावजूद जनता धैर्य रखे हुई है। नेता भी इन्हें लेकर बेपरवाह ही हैं। इन समस्याओं के बारे में बात करनेे पर भी भड़क जाते हैं। बेगूसराय के सांसद गिरिराज सिंह से जब हमने इस बारे में सवाल किया तो वह वैसे ही नाराज हो गए और इंटरव्यू बीच में ही समाप्त कर दिया।
बेगूसराय में भी गिरिराज सिंंह से कई लोग नाराज दिखे। नाराजगी का मुख्य कारण क्षेत्र में उनकी ओर से पांच साल में विकास का कोई नया काम नहीं किया जाना, आम कार्यकर्ताओं और जनता की अनदेखी करना और राकेश सिन्हा की जगह एक बार फिर उन्हीं को उम्मीदवार बनाया जाना समझ में आया। हालांकि, नाराजगी के बावजूद ज्यादातर लोगों ने वोट उन्हींं को देने की बात कही।
गिरिराज सिंंह से बेगूसराय की जिन समस्याओं के समाधान की पहल की उम्मीद वहां की जनता को थी, उनका अंदाज यह वीडियो देख कर लगाया जा सकता है
जनता की समस्याओं की अनेदखी केवल बेगूसराय में ही नहीं हुई। ज्यादातर जगह ऐसा ही देखने को मिला। नीचे का वीडियो क्लिक कर समस्तीपुर की जनता की बातें सुन लीजिए तो भी यही पता चलता है:
और, समस्तीपुर से लोजपा (आर) के टिकट पर चुनाव लड़ कर राजनीति में एंट्री करने वालीं शांभवी का क्या कहना है, वह इस वीडियो में सुन सकते हैं: