1952 में हुए देश के पहले लोकसभा चुनाव में ब‍िहार से एक दल‍ित सांसद चुन कर गए थे। नाम था क‍िराय मुसहर। वह सोशल‍िस्‍ट पार्टी के ट‍िकट पर भागलपुर और पूर्ण‍िया (एससी के ल‍िए सुरक्ष‍ित) की संयुक्‍त सीट से सांसद बने थे। चुने जाने के बाद जब वह द‍िल्‍ली के ल‍िए रवाना हुए तो ट्रेन में सीट पर बैठने की ह‍िम्‍मत नहीं हुई। फर्श पर बैठ कर द‍िल्‍ली तक का सफर पूरा क‍िया। 

द‍िल्‍ली में उन्‍हें जो सरकारी घर म‍िला, उस पर जबरदस्‍ती उनके पीए ने कब्‍जा जमा ल‍िया। ऊंची जात‍ि के पीए उनके घर में पूरे रौब से रहते थे। एक बार सांसद क‍िराय संसद भवन के सेंट्रल हॉल में रोते हुए भी पाए गए थे। बताया जाता है क‍ि वह पीए की प‍िटाई से रो रहे थे।

भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन। (PC- Express)

Karai Musahar Murho village: मुरहो गांव के रहने वाले थे मुसहर

किराय मुसहर का जन्म 18 अगस्त 1920 को मधेपुरा जिले के मुरहो गांव के एक दलित मजदूर खुशहर मुसहर के घर हुआ था। आज भी किराय मुसहर का घर एक झोपड़ी ही है और इसी में रहते हैं उनके वंशज। 

किराय मुसहर के पोते उमेश कोयराला को इस बात पर गर्व है कि उनकी रगों में एक ईमानदार राजनेता का खून दौड़ता है। उमेश अपने परिवार के साथ एक साधारण मिट्टी के घर में रहते हैं।  

किराय मुसहर के माता-पिता गांव के जमींदार के यहां मेहनत-मजदूरी कर परिवार चलाते थे। बड़े होने के बाद किराय मुसहर गांव के जमींदार महावीर प्रसाद यादव के घर में काम करने लगे। 

ईमानदार और मेहनती होने के कारण वे महावीर बाबू के चहेते बन गये। उस समय के राजनेता महावीर बाबू के घर आते रहते थे, इसलिए उन सभी को सुनकर किराय मुसहर को भी राजनीति का कुछ ज्ञान प्राप्त हुआ। लोगों के बीच अपनी बात कहने की क्षमता के कारण महावीर बाबू और गांव के लोगों ने किराय को पहले आम चुनाव में आरक्षित सीट से उम्मीदवार बनाया और लोगों के समर्थन से जीतकर वे दिल्ली पहुंचे। 

दक्षिण त्रिपुरा जिले के शांतिरबाजार में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की एक सभा के दौरान कमल चुनाव निशान के साथ भाजपा समर्थक। (PC-PTI)

Karai Musahar Umesh Koirala:  नेहरू ने हमेशा दादाजी की बात सुनी 

उमेश कोयराला कहते हैं- उनके दादा किराय मुसहर अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते थे। संसद में बहस के दौरान वह ठेठ देसी अंदाज में अपनी बात रखते थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को भी कई बार किराय मुसहर के विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन नेहरू ने हमेशा दादाजी की बात गंभीरता से सुनी। 

बताते हैं कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के अंग्रेज़ी में भाषण देने पर किराय मुसहर ने उन्हें टोक दिया था। उन्होंने अपने इलाके के लिए सड़क, गरीबों के लिए घर, पीने का साफ पानी और खेतिहर मजदूरों के लिए अच्छी मजदूरी की मांग उठाई।

उमेश कहते हैं- उनके दादा ने सांसद रहते हुए कई काम किए। जिस तरह आज बाइक, मोटर या अन्य वाहनों का रजिस्ट्रेशन जरूरी होता है, उसी समय उन्होंने बैलगाड़ी के लिए भी लाइसेंस अनिवार्य कर दिया था। प्रत्येक बैलगाड़ी पर एक टिन की प्लेट लगी हुई थी।