सोमवार को जब बांग्लादेश की राजधानी ढाका में हालत बिगड़े तो प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा दे चुकीं शेख हसीना और उनकी बहन शेख रेहाना को दिल्ली आना पड़ा। बांग्लादेश में आर्मी ने ऐलान किया है कि अब वह बांग्लादेश की कमान अपने हाथ में ले रही है।

1975 में भी तब इन दोनों बहनों को भारत में शरण लेनी पड़ी थी, जब बांग्लादेशी सेना ने उनके पिता शेख मुजीब उर रहमान और परिवार के सात लोगों की हत्या कर दी थी। मारे गए लोगों में मुजीब के 10 साल के बेटे रसेल भी थे।

सेना का रहा है दखल

बांग्लादेश के लोकतंत्र में कई बार सेना ने दखल दिया है। सेना ने ही नवंबर, 1975 में तत्कालीन चीफ जस्टिस अबू सादात मोहम्मद सईम को देश का राष्ट्रपति नियुक्त कर दिया था।

1977 में जनरल जिया उर रहमान राष्ट्रपति बने। 1981 में उनकी हत्या कर दी गई थी। 1982 में तख्ता पलट हुआ था जिसमें उनके उत्तराधिकारी अब्दुल सत्तार को उनके पद से हटा दिया गया था। उस वक्त आर्मी चीफ एच एम इरशाद ने सत्ता अपने हाथ में ले ली थी लेकिन देश भर में विरोध और अशांति के माहौल के चलते 1990 में उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था।

इसके बाद बांग्लादेश में खालिदा जिया (1991-96 और 2001-06) और शेख हसीना (1996-2001) ने सत्ता संभाली। हालांकि 1996 में एक बार फिर बांग्लादेश में तख्ता पलट हुआ था।

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बांग्लादेश में तख्तापलट (Source- Reuters)

साल 2006 में जब खालिदा जिया की सरकार का कार्यकाल खत्म होने वाला था तब बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर अशांति का माहौल बन गया था। तब सेना ने तत्कालीन राष्ट्रपति से कहा था कि देश में आपातकाल घोषित कर दिया जाए। इसके बाद जनवरी 2007 से दिसंबर 2008 तक देश में कार्यवाहक सरकार ने कामकाज संभाला था।

हसीना ने सेना की पकड़ की कमजोर

साल 2008 में जब शेख हसीना फिर से सत्ता में आई तो उन्होंने इस बात को सुनिश्चित किया कि आर्मी अपने बैरेक में लौट जाए। 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने सेना के दखल को कम कर दिया और बांग्लादेश के संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों को मजबूत किया।

शेख हसीना की सरकार के कार्यकाल में देश में राजनीतिक स्थिरता आई और आर्थिक वृद्धि भी देखने को मिली। उनके सत्ता में वापस आने से जिन्हें फायदा हुआ उनमें से भारत एक था लेकिन भारत ने बांग्लादेश की मदद भी की।

गांधी परिवार के साथ रहे गहरे संबंध

साल 2009 में मनमोहन सिंह की सरकार ने बांग्लादेश को मानवीय और अन्य तरह की सहायता दी क्योंकि शेख हसीना के गांधी परिवार के साथ गहरे संबंध रहे हैं। इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश की आजादी में अहम भूमिका निभाई थी। हसीना की सोनिया गांधी के साथ ही राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ भी व्यक्तिगत संबंध हैं और इस बात का पता इस साल जून में चला था जब शेख हसीना भारत आई थीं।

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी शेख हसीना के स्थानीय अभिभावक की भूमिका में रहते थे। मुजीब उर रहमान की हत्या के बाद शेख हसीना दिल्ली के पंडारा रोड में रहती थीं। प्रणब मुखर्जी की पत्नी शुभ्रा ने हसीना का परिचय अपनी रिश्तेदार के तौर पर कराया था। हसीना इन दोनों के अंतिम संस्कार में भी शामिल हुई थीं।

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बांग्लादेश की राजधानी ढाका में सोमवार को शेख हसीना के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे की खबर मिलने के बाद जश्न मनाते प्रदर्शनकारी। (Source-AP/PTI)

इसका शेख हसीना पर गहरा असर पड़ा और उन्होंने भारत के लोगों और नेताओं के प्रति गहरा आभार व्यक्त किया। हसीना को भारत में दोनों दलों से समर्थन मिला। 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने भी शेख हसीना से संपर्क किया। धार्मिक कट्टरपंथ और आतंकवाद का मुकाबला करने की रणनीति भारत सरकार और शेख हसीना सरकार के बीच संबंधों को मजबूत करने की एक कड़ी थी।

दोनों दलों के समर्थन के चलते लंबे वक्त से चले आ रहे समुद्री सीमा विवाद को हल किया गया और इसके बाद जमीन को लेकर भी सीमा समझौता हो गया क्योंकि जैसे-जैसे बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही थी तब भारत ने उसे अरबों डॉलर का ऋण दिया और उसके बुनियादी ढांचे और मानवीय जरूरतों का भी समर्थन किया।

शेख हसीना ने 2013, 2018 और 2024 के चुनाव में भी जीत दर्ज की लेकिन तब उन्हें जीत को लेकर चुनाव में धांधली के सवालों का सामना करना पड़ा और इस तरह के सवाल विशेषकर अमेरिका और पश्चिम के देशों की ओर से उठाए गए।

बीएनपी-जमात के शासन में चलते थे भारत विरोधी आतंकवादी समूह

भारत की ओर से बांग्लादेश को जो समर्थन मिला, उसके पीछे 2001 से 2006 में बांग्लादेश में बीएनपी-जमात के शासन के दौरान हुई घटनाएं भी एक वजह थी। उस दौरान बांग्लादेश की धरती से भारत विरोधी आतंकवादी समूह संचालित होते थे। सत्ता में लौटने के बाद शेख हसीना ने इन आतंकवादी समूहों और उन्हें संरक्षण देने वाले जमात-इस्लामी बांग्लादेश पर शिकंजा कस दिया।

शेख हसीना ने मुख्य विपक्षी राजनीतिक दल बीएनपी के खिलाफ भी सख्त रुख अपनाया और युद्ध न्यायाधिकरण ने 1971 में किए गए युद्ध अपराधों के लिए जमात के नेताओं, भ्रष्टाचार के आरोपों में बीएनपी की नेता खालिदा जिया और सैकड़ों विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं को जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया।

लेकिन हसीना सरकार की इन कार्रवाईयों के खिलाफ बांग्लादेश में आवाज भी उठनी शुरू हो गई थी।

शेख हसीना सोमवार को जब भारत में उतरीं तो कुछ लोगों ने कहा कि वह लंदन जा सकती हैं। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने हिंडन एयरपोर्ट स्टेशन पर उनसे मुलाकात की। भारत को हसीना की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी बावजूद इसके कि ढाका में आने वाली नई सरकार की ओर से उसे इसे लेकर सवालों का सामना करना पड़ सकता है।

भारत के लिए शेख हसीना हमेशा ऐसी नेता रहेंगी जिन्होंने इसकी पूर्वी सीमाओं को शांत और स्थिर रखने में मदद की।

भारत ने पिछले डेढ़ दशक में बीएनपी और जमात से कोई संपर्क नहीं रखा और शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग को अहमियत दी। बीते सालों के दौरान बांग्लादेश के विपक्ष ने भारत को शेख हसीना का समर्थन करने वाले देश के और पश्चिम को अपने साथी की तरह देखा है।

आने वाले दिनों में ढाका में बनने वाली नई सरकार का भारत के लिए क्या रुख होगा यह भी देखना अहम होगा।

सेना प्रमुख की भूमिका रहेगी अहम

जब बांग्लादेश में बीएनपी-जमात की सरकार थी तो उस दौरान भारत के सामने जो चुनौतियां थी, वे फिर से सामने आ सकती हैं। ऐसे वक्त में भारत एक और मोर्चा खोलने का जोखिम नहीं उठा सकता। वह भी तब जब एलओसी और सीमा पर पाकिस्तान के साथ माहौल तनावपूर्ण हो और पूर्वी लद्दाख में भारतीय सेना का लंबे समय से चीन की सेना के साथ टकराव चल रहा हो।

इसके साथ ही म्यांमार की सीमा पर भी अस्थिरता वाले हालात हैं और पूर्वोत्तर में भी अशांति का माहौल है।

ऐसे वक्त में सेना प्रमुख की भूमिका अहम रहेगी। भारत के बांग्लादेश के सुरक्षा प्रतिष्ठानों के साथ मजबूत संबंध हैं। ये संबंध अब काम आ सकते हैं क्योंकि अब बांग्लादेश में ‘भारत विरोधी तत्व’ सत्ता संभालने जा रहे हैं।