अमेरिका के एक प्रमुख विश्वविद्यालय में तैनात भारतीय मूल के कुलपति का कहना है कि ‘मेक इन इंडिया’ यथार्थ से ज्यादा राष्ट्रवादी दिखाई पड़ता है और रणनीति को हकीकत में बदलने के लिए पर्याप्त अवसंरचना, साजो सामान और पूरी तरह समायोजित अफसरशाही की जरूरत है। भारत में आए कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के कुलपति प्रदीप के. खोसला ने एक साक्षात्कार में राजग सरकार के प्रमुख कार्यक्रम मेक इन इंडिया और विभिन्न नए उद्यमों समेत कई मुद्दों पर बात की। उनके साक्षात्कार के कुछ अंश इस प्रकार हैं
प्र. ‘स्टार्ट अप इंडिया, मेक इन इंडिया’ नारों को लेकर आपकी समझ और अनुभव क्या है?
उ. मैं आपको एक किस्सा बताता हूं। हाल ही में, मैं एक अखिल-आईआईटी बैठक के बाहर खड़ा था और मैंने 10-12 युवा छात्रों को देखा, जो अपने अंतिम वर्ष में थे और स्नातक होने के लिए तैयार थे। मैंने उन्हें रोका और पूछा, यह बहुत अच्छा है कि आप स्नातक हो जाएंगे लेकिन आप किसके लिए काम करेंगे? उनमें से किसी एक ने भी किसी जानी-पहचानी कंपनी का नाम नहीं लिया। हर किसी ने कहा कि वह एक स्टार्टअप (नया उद्यम) करना चाहता है।
उस समय मुझे लगा कि इस देश में कुछ तो है, जो मूल रूप से बदल रहा है। बदलाव यह था कि विशेष तौर पर आईआईटी संस्थानों में ‘कर सकने’ वाली सोच की धारणा बनी है। इसका मानना है कि आपको किसी और के लिए काम करने की जरूरत नहीं है, आप अपना खुद का स्टार्टअप खड़ा कर सकते हैं, अपनी खुद की कंपनी बना सकते हैं, अपना धन कमा सकते हैं। भारत में स्टार्ट-अप की रणनीति को लेकर मैं वाकई आशांवित हूं।
प्र. तो क्या अब स्टार्ट-अप भारत में धन का वितरण कर रहे हैं?
उ. आज से बहुत समय पहले, जब मैं बड़ा हो रहा था, तब भारत में सारा धन कुछ मुट्ठी भर लोगों के हाथों में था। आज जब मैं पीछे देखता हूं तो पाता हूं कि जिन लोगों से मैं मिला, उनमें से अधिकतर लोगों ने अपना धन पिछले 15-20 साल में कमाया। यह सूचना तकनीक की ताकत है। इसने देश को बदल कर रख दिया है, संपत्ति का सृजन हुआ, प्रसार हुआ और वितरण हुआ।