रूस के राष्ट्रपति पुतिन की बेजिंग यात्रा रूस-चीन के बीच अब तक की सबसे मजबूत साझेदारी को उजागर करती है। अमेरिकी दबाव के खिलाफ ऊर्जा, व्यापार और भू-राजनीति उन्हें और करीब ला रही है। सैन्य परेड में पुतिन की मौजूदगी पहली बार नहीं था, लेकिन इसका सांकेतिक महत्व था, ये चीन के प्रति रूस के झुकाव का संकेत देती है।
पिछले दिनों रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के चीन दौरे का नतीजा रूस-चीन साझेदारी में और मजबूती का संकेत देता है। रूसी राष्ट्रपति शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए तियानजिन और जापानी सेना के खिलाफ चीन की जीत की 75वीं सालगिरह के अवसर पर तियानमेन स्क्वायर में सैन्य परेड देखने के लिए बेजिंग गए थे। ये यात्रा ऐसे समय हुई जब अमेरिका की तरफ से दबाव बढ़ रहा है और अमेरिका में ये चर्चा चल रही है कि जो देश रूस के साथ व्यापार कर रहे हैं, उनके खिलाफ प्रतिबंधों और शुल्क को और सख्त किया जाएगा। इस बदलाव ने एक गैर-पश्चिमी क्षेत्रीय समूह के रूप में एससीओ के बढ़ते महत्व को रेखांकित किया।
सैन्य परेड में पुतिन की मौजूदगी पहली बार नहीं थी, लेकिन इसका सांकेतिक महत्व था, ये चीन के प्रति रूस के अधिक झुकाव का संकेत देती है। परेड के इर्द-गिर्द जो दृश्य सामने आया वो ये दर्शाता है कि अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में चीन के हितों को रूस अधिक महत्व दे रहा है। पुतिन की इस यात्रा के दौरान 22 समझौते किए गए जिनमें ऊर्जा, विज्ञान और स्वास्थ्य देखभाल जैसे क्षेत्र शामिल हैं। ये समझौता प्रमुख शर्तों को लेकर असहमति के कारण लंबे समय से टाला जा रहा था लेकिन इसको लेकर सफलता रूस-चीन गठजोड़ को आगे बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण कदम का संकेत देती है।
रूस-चीन साझेदारी का बदलता दृष्टिकोण
90 के दशक से रूस और चीन ने राजनीतिक, सैन्य और आर्थिक क्षेत्रों में अपनी साझेदारी को लगातार मजबूत किया है। लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवादों के समाधान और मतभेदों के धीरे-धीरे दूर होने से उनके संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए मजबूत जमीन मिली। दोनों देशों ने यूरेशिया में सहयोग बढ़ाने और एससीओ एवं ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) जैसे अलग-अलग क्षेत्रीय और बहुपक्षीय मंचों पर तालमेल के लिए अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट किया है। दोनों देशों ने अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में सहायक हितों को भी व्यक्त किया है और पश्चिमी देशों के नेतृत्व वाली व्यवस्था में सुधार की वकालत की है।
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2000 के दशक में दोनों देशों के बीच सैन्य-तकनीकी साझेदारी मजबूत हुई और चीन को हथियारों के प्रमुख आपूर्तिकर्ता के रूप में रूस उभरा। 2010 के दशक में पश्चिमी देशों से दोनों देशों का विवाद बढ़ने के साथ चीन ने रूस से एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम और सुखोई-35 लड़ाकू विमान खरीदे। दोनों देशों ने अपने साझा सैन्य अभ्यास में भी महत्वपूर्ण बढ़ोतरी की। इसके बाद द्विपक्षीय व्यापार और निवेश में भी विस्तार हुआ।
2014 में रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के बाद रूस आर्कटिक और दूरदराज के पूर्व जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में चीन के निवेश को लेकर रूस अधिक इच्छुक हो गया। यूक्रेन में युद्ध और 2022 में रूस के खिलाफ लगाए गए सख्त प्रतिबंधों के बाद चीन 2023 में यूरोपियन यूनियन को पीछे छोड़कर रूस का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार बन गया। चीन प्रतिबंध लगाने वाले देशों में शामिल नहीं हुआ। वहीं, भारत-रूस संबंधों की राह में अड़चन पैदा करने के उद्देश्य के साथ भारत के खिलाफ पिछले दिनों लगाए गए शुल्क ने दोनों देशों के रिश्तों को और मजबूत किया है।