अमेरिका में रविवार (26 जनवरी, 2020) को भारत के 71वें गणतंत्र दिवस का जश्न नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शनों के चलते फीका पड़ गया। अमेरिका के विभिन्न शहरों में रविवार को भारतीय अमेरिकियों ने प्रदर्शन में हिस्सा लिया। हालांकि संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) 2019 के समर्थन में भी लोग सामने आए। उनका कहना था कि ‘भारत को पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों की परवाह है’ और ‘सीएए का भारतीय नागरिकों पर कोई प्रभाव नहीं होगा।’ समर्थक हालांकि प्रदर्शनकारियों की तुलना में काफी कम थे, जिन्होंने भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने पर खतरा मंडराने की बात कही।

न्यूयॉर्क, शिकागो, ह्यूस्टन, अटलांटा और सैन फ्रांसिस्को के भारतीय वाणिज्य दूतावास और वाशिंगटन में भारतीय दूतावास में प्रदर्शनकारियों ने ‘भारत माता की जय’ और ‘हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, आपस में सब भाई-भाई’ नारे लगाए। सीएए के खिलाफ सबसे बड़ा प्रदर्शन शिकागो में किया गया जहां भारतीय अमेरिकी बड़ी संख्या में एकत्रित हुए और कई मील लंबी मानव श्रृंखला बनाई। प्रदर्शनकारियों ने अपनी विभिन्न मांगों की बीच एक मांग यह भी की कि अमेरिका भारत के गृहमंत्री अमित शाह पर बैन लगाए। ‘कोएलिशन टू स्टॉप जिनोसाइड’ नाम के एक संगठन की तरफ से यह मांग की गई, जिसके बैनर तले विभिन्न संगठनों ने सीएए के खिलाफ प्रदर्शन किया।

उल्लेखनीय है कि संगठन यह भी चाहता है कि अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ भारत को यूएस के अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता सूचकांक में नामित करें, जिनमें गंभीर धार्मिक स्वतंत्रता उल्लंघन होता है। प्रदर्शनकारी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से भी अपील कर रहे हैं कि फरवरी के अंत में ट्रंप की प्रस्तावित भारत यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से CAA को रद्द करने के लिए कहें।

बता दें कि अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में 500 से अधिक भारतीय अमेरिकियों ने व्हाइट हाउस के निकट से भारतीय दूतावास के पास स्थित गांधी प्रतिमा तक मार्च निकाला। अमेरिका के करीब 30 शहरों में हाल में गठित संगठन ‘कोएलिशन टू स्टॉप जिनोसाइड’ ने विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया। इसमें भारतीय अमेरिकी मुस्लिम परिषद (आईएएमसी) इक्वालिटी लैब्स, ब्लैक लाइव्स मैटर (बीएलएम), ज्यूईश वॉयस फॉर पीस (जेवीपी) और मानव अधिकारों के लिए हिंदू (एचएफएचआर) जैसे कई संगठन शामिल हैं।

मैगसायसाय पुरस्कार विजेता संदीप पांडे ने वाशिंगटन डीसी में लोगों को संबोधित किया। उन्होंने कहा, ‘भारत सरकार द्वारा सीएए और एनआरसी के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों पर बर्बर कार्रवाई करने के कारण ऐसे हालत बने कि सरकार के विभाजनकारी-सांप्रदायिक तथा फासीवादी एजेंडे को चुनौती देने के लिए महिलाओं को बड़ी संख्या में सड़कों पर उतरना पड़ा।’ इस बीच, कुछ स्थानों पर खालिस्तान समर्थकों ने भारत विरोधी प्रदर्शन किए।

इसके अलावा यूरोपीय संसद भारत के संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ उसके कुछ सदस्यों द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव पर बहस और मतदान करेगी। संसद में इस सप्ताह की शुरुआत में यूरोपियन यूनाइटेड लेफ्ट/नॉर्डिक ग्रीन लेफ्ट (जीयूई/एनजीएल) समूह ने प्रस्ताव पेश किया था जिस पर बुधवार को बहस होगी और इसके एक दिन बाद मतदान होगा। इस प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र, मानव अधिकार की सार्वभौमिक घोषणा (यूडीएचआर) के अनुच्छेद 15 के अलावा 2015 में हस्ताक्षरित किए गए भारत-यूरोपीय संघ सामरिक भागीदारी संयुक्त कार्य योजना और मानव अधिकारों पर यूरोपीय संघ-भारत विषयक संवाद का जिक्र किया गया है।

इसमें भारतीय प्राधिकारियों से अपील की गई है कि वे सीएए के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों के साथ ‘‘रचनात्मक वार्ता’’ करें और ‘भेदभावपूर्ण सीएए’ को निरस्त करने की उनकी मांग पर विचार करें। प्रस्ताव में कहा गया है, ‘सीएए भारत में नागरिकता तय करने के तरीके में खतरनाक बदलाव करेगा। इससे नागरिकता विहीन लोगों के संबंध में बड़ा संकट विश्व में पैदा हो सकता है और यह बड़ी मानव पीड़ा का कारण बन सकता है।’

सीएए भारत में पिछले साल दिसंबर में लागू किया गया था जिसे लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। भारत सरकार का कहना है कि नया कानून किसी की नागरिकता नहीं छीनता है बल्कि इसे पड़ोसी देशों में उत्पीड़न का शिकार हुए अल्पसंख्यकों की रक्षा करने और उन्हें नागरिकता देने के लिए लाया गया है। (भाषा इनपुट)