बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) इंजीनियरिंग ग्रेजुएट हैं। कॉलेज के दिनों में वह नौसेना में भर्ती होना चाहते थे, लेकिन इंटरव्यू के आखिरी राउंड में छंट गए थे और लंबे वक्त तक इसका पछतावा हुआ था। लेखक उदय कांत, राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित अपनी किताब ‘नीतीश कुमार: अंतरंग दोस्तों की नजर से’ में बिहार सीएम के क्लासमेट रहे अरुण कुमार सिन्हा के हवाले से लिखते हैं कि उन दिनों मैं और नीतीश अंग्रेजी सीख रहे थे। उन्हीं दिनों भारतीय नौसेना में इंजीनियरों की भर्ती निकली। नौसेना अफसरों का एक दल पटना इंजीनियरिंग कॉलेज आया। प्रारंभिक इंटरव्यू मैं और नीतीश पूरी गंभीरता से शामिल हुए। उस भर्ती में पटना इंजीनियरिंग कॉलेज से पहले दौर में इलेक्ट्रिकल विभाग से सिर्फ हम दोनों ही चुने गए थे।
जब हम दोनों का नाम घोषित किया गया- मिस्टर नीतीश कुमार और मिस्टर अरुण कुमार सिन्हा… तो खुशी का ठिकाना न रहा। मुझे बेहद ख़ुशी हुई कि फ़ाइनल इंटरव्यू के लिए नीतीश अकेला नहीं जाएगा और मुझे भी उसका साथ मिलेगा। पहले दौर में चुन लिये जाने के बाद, हमें फाइनल इंटरव्यू के लिए रुड़की बुलाया गया। नौसेना की तरफ से हमें रुड़की तक आने जाने के लिए बाक़ायदा सेकेंड क्लास का वारंट दिया गया था। हम तो ट्रेन के सेकेंड क्लास के डिब्बे में पहली बार रुड़की जाते समय ही बैठे थे, जो उन दिनों बहुत बड़ी बात थी। क्योंकि द्वितीय श्रेणी में अमीर लोग ही चला करते थे।
फाइनल इंटरव्यू में छंट गए थे नीतीश
अरुण बताते हैं कि जब हम दोनों रुड़की जा रहे थे तो सहमे हुए थे और एक कोने में बैठे थे। हमारे सहयात्री भी हमें ‘बिलो स्टैंडर्ड’ मानकर घास नहीं डाल रहे थे। हम पहली बार कोई बड़ा इंटरव्यू देने जा रहे थे तो तनाव भी था। बहरहाल किसी तरह रुड़की पहुंचे और फाइनल इंटरव्यू देने गए। वहां मुझसे और नीतीश से अंग्रेजी से ढेरों सवाल-जवाब हुए। हम दोनों ने अपनी बिहारी स्टाइल की अंग्रेज़ी में जवाब दिया लेकिन नौसेना अधिकारियों को समझ में नहीं आया। हम भी अपनी औक़ात पहचान चुके थे। दोनों महान विभूतियों की क़द्र नौसेना वाले नहीं कर पाए और हमसे क्षमा-याचना कर ली। हमें फाइनल इंटरव्यू में छांट दिया गया और मन मसोसकर पंजाब मेल से पटना लौट आए।
तुलसीदास मुखर्जी से अंग्रेजी न पढ़ने का मलाल
उदय कांत लिखते हैं कि अपनी स्कूली पढ़ाई को लेकर नीतीश को एक गहरा मलाल आज भी है। गणित, हिन्दी तथा संस्कृत जैसे विषयों में जितने अच्छे थे, उतना ही अंग्रेज़ी में भी चाहते थे। अंग्रेज़ी के प्रति आकर्षण अकारण नहीं था। नीतीश जब हाई स्कूल में पढ़ रहे थे, तब वहां के हेडमास्टर थे तुलसीदास मुखर्जी। थे। मुखर्जी साहब का अंग्रेज़ी सिखाने का तरीक़ा भी अद्भुत था। वे स्कूल आने-जाने के क्रम में अपने साथ कई बच्चों को ले जाते और सारे रास्ते उनसे खांटी अंग्रेज़ी में बातें करते रहते। इस तरह एक ओर तो बच्चों की झिझक जाती रहती, दूसरी ओर उन्हें नए शब्दों को सीखकर उनका शीघ्र प्रयोग करने की आदत भी हो जाती।
लेकिन नीतीश कुमार की किस्मत में मुखर्जी साहब के इस जादू से रूबरू होना बदा न था। नीतीश के हाई स्कूल में पहुंचने के पहले ही मुखर्जी साहब सेवानिवृत्त होकर बख़्तियारपुर से जा चुके थे। हालांकि आगे चलकर कॉलेज के दिनों में नीतीश कुमार ने अपनी अंग्रेजी पर बहुत मेहनत की थी। यही वजह है कि आज भी नीतीश के आगे अंग्रेज़ी में रखे गए ड्राफ़्ट की छोटी-से-छोटी ग़लती भी उसकी पैनी नज़र से नहीं बच पाती। बचपन से ही व्याकरण और भाषा की शुद्धता के प्रति वह बहुत सचेत रहे हैं।
डिक्शनरी के सहारे मार्क्स और एंगल्स को पढ़ा
नीतीश कुमार कहते हैं कि मेरे अंदर सही अंग्रेज़ी सीखने की तमन्ना लगातार बनी रहती। हमारे आसपास की सारी किताबें, चाहे वे कोर्स की हों या राजनीतिक विचारों की, लगभग अंग्रेज़ी में ही होती थीं। मार्क्स और एंगल्स तब हमारे ख़ुदा हुआ करते थे। लेकिन उनकी किताबों में बहुत जटिल अंग्रेजी थी और मैं शब्दकोश का सहारा लेकर गाड़ी आगे बढ़ाता। अंग्रेज़ी के अख़बार और पत्रिकाएं पढ़ता, जिससे अंग्रेज़ी पर मेरी अच्छी पकड़ हो गई।
