आपने तोपों की सलामी शब्द या परंपरा के बारे में जरूर सुना होगा। हमारे देश में हर साल 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रध्वज को फहराने पर 21 तोपों की सलामी दी जाती है। लेकिन यह तोपों की सलामी देने की परंपरा देश और दुनिया में कब और कैसे शुरू हुई, इसके बारे पूरी जानकारी कहीं भी उपलब्ध नहीं है। इसकी शुरुआत कब और किसने की यह कह पाना मुश्किल है लेकिन माना जाता है कि यह संभवत: चौदहवीं शताब्दी में शुरू हुई जब तोपों का इस्तेमाल होने लगा।
उस समय नौसेना की प्रथा के अनुसार, हारी हुई सेना से, अपना गोला-बारूद खाली करने की मांग की जाती थी जिससे वह उसका फिर इस्तेमाल न कर सके। जहाजों पर सात तोपें हुआ करती थीं क्योंकि सात की संख्या को शुभ माना जाता है। क्योंकि समुद्र के मुकाबले धरती पर ज्यादा बारूद रखा जा सकता था इसलिए जहाज की एक तोप के जवाब में किनारे से तीन तोपें (7×3=21) दागी जाती थीं। इस तरह 21 तोपों की सलामी की शुरुआत हुई।
धीरे धीरे तोपों की सलामी देश का सर्वोच्च सम्मान समझा जाने लगा। किसे कितनी तोपों की सलामी दी जाएगी इसका भी एक नियम था। मसलन, शुरुआत में जब यह व्यवस्था शुरू हुई तो पद तथा रुतबे के अनुसार तोपें दागीं जाती थीं। ब्रिटिश इंडिया में रानी एवं महारानी के लिए एक सौ एक तोपों की सलामी का प्रावधान था। वहीं भारत के वाइसरॉय के लिए 31 तोपों की सलामी तय थी।
भारत के अन्य प्रभावशाली राजाओं को उनके अंग्रेजों के साथ संबंधों के अनुसार क्रमश: 21, 19, 17, 15 एवं 9 तोपों की सलामी दी जाती थी। फिर ब्रिटेन ने तय किया कि अंतरराष्ट्रीय सलामी 21 तोपों की ही होनी चाहिए। अमेरिका में भी 21 तोपों की सलामी की प्रथा है। वहां नए राष्ट्रपति के शपथ के मौके पर यह सलामी दी जाती है।
इस समय हमारे देश में गणतंत्र दिवस के अवसर पर राष्ट्रध्वज को 21 तोपों की सलामी दी जाती है। नए राष्ट्रपति के राष्ट्रपति भवन पहुंचने पर उन्हें भी 21 तोपों की सलामी मिलती है। द बैलेंस वेबसाइट के मुताबिक अमेरिका और दूसरे देशों में तोपों की सलामी की संख्या प्रोटोकॉल रैंक पर आधारित होती है। ये सलामी हमेशा विषम नंबर्स (गिनती) में दी जाती है। यानी 21, 19, 17, 15 और 9 तोपों की सलामी। हमारे देश में वायुसेना के दिवंगत मार्शल अर्जन सिंह को ही 17 तोपों की सलामी दी गई थी।

दिल्ली दरबार से शुरुआत पहला वायरलेस तार: यह दरबार इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां से वाइसरॉय का 1 जनवरी का भाषण लंदन कार्यालय तक तार से भेजा गया था। यह पहली बार था जब एक भाषण को तार से भेजा गया। यह इसलिए भी खास था क्योंकि यह तार बेतार यानी वायरलेस था।
यूं तो हमारे देश में तार या टेलिग्राम 1854 में शुरू हो गया था। हालांकि इसकी शुरुआत 1850 में हुई थी और उस समय कलकत्ता तथा डायमंड हार्बर के बीच इससे संदेश भेजे तथा प्राप्त किए जाते थे। चार साल बाद यानी 1854 में इस जनता के लिए खोल दिया गया। धीरे धीरे पूरे देश में तार के लिए केबल लाइनें बिछाई जाने लगीं और पहली लंबी दूरी की तार सेवा बंबई तथा पुणे के बीच थी।