बिहार का ‘धान का कटोरा’ कहे जाने वाले और किसान आंदोलनों एवं समाजवादी राजनीति का प्रमुख केंद्र रहे शाहाबाद क्षेत्र पर इस बार भारतीय जनता पार्टी मुख्य रूप से ध्यान केंद्रित कर रही है और उसका लक्ष्य हार को जीत में बदलना है। 22 सीटों वाले शाहाबाद क्षेत्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का प्रदर्शन पिछले एक दशक में लगातार उतार-चढ़ाव भरा रहा है। 2015 के विधानसभा चुनाव में जहां गठबंधन को इस क्षेत्र में 22 में से केवल दो सीटों पर संतोष करना पड़ा था, वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में चारों सीटें जीतकर उसने शानदार वापसी की थी। हालांकि 2020 के विधानसभा चुनाव में यह रफ्तार फिर थम गई और राजग महज आरा और बड़हरा सीटों तक सिमट गया।

2024 के विधानसभा उपचुनाव में तरारी और रामगढ़ सीटें जीतकर भाजपा को थोड़ी राहत जरूर मिली, लेकिन उसी साल हुए लोकसभा चुनाव में राजग को शाहाबाद की चारों सीटें (बक्सर, काराकाट, आरा और सासाराम) गंवानी पड़ीं। बिहार के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में स्थित शाहाबाद क्षेत्र को ‘पश्चिमी बिहार’ का हिस्सा माना जाता है। यह इलाका न केवल अपने ऐतिहासिक और राजनीतिक महत्त्व के लिए जाना जाता है, बल्कि इसे राज्य का ‘धान का कटोरा’ भी कहा जाता है। शाहाबाद क्षेत्र स्वतंत्रता संग्राम, किसान आंदोलनों और समाजवादी राजनीति का प्रमुख केंद्र रहा है।

सियासी दिग्गजों का चुनावी क्षेत्र रहा है शाहाबाद

राजनीतिक दृष्टि से यह क्षेत्र हमेशा से सक्रिय रहा है। सासाराम लोकसभा क्षेत्र, जिसे दलित राजनीति के प्रमुख चेहरों में शुमार बाबू जगजीवन राम का संसदीय क्षेत्र माना जाता है, शाहाबाद का ही हिस्सा है। वहीं, बक्सर लोकसभा क्षेत्र से पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता अश्विनी चौबे तथा आरा लोकसभा क्षेत्र से पूर्व केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह चुनाव जीत चुके हैं। राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के करीबी और राज्य के पूर्व मंत्री जगदानंद सिंह का इलाका रामपुर भी इसी क्षेत्र में स्थित है। भौगोलिक रूप से यह इलाका दक्षिण में झारखंड और पश्चिम में उत्तर प्रदेश की सीमाओं से लगा है। सीमावर्ती होने के कारण उत्तर प्रदेश के नेताओं का प्रभाव इस क्षेत्र के मतदाताओं पर अक्सर देखा जाता है। राजग की राजनीति की दृष्टि से कमजोर माने जाने वाले इस क्षेत्र को गठबंधन ने इस बार विशेष प्राथमिकता दी है।

‘लक्ष्मण की तरह तेजस्वी करें मेरा सम्मान, वो कुछ लोगों के बहकावे में आ रहे…’, तेज प्रताप ने दी नसीहत

भाजपा सूत्रों के अनुसार, केंद्रीय गृह मंत्री और पार्टी के रणनीतिकार माने जाने वाले अमित शाह स्वयं शाहाबाद की स्थिति पर निगाह रखे हुए हैं। शाह ने 18 सितंबर को रोहतास जिले के डेहरी में कार्यकर्ता सम्मेलन कर जानकारी जुटाई थी, जिसमें रोहतास, कैमूर, भोजपुर और बक्सर जिलों के पदाधिकारी शामिल हुए थे। बैठक में शाह ने क्षेत्र को राजनीतिक रूप से सशक्त बनाने की रणनीति पर विस्तार से चर्चा की और कार्यकर्ताओं को जीत का मंत्र दिया। भाजपा ने इस बार भोजपुरी फिल्मों के अभिनेता और हाल में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सुर्खियों में रहे पवन सिंह को पार्टी में शामिल कर शाहाबाद समीकरण को नया मोड़ देने की कोशिश की है।

पवन सिंह ने बिगाड़ दिया था पूरा समीकरण

2024 लोकसभा चुनाव में पवन सिंह के निर्दलीय रूप से काराकाट सीट से मैदान में उतरने के कारण राजग को न केवल काराकाट बल्कि आसपास की सीटों पर भी नुकसान उठाना पड़ा था। अब भाजपा को उम्मीद है कि उनकी वापसी से क्षेत्र में संगठन को नई ऊर्जा मिलेगी और युवा मतदाता फिर से भाजपा की ओर आकर्षित होंगे। राजनीतिक विश्लेषक अरुण कुमार पांडे का मानना है कि शाहाबाद क्षेत्र में राजग की स्थिति अब भी चुनौतीपूर्ण बनी हुई है। महागठबंधन का गढ़ माने जाने वाले शाहाबाद में 2020 के विधानसभा चुनाव में इन 22 सीटों में से केवल दो भाजपा के खाते में गई थीं, जबकि बाकी सीटें राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन को मिली थीं।

जब लालू यादव ने बांग्लादेशी घुसपैठियों का किया था विरोध, लगाम लगाने के लिए बनवाना चाहते थे ये कानून

भाजपा अब इस क्षेत्र में बूथ स्तर पर संगठन सुदृढ़ करने और जातीय समीकरणों को अपने पक्ष में साधने पर जोर दे रही है। पांडेय ने बताया विपक्षी महागठबंधन इस क्षेत्र में यादव, मुसलिम और दलित समुदायों के ठोस समर्थन के दम पर अब भी मजबूत स्थिति में है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, अमित शाह का फोकस साफ है -शाहाबाद की हार को जीत में बदलना। पार्टी इस बार किसी भी स्तर पर ढिलाई नहीं बरतना चाहती। बिहार विधानसभा चुनाव में पहले चरण के लिए छह नवंबर को और दूसरे चरण के लिए 11 नवंबर को मतदान होगा जबकि मतगणना 14 नवंबर को होगी। राज्य की 243 सदस्यीय विधानसभा के लिए इस बार 7.42 करोड़ से अधिक मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकेंगे।