दुनिया के सबसे ताकतवर लोकतंत्र अमेरिका में जबरदस्त चुनावी माहौल देखने को मिल रहा है। एक ऐसा चुनाव जहां पर पूरी दुनिया की किस्मत ही दांव पर लगी है। जो जीतेगा, उसकी नीतियों का असर कई देशों पर पड़ेगा। अमेरिका का चुनाव इसी वजह से जरूरी हो जाता है क्योंकि उसका प्रभाव सिर्फ एक देश तक नहीं रहता है। इस बार की स्थिति वैसी ही बनी हुई है बल्कि कहना चाहिए और ज्यादा विस्फोटक चल रही है। डोनाल्ड ट्रंप पर जानलेवा हमला होना, बाइडेन की दावेदारी पर लगातार सवाल उठना, अमेरिका चुनाव के लिहाज ये अहम पहलू हैं।
अब इन्हीं सब घटनाओं की वजह से अमेरिका चुनाव को लेकर सभी की दिलचस्पी तो बढ़ी है, लेकिन क्योंकि जानकारी का आभाव रहता है, उस वजह से लोग ज्यादा बात नहीं कर पाते हैं। लेकिन इस कमी को दूर किया जा सकता है अगर एक ही जगह पर सारी जानकारी मिल जाए, वो भी आसान भाषा में।
अमेरिका में कैसे होता है चुनाव
असल में मतदाता अपने-अपने इलेक्टर को चुनते हैं। इलेक्टर किसी न किसी पार्टी का समर्थक ही होता है। यूएस मे कुल 538 इलेक्टर चुने जाते हैं जो कि इलेक्टोरल कॉलेज बनाते हैं। इसके बाद आम जनता की प्रतिभागिता खत्म हो जाती है। अब इलेक्टर वोट देते हैं और राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं। सरकार बनाने के लिए कम से कम 270 इलेक्टर्स की जरूरत होती है।
समझने वाली बात यह भी है कि अमेरिका में चुनाव लड़ने के लिए तीन मानक पूरे करने जरूरी हैं। पहला, अमेरिका का नैचुरल बॉर्न नागरिक होना चाहिए। कम से 35 साल उम्र होनी चाहिए। पिछले 14 साल से अमेरिका में ही रह रहा हो। यहां दो पार्टी सिस्टम है।
अमेरिका में पहली सीढ़ी प्राइमरी इलेक्शन होता है। इसका कोई लिखित निर्देश नहीं है लेकिन सभी राज्यों में चुनाव कराकर पार्टी अपने प्रबल दावेदार का पता लगाती है। इसमें लोग बताते हैं कि उनका पसंदीदा उम्मीदवार कौन है। कॉकस की प्रक्रिया उन जगहों पर होती है जहां पार्टी की अच्छी पकड़ होती है। कॉकस में पार्टी के ही लोग वोट करते हैं। प्राइमरी में बैलट के जरिए वोटिंग होती है।
प्राइमरी में चुने गए प्रतिनिधि फिर नेशनल कन्वेंशन में हिस्सा लेते हैं यही प्रतिनिधि राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को चयन करते हैं. इसके बाद शुरू होता है चुनाव प्रचार। उम्मदवार टीवी और डायरेक्ट डिबेट के जरिए मतदाताओं को लुभाने की कोशिश करते हैं। सबसे आखिरी में उम्मीदवार ‘स्विंग स्टेट्स’ के पीछे ताकत झोंकते हैं। ये ऐसे राज्य होते हैं जहां के मतदाता किसी के भी पक्ष में मतदान कर सकते हैं।
ट्रंप-बाइडेन की पॉलिसी
अब चुनाव कैसे होते हैं, यह तो पता चल गया, लेकिन कौन-कौन सी पार्टियां इस चुनाव में हिस्सा लेती हैं, उनकी क्या विचारधारा है, यह समझना भी जरूरी है। अमेरिका में दो ही प्रमुख पार्टियां हैं- डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन। अब आसान भाषा में अब डेमोक्रेट्स को भारत की कांग्रेस पार्टी की तरह देख सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यह पार्टी खुले विचारों की मानी जाती है। दूसरी तरफ रिपब्लिकन पार्टी थोड़ी-थोड़ी भारत की बीजेपी जैसी है जिसकी सोच थोड़ी रूढ़िवादी मानी जाती है।
इसी वजह से जिस भी पार्टी की सरकार बनती है, उसकी सोच ही अमेरिका की नीतियों पर पूरी तरह हावी हो जाती है। अर्थव्यवस्था, इमिग्रेशन, एबॉर्शन,यूक्रेन, इजरायल-हमास, टैक्स, हेल्थकेयर, गन लॉ कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो वर्तमान में अमेरिका की राजनीति में सबसे ज्यादा दखल रखते हैं।
समझने की कोशिश करते हैं कि इन्हीं मुद्दों पर डोनाल्ड ट्रंप और जो बाइडेन की क्या सोच है, उनके विचार एक दूसरे से कितने अलग बैठते हैं। इस तुलना से ही पता चल जाएगा कि किसकी सरकार आने से किसे कितना फायदा पहुंचने वाला है।
इकोनॉमी– जो बाइडेन जिस तरह की राजनीति करते हैं, वहां पर उनके लिए नीचे से ऊपर तक का विकास होना जरूरी है। वे शुरुआत से ही बाइडनॉमिक्स का जिक्र करते हैं। उनकी सोच और नीति में इंफ्रास्ट्रक्चर और मैन्युफैक्चरिंग मायने रखती है। इसके ऊपर क्लीन एनर्जी भी डेमोक्रेट्स का एक प्रमुख मुद्दा रहता है। अब जो बाइडेन के कार्यकाल में नौकरियां मिली हैं, रोजगार बढ़ा है, लेकिन फिर भी युवाओं में गुस्सा भी है। उस गुस्से का कारण है बेलगाम महंगाई।
डोनालड ट्रंप की बात करें तो वे तो टैक्स को कम करने की वकालत करते हैं, वे पिछले कार्यकाल में भी इसी वादे को लेकर चर्चा में रहते थे। उनके मुताबिक अगर उनकी सरकार बनती है तो वे तुरंत फेडरल रिसर्व के चेयरमेन जीरोम पोवेल को हटा देंगे, कहने को उनकी नियुक्ति ट्रंप ने ही पिछले कार्यकाल में की थी, लेकिन अब वे उन्हें ज्यादा ही राजनीति से प्रेरित मानने लगे हैं।
इमिग्रेशन- इमिग्रेशन को लेकर जो बाइडेन हमेशा से ही इंसानियत के पहलू को ज्यादा फोकस देते हैं। इसी वजह से सत्ता में आते ही उन्होंने कई वैसे कानूनों को रद्द कर दिया जिस वजह से अमेरिका आना मुश्किल हो रहा था। लेकिन बाइडेन की इस सोच का खामियाजा भी भुगतना पड़ रहा है, स्थिति ऐसी बनी हुी है कि लोग ही पार्टी को इस नीति के लिए घेर रहे हैं। दूसरी तरफ खड़े डोनाल्ड ट्रंप की आर्थिक नीति बिल्कुल ही विपरीत अंदाज में चलती है। वे तो एक बार फिर सत्ता में आने के बाद बॉडरों को सील करने की बात कर रहे हैं, उनके मुताबिक तो अवैध रूप से देश में एंट्री लेने वालों को भी बाहर निकाला जाए। ड्रग्स कार्टेल के खिलाफ भी सख्त एक्शन की पैरवी ट्रंप करते हैं।
यूक्रेन युद्ध– यूक्रेन को जो बाइडेन की सरकार लगातार हथियार मुहैया करवा रही है। लगातार अपनी पार्टी से भी मांग की जा रही है कि यूक्रेन का समर्थन हो। अब बाइडेन के विरोधी ट्रंप की बात करें तो वे तो रूस को बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं, यहां तक कह रहे हैं कि नेटो देशों के खिलाफ जो एक्शन लेना है, वो जल्दी लें। इस स्टैंड में अब कुछ नरमी जरूर देखने को मिलती है।
इजरायल-हमास युद्ध– इजरायल हमास युद्ध को लेकर फिर भी बाइडेन और ट्रंप की सोच कुछ मिलती जुलती दिखती है। असल में जो बाइडेन का स्टैंड भी साफ है कि इजरायल को लगातार आर्थिक मदद पहुंचाई जाएगी। ऐसे में उनका समर्थन तो उसी तरफ है। ट्रंप की बात करें तो वे भी इजरायल का समर्थन करते हैं, लेकिन यहां तक कहते हैं कि जल्द से जल्ज अपने अधूरे युद्ध को खत्म करना चाहिए।
टैक्स– टैक्स को लेकर कहा जाता है कि जो बाइडेन, ट्रंप की तरह रेट कम करने में विश्वास नहीं करते हैं। दूसरी तरफ ट्रंप ने तो कॉरपोरेट टैक्स को 25 फीसदी पर फिक्स करने की बात कर दी है।