चीन की वुहान स्थित प्रयोगशाला से सबसे पहले कोरोना विषाणु के लीक होने का संदेह जताया जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने देश की खुफिया एजंसियों को कोरोना विषाणु के उद्भव स्थल के बारे में पुख्ता जानकारी जुटाने और सीआइए के पास उपलब्ध कथित दस्तावेजों की पुष्टि के आदेश दिए हैं। इसके लिए 90 दिन का वक्त तय किया गया है। ब्रिटिश खुफिया एजंसियों ने भी दावा किया है कि उनके पास चीन की प्रयोगशाला से विषाणु के फैलने के सबूत हैं।

बाइडेन के चुनावी वादों में से एक था कोरोना विषाणु के उद्भव की जांच। 20 जनवरी 2021 को बाइडेन राष्ट्रपति बने। चार महीने के भीतर उन्होंने जांच के आदेश दिए हैं। चीन जांच का विरोध कर रहा है और इसे कारोबार युद्ध में बदले की कार्रवाई बता रहा है। चीन ने अमेरिका को कई सारे तथ्य गिनाने शुरू किए हैं, जिसका आशय यह है कि विषाणु को प्रयोगशाला में नहीं बनाया गया है। चीन का कहना है कि वुहान की बंद पड़ी एक खदान में सबसे पहले विषाणु पाए गए।

फिर भी, दुनिया भर की एजंसियों के शक के घेरे में चीन शुरू से रहा है। कोलंबिया यूनिवर्सिटी में विषाणु विज्ञानी (वायरोलॉजिस्ट) इयान लिपकिन के मुताबिक, हो सकता है कि इस जांच के बाद भी हमें कुछ ज्यादा पता न लगे। ये भी हो सकता है, जितना अभी पता है, उससे ज्यादा कुछ मिले। इयान ने पिछले साल की शुरुआत में चीन का दौरा किया था। वहां के जन स्वास्थ्य अधिकारियों से बातचीत की थी। वे बताते हैं कि चीन पर सवाल उठने की कई वजहें हैं। पिछले साल जब कोविड के उद्भव को लेकर सवाल उठे थे, तो चीन ने बिना तथ्यों के ही इन्हें नकार दिया।

इसके बाद वह विश्व स्वास्थ्य संगठन से जांच कराने पर तैयार हुआ। लेकिन उस टीम में 13 चीनी विशेषज्ञों को रखने का दबाव बनाया और कामयाब भी रहा। फरवरी 2020 में चीनी सरकार ने वैज्ञानिकों के दल को मंजूरी दी, लेकिन शर्त थी कि इन लोगों को आंकड़ें चीनी विशेषज्ञ ही मुहैया कराएंगे। चीनी प्रयोगशाला की जांच की उसने मनाही कर दी। जांच रिपोर्ट मार्च 2021 में आई। कुल 313 पेज की इस रिपोर्ट से कुछ खास नहीं मिला। प्रयोगशाला से विषाणुओं के लीक होने की बात को रिपोर्ट में सिर्फ चार पेज में बगैर किसी राय के समेट दिया गया।

अब अमेरिकी खुफिया एजंसियों ने सबूत जुटाने का दावा किया है। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, अमेरिकी एजंसियों के पास प्रयोगशाला से लीक या चीन की साजिश से संबंधित कुछ नई जानकारियां हैं। अमेरिकी गृह विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन में कोरोना की शुरुआत नवंबर 2019 के पहले ही हो चुकी थी। कुछ शोधकर्ता बीमार पड़े थे। यही दावा ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ ने भी रिपोर्ट में किया है। चीन के मुताबिक, पहला मामला आठ दिसंबर 2019 को आया था।

अमेरिका मानता है कि इससे कई महीनों पहले ही विषाणु सक्रिय हो चुका था। ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और स्वीडन के अलावा पेरिस ग्रुप आफ रिसचर्स भी इसी तरफ इशारा कर रहे हैं। जानकारों का मानना है कि चीन इसे कूटनीतिक नजरिए से देख रहा है और अमेरिका, ब्रिटेन आदि देश भी राजनयिक कवायद कर रहे हैं। अगर विषाणु के उद्भव की सही तसवीर सामने आ जाती है तो भविष्य के कई संक्रमण से बचने का रास्ता खोजा जा सकता है।

जैविक हथियार का सवाल
कुछ दिन पहले ‘वीकेंड ऑस्ट्रेलिया’ नामक अखबार ने एक विशेषज्ञ के हवाले से लेख छापा था कि चीन 2015 से जैविक हथियार बनाने की कोशिश कर रहा है और उसकी सेना इस परियोजना में शामिल है। विशेषज्ञों ने शक जताया था कि प्रयोगशाला में शोध के दौरान गलती से यह विषाणु लीक हुआ। इसके बाद अमेरिकी अखबार ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ ने सोमवार को रिपोर्ट में कहा- चीन विषाणु की जो थ्योरी बताता है, उस पर शक होता है। क्योंकि नवंबर 2019 में ही वहां वुहान प्रयोगशाला के तीन वैज्ञानिकों में इसके लक्षण पाए गए थे और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था।