प्रधानमंत्री रहते हुए इंदिरा गांधी ने साल 1983 में विश्व हिंदू परिषद (VHP) के एकात्मता यात्रा का मौन समर्थन किया था, यह दावा द इंडियन एक्सप्रेस की कंट्रीब्यूटिंग एडिटर नीरजा चौधरी ने अपनी नई किताब ‘हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड'(How Prime Ministers Decide) में किया है। चौधरी ने लिखा है कि इंदिरा और राजीव दोनों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और VHP को खुश रखा।
RSS-VHP से करीबी क्यों?
‘हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’ को लेकर द इंडियन एक्सप्रेस के एसोसिएट एडिटर मनोज सीजी ने नीरजा चौधरी का इंटरव्यू किया है। सीजी ने उनसे पूछा कि आखिर इंदिरा और राजीव को RSS-VHP को खुश रखने की क्या जरूरत थी? इसके जवाब में लेखिका ने नेहरू परिवार के एक सदस्य और राजीव गांधी के कज़िन अरुण नेहरू का एक बयान याद किया।
वह कहती हैं, “राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद अरुण नेहरू ने एक बातचीत में अपने भाई से कहा था कि आपको क्या लगता है, आप ऐसे ही 414 सीट जीतकर सत्ता में आ गए हैं। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि 5000 लोग मारे गए।”
अरुण नेहरू का इशारा सिखों के खालिस्तान की मांग के जवाब में एकजुट हुए हिंदू समुदाय और इंदिरा की हत्या के बाद भड़की सिख विरोधी हिंसा की तरफ था। बकौल नीरजा चौधरी, अरुण नेहरू ने राजीव गांधी से कहा था कि अगर वह सत्ता में बने रहना चाहते हैं तो उन्हें तीन काम करने होंगे- राम मंदिर बनाना होगा, समान नागरिक संहिता लाना होगा और अनुच्छेद 370 को हटाना होगा।

RSS की कट्टर हिंदू ‘इंदिरा गांधी’
साल 1971 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने पाकिस्तान युद्ध लड़ा और जीता था। तब भारत की मदद से पूर्वी पाकिस्तान ‘बांग्लादेश’ के रूप में एक नया देश बना था। इसके बाद साल 1974 में परमाणु उपकरण के परीक्षण से भी इंदिरा को खूब तारीफ मिली थी। इन घटनाओं के बाद साल 1980 के आम चुनावों में मिसेज गांधी को भारी जनादेश मिला।
नीजरा चौधरी, इंटरव्यू में बताती हैं कि “इंदिरा गांधी को हिंदुओं के समर्थन से दिल्ली और जम्मू के स्थानीय चुनाव में जीत मिली थी। इससे भाजपा को झटका लगा था। कई लोगों का मानना था कि उनकी जीत में आरएसएस की भूमिका थी। वह अलग-अलग स्तरों पर खेल रही थीं, जैसा कि राजनेता करते हैं। लेकिन उन्होंने इसे कुशलता से किया, बिना मुस्लिम विरोधी दिखे हिंदुओं तक पहुंच बनाई और 1980 में कई मुस्लिम कांग्रेस में लौट आए। आरएसएस ने सोचा कि वह एक कट्टर हिंदू थीं।”
चौधरी आगे कहती हैं, “1977 की हार के बाद इंदिरा गांधी के व्यवहार में व्यापक परिवर्तन आया था। उन्होंने देश के हर प्रमुख मंदिर का दौरा किया। उन्हें लगा कि वह हिंदुओं का चेहरा हो सकती हैं। तब संघ अटल बिहारी वाजपेयी से नाखुश था, जो खुद को धर्मनिरपेक्ष बनाने की कोशिश कर रहे थे। वाजपेयी को तब ऐसा लगने लगा था कि आरएसएस को गैर-हिंदुओं के लिए भी खुला होना चाहिए।”
