वर्ल्ड बैंक (विश्व बैंक) समूह ने अनियमितताओं के आरोपों के बाद विभिन्न देशों में निवेश के माहौल से जुड़ी इज ऑफ डूंइंग रिपोर्ट का प्रकाशन बंद करने का फैसला किया है। दरअसल, इस रिपोर्ट की विश्वस्तता पर प्रश्न उठे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि एक जांच में पता चला है कि चीन के दबाव में आकर विश्व बैंक ने डूइंग बिजनेस रैंकिंग बदल दी थी। इसी बीच, अमेरिका के कॉर्नल विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और विश्व बैंक में पूर्व चीफ इकनॉमिस्ट कौशिक बसु बोले कि उनके समय में भी सरकारों की ओर से दबाव पड़ता था।
दरअसल, 2017 में चीन को 78 रैंक दी गई थी, जबकि वह अगले साल 2018 में वह इसमें सुधार चाहता था। मई 2017 से इसके लिए दबाव बनाया शुरू कर दिया गया था, मतलब डूइंग बिजनेस रिपोर्ट 2018 के आने के पांच महीने पहले। विल्मर हेल जांच रिपोर्ट की मानें तो एक चीनी अफसर ने अपनी बैठकों में बैंक को बताया था कि अगर चीन की रैंकिंग में सुधार होता है तो “सभी को राहत मिलेगी”। वह इसके अलावा तब विश्व बैंक के प्रमुख जिम कॉन्ग किम से सितंबर 2017 में “इस आशय की एक निजी दलील के साथ” मिले थे।
किम के दफ्तर को 11 अक्टूबर को बताया गया कि चीन की रैंकिंग 78 से 85 होने वाली है। 14 तारीख को बैंक की प्रीमियर डेटा रिसर्च विंग डीईसी दफ्तर ने राष्ट्रपति कार्यालय को बताया कि चीन ने “पूर्ण रूप से” सुधार किया था, लेकिन अन्य पड़ोसी मुल्कों ने “बहुत बेहतर किया”। आगे 16 अक्टूबर को रिपोर्ट में चीन 85वें पायदान पर था, जिसे छापे जाने के लिए अनुमति दे दी गई थी।
रिपोर्ट की मानें तो अगले दिन राष्ट्रपति के सहयोगियों ने यह मुद्दा उठाया था कि कैसे चीन की रैंकिंग को सुधारा जाए। इस दौरान यह सुझाव दिया गया था “ताइवान और हांगकांग से डेटा शामिल किया जाए”। रैंकिंग टीम ने विरोध किया, पर सिर्फ हांगकांग के आंकड़ों को जोड़कर चीन के स्कोर की “फिर से गणना” करने का निर्णय लिया गया। 18 तारीख को डूंइंग बिजनेस रैंकिंग टीम के प्रमुख ने बताया कि हांगकांग का डेटा जोड़ने के बाद चीन की रैंक 70 हुई है।
19 अक्टूबर को तत्कालीन विश्व बैंक सीईओ क्रिस्टलीना जॉर्जीवा ने कहा कि बीजिंग-शंघाई प्लान काम नहीं करेगा, क्योंकि इससे चीन की संख्या में सुधार होगा। पर इससे समकक्ष देशों पर समान रूप से लागू करना होगा। यानी कि उनकी रैंकिंग में भी सुधार होगा और यह फिर से मुद्दा वहीं ले आएगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘कानूनी अधिकार संकेतक’ (Legal Rights Indicator) में सुरक्षित लेनदेन पर अपने कानून के कारण चीन को पूर्ण सुधार अंक नहीं दिए गए थे। वहीं, संशोधनों ने “विभिन्न चीनी नियमों का पालन करने के लिए जरूरी वक्त को कम कर दिया”। कुल मिलाकर, तीन संकेतकों (एक व्यवसाय शुरू करना, कानूनी अधिकार और करों का भुगतान) में चीन के स्कोर को “लगभग एक बिंदु” तक बढ़ाने के लिए बदल दिया गया था और पिछले वर्ष की तरह ही इसकी रैंकिंग 78 तक बढ़ा दी गई थी। जांच रिपोर्ट में दर्ज एक मेल के हिसाब से जॉर्जीवा ने अपने कर्मचारियों से कहा था कि “इसे निपटाओ”। इस तरह डूइंग बिजनेस 2018 को 31 अक्टूबर, 2017 को जारी किया गया, जिसमें चीन 85 के बजाय 78वीं रैंक पर था।
बसु ने इस बाबत ट्वीट किया, “विश्व बैंक की डूइंग बिजनेस रैंकिंग में हेराफेरी की खबर चौंकाने वाली है। साल 2012 से 2016 तक डीबी मेरे प्रभार में था। सरकारों की तरफ से दबाव था। हालांकि, हमने कभी हार नहीं मानी। दुख की बात है कि अब यह चीज बदल गई है। काश मैं भारत के क्रेडिट में कुछ जोड़ सकता, मुझ पर कभी भी भारत की सरकारों का दबाव नहीं था- वर्तमान या पूर्व।”
उधर, समाचार एजेंसी ‘पीटीआई-भाषा’ को शुक्रवार (17 सितंबर, 2021) को एक सरकारी सूत्र ने बताया कि विश्व बैंक समूह द्वारा दुनिया के देशों में ‘कारोबार सुगमता रैंकिंग रिपोर्ट’ का प्रकाशन बंद करने के फैसले ने चीन की धोखाधड़ी का पर्दाफाश कर दिया है। इससे वैश्विक कंपनियों को अपना विनिर्माण स्थल भारत में शिफ्ट करने के काम में तेजी आएगी।
बता दें कि वर्ल्ड बैंक ग्रुप द्वारा रिपोर्ट का प्रकाशन बंद करने का फैसला, 2017 में चीन की रैंकिंग को ऊपर करने की खातिर कुछ टॉप बैंक अधिकारियों द्वारा कथित तौर पर दबाव डाले जाने के कारण हुई डेटा संबंधी अनियमितताओं के सामने आने के बाद लिया गया।