कोरोना काल में भी अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावी तैयारियां जोरों पर हैं। इलेक्शंस में तीन माह से कम का वक्त बचा है। इस बीच, वहां कोरोना के केस भी बढ़ रहे हैं।  लगातार इजाफा हो रहा है। अब तक करीब 50 लाख अमेरिकी इसकी चपेट में आ चुके हैं और डेढ़ लाख से अधिक की मौतें हो चुकी हैं। यूएस में इस हालत के लिए कई लोग राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

कोरोना के कारण बढ़ती महंगाई, बढ़ती बेरोजगारी दर और आर्थिक विकास दर में गिरावट से जनता के बीच काफी असंतोष पैदा हुआ है। ऐसे में लोगों को लुभाने के लिए रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप का ‘अमेरिका फर्स्ट’ और ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ का नारा फिस्सडी साबित होता दिख रहा है। उन्हें इसकी वजह से आगामी चुनाव में भयंकर नुकसान उठाना पड़ सकता है।

यह दावा ‘द सन्डे गार्डियन’ में छपे एक लेख में किया गया है। लेखक अश्विनी मोहपात्रा का दावा है कि अगर आगामी महीनों तक यही स्थिति रही तो अमेरिका में सत्ता परिवर्तन भी हो सकता है। महामारी से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचा है, जिससे हज़ारों कंपनियां दिवालिया होने के कगार पर हैं। लाखों लोगों की नौकरी जाने का भी खतरा है।

लेख में आगे कहा गया- इस बार के अमेरिकी चुनाव में चीन नीति काफी हावी है, इसलिए अमेरिका के राष्ट्रपति पद के दोनों प्रमुख उम्मीदवार रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रंप और उनके विरोधी डेमोक्रेटिक पार्टी के जो बिडेन अपने आप को एक दूसरे से चीन पर ज्यादा सख्त दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। वैसे, अमूमन अमेरिका के हर राष्ट्रपति चुनाव में विदेश नीति का काफी बोलबाला होता है और अमेरिकी जनता भी इसमें काफी दिलचस्पी लेती है।

पहले के चुनावों से उलट इस बार कोरोना महामारी ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को काफी कठिन बना दिया है। इस बार अमेरिका की दोनों पार्टी डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन को अपना राष्ट्रीय सम्मलेन तक रद्द करना पड़ा है। वहीं इस बार हर साल आयोजित होने वाले टेलीविजन बहस को भी रद्द करना पड़ रहा है।

वैश्विक महामारी के कारण बिगड़ते हालात की वजह से कई अमेरिकी राज्यों ने पोस्टल वोटिंग कराने की इच्छा जताई है, जिसे लेकर ट्रंप ने पिछले महीने ट्वीट करते हुए कहा था कि पोस्टल वोटिंग में विदेशी दखल हो सकता है और इससे गलत नतीजे आ सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा चुनाव कि को तब तक के लिए टाल दिया जाए जब तक लोग सुरक्षित होकर वोटिंग नहीं कर सकते हैं। यह विचार राष्ट्रपति ट्रंप को तब आया है जब वो अपने विरोधी डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बिडेन से पीछे चल रहे हैं।

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव 2020 की तारीख में बदलाव की संभावना कम ही है, क्योंकि पहले भी अमेरिका में आर्थिक मंदी, विश्व युद्ध और यहां तक कि गृह युद्ध के बीच में राष्ट्रपति चुनाव हुए हैं। वैसे भी यूएस में राष्ट्रपति चुनाव में तारीख बदल की ताकत सिर्फ अमेरिकी संसद के पास है। ट्रंप चाहकर भी इसमें बदलाव नहीं कर सकते हैं। चुनाव की तारीखों में बदलाव के लिए उन्हें संसद के दो सदनों हाउस ऑफ़ रिप्रेजेन्टेटिव और सीनेट की मंजूरी लेनी होगी।

हाउस ऑफ़ रिप्रेजेन्टेटिव में डेमोक्रेटिक पार्टी को बहुमत है और डेमोक्रेटिक पार्टी के अधिकांश नेता पहले ही चुनाव में देरी से इन्कार कर चुके हैं। साथ ही चुनाव को टालने के किसी भी फैसले के लिए अमेरिकी संविधान में संशोधन कराने की जरूरत भी पड़ेगी। नए संशोधन के अनुसार कांग्रेस के सदस्यों और नए राष्ट्रपति प्रशासन के शपथ ग्रहण की तारीख को बदलना पड़ेगा।

अमेरिकी संविधान के हिसाब से हमेशा नवंबर के पहले सप्ताह में राष्ट्रपति पद के लिए मतदान होता है। यह मतदान सीधे राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए नहीं किया जाता है। अमेरिकी जनता सबसे पहले अपने इलाके से एक इलेक्टर का चुनाव करती है और यह इलेक्टर ही अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का प्रतिनिधि होता है।

इलेक्टरों के समूह को इलेक्टोरल कॉलेज कहा जाता है जिसमें कुल 538 सदस्य होते हैं जो अलग अलग अमेरिकी राज्यों से आते हैं। उसके बाद ये इलेक्टर ही राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं। अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के लिए किसी भी उम्मीदवार को 270 से अधिक इलेक्टर्स के समर्थन की जरूरत होती है। जिसके पास 270 से अधिक का आंकड़ा होता है वह व्यक्ति 20 जनवरी को अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेता है।