इंदिरा का आपातकाल खत्म हो चुका था। चुनाव के बाद देश की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार केंद्र में थी। जनता पार्टी ने मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री चुना था। आपातकाल की जांच के लिए सरकार ने एक जांच आयोग का गठन किया, जिसकी अध्यक्षता भारत के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश जेसी शाह को सौंपी गई।
शाह आयोग के नाम से चर्चित इस जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट तैयार की। कार्रवाई के लिए विशेष अदालतों का गठन भी हुआ, तब तक 16 जुलाई 1979 को इंदिरा गांधी दोबारा सत्ता में आ गईं। सुप्रीम कोर्ट ने विशेष अदालतों को असंवैधानिक बताया। और आयोग खत्म कर दिया गया। रिपोर्ट की प्रतियां नष्ट कर दी गईं। लेकिन सत्ता में लौटने से पहले इंदिरा गांधी अपने किए की वजह से भयंकर चिंता में रहती थीं। मोरारजी देसाई सरकार ने इंदिरा को सबक सिखाने का पूरा इंतजाम किया था।
जब गिरफ्तार हुईं इंदिरा
जनता पार्टी की सरकार में शामिल कई लोग इंदिरा गांधी को जेल में डालने चाहते थे। हालांकि जनता पार्टी के प्रमुख नेताओं में से एक चंद्रशेखर इसके खिलाफ थे। उनका मानना था कि चुनाव में इंदिरा की हार ही उनकी सबसे बड़ी सजा है। जब जब गृहमंत्राल से मिले टिप के आधार पर कई पत्रकारों ने चंद्रशेखर से इंदिरा को जेल भेजने के संबंध में सवाल किया, तो वह सीधे मोरारजी देसाई से मिलने पहुंचे।
उन्होंने प्रधानमंत्री से पूछा, क्या गृह मंत्री इंदिरा जी को जेल भेजने की तैयार कर रहे हैं? मोरारजी देसाई ने इनकार कर दिया। चंद्रशेखर निश्चिंत होकर मुंबई चले गए। रात में उन्हें सूचना मिली की इंदिरा गांधी को गिरफ्तार कर लिया गया है। अगले दिन सुबह की फ्लाइट लेकर चंद्रशेखर दिल्ली आए और सीधे प्रधानमंत्री से मिलने पहुंचे। उन्होंने पूछा, यह कैसे हो गया? आपने तो कहा था कि इंदिरा जी को गिरफ्तार करने का कोई फैसला नहीं है? प्रधानमंत्री ने जवाब दिया, फैसला गृह मंत्री जी का है, पर मैंने फाइल देख ली है।
इसके बाद चंद्रशेखर और मोरारजी देसाई के बीच थोड़ी बहस हुई। इसी रोज मंत्रिमंडल की एक अनौपचारिक मीटिंग थी, जिसमें चंद्रशेखर भी आमंत्रित थे। उधर इंदिरा को मजिस्ट्रेट के पास पेश किया जाना था। मीटिंग में मौजूद चौधरी चरण सिंह बार-बार बीच में जाकर पता कर रहे थे कि मजिस्ट्रेट ने क्या तय किया। दोपहर एक बजे के आस पास मजिस्ट्रेट ने इंदिरा को बिना जमानत लिए रिहा कर दिया। चरण सिंह उदास हो गए।
इस बीच मीटिंग को विराम दिया गया। सभी खाना खाने गए। जब चंद्रशेखर दोबारा कमरे में लौटे तो राजनारायण और चौधरी चरण सिंह की बात सुनकर हैरान रह गए। अपनी आत्मकथा ‘जीवन जैसा जिया’ में लिखते हैं, ”राजनारायण जी कह रहे थे कि उसे मीसा में बंद कर दीजिए। चौधरी साहब ने अपनी राय बताई, कि वे तो चाहते हैं लेकिन प्रधानमंत्री तैयार नहीं हैं।” इतना सुनते ही चंद्रशेखर ने दूसरे कमरे में जाकर मोरारजी देसाई से पूछा, क्या ऐसी भी कोई इरादा है? उन्होंने कहा, बिल्कुल नहीं।
इंदिरा को सरकारी आवास भी नहीं देना चाहते थे मोरारजी
एक रोज इंदिरा गांधी से मिलने के बाद चंद्रशेखर प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई से मिलने पहुंचे। उन्होंने पूछा कि क्या सरकार इंदिरा गांधी की सुरक्षा हटा रही है। मकान खाली करवा रही है।
दरअसल चंद्रशेखर को आशंका थी कि लोग आपातकाल की वजह से इंदिरा के खिलाफ भड़के हुए हैं, ऐसे में कोई बड़ी घटना भी हो सकती है। उन्होंने यह बात प्रधानमंत्री को भी समझायी और पूछा कि क्या आप उनको मकान भी नहीं देंगे? इस पर मोरारजी ने जवाब दिया, नहीं देंगे, नियम में नहीं आता।
चंद्रशेखर ने पूछा, जाकिर हुसैन, लाल बहादुर शास्त्री, ललित नारायण मिश्र आदि के परिवार को तो मकान मिला हुआ है। इस पर पीएम ने कहा, उनका भी कैंसिल कर दूंगा। हालांकि लंबी बहस के बाद मोरारजी मान गए।