प्रधानमंत्री मोदी को पाकिस्तान आने का न्योता मिला है। SCO समिट में शामिल होने के लिए औपचारिक आमंत्रण पड़ोसी मुल्क द्वारा भेज दिया गया है। दूसरी तरफ रूस ने भी ब्रिक्स समिट के लिए पीएम मोदी को बुलाया है, वहां चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी जाने वाले हैं। यानी कि एक तरफ अगर पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने की शुरुआत हो सकती है तो दूसरी तरफ चीन के साथ चल रही तल्खी को भी कम करने का मौका मिल सकता है। लेकिन सवाल वही है- क्या पीएम मोदी अपने तीसरे कार्यकाल में अपनी रणनीति को बदलने को तैयार हैं? क्या पीएम मोदी पाकिस्तान पर अपना रुख बदल सकते हैं, चीन को लेकर उनकी सोच अब क्या रहने वाली है?
मोदी पाकिस्तान गए तो क्या मायने?
9 साल पहले पीएम नरेंद्र मोदी पाकिस्तान गए थे। 25 दिसंबर, 2015 को पीएम अचानक से लाहौर पहुंच गए थे। असल में गए वे अफगानिस्तान दौरे पर थे, लेकिन अंतिम दिन दिल्ली आते वक्त वे 150 मिनट के लिए पाकिस्तान में रुके। किसी को भी उनके उस दौरे की जानकारी नहीं थी, लेकिन पीएम ने एक बड़ा कूटनीतिक दांव चलते हुए पाकिस्तान लैंड होने का फैसला किया। वहां पर तब के तत्कालनी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने काफी गर्मजोशी से पीएम का स्वागत किया था, उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर तक दिया गया। बाद में मोदी नवाज की पोती के निकाह में शामिल हुए और फिर भारत वापस लौटे। अब उस दौरे के बाद ऐसा माना गया कि भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में सुधार हो सकता है। लेकिन फिर उरी हमला और फिर पुलवामा ने खटास बढ़ाने का काम कर दिया।
अब उसके बाद से ही भारत और पाकिस्तान के बीच में तल्खी बढ़ती गई है। भारत का साफ स्टैंड रहा है, जब तक आतंकवाद पर काबू नहीं, पाकिस्तान से कोई बातचीत नहीं। इसके ऊपर भारत पाकिस्तानी आर्मी को भी बहुत भरोसे के साथ नहीं देखता है। उसके लिए पड़ोसी मुल्क में एक लोकत्रांतिक सरकार का होना ज्यादा जरूरी है ना कि कोई सेना की कठपुतली। अब अभी तक तो पाकिस्तान ने इन दोनों ही जरूरतों को पूरा नहीं किया है, ऐसे में अगर पीएम मोदी अपने तीसरे टर्म में पाकिस्तान जाने का फैसला लेते हैं, उन्हें अपने ही बनाए इन दो सिद्धांतों पर सफाई पेश करनी पड़ेगी। यह नहीं भूलना चाहिए कि जब पीएम मोदी 2015 में अचानक से पाकिस्तान चले गए थे, तब भी उन्हें विपक्ष के कई आरोपों का सामना करना पड़ा था। अब एक कमजोर जनादेश के साथ भी क्या पीएम मोदी ऐसा रिस्क ले सकते हैं?
क्या मतभेद खत्म करेंगे भारत-चीन?
वैसे जिस SCO समिट के लिए पीएम मोदी को न्योता गया है, उसकी अहमियत समझना जरूरी है। असल में मध्य एशिया में सभी देशों के बीच में सहयोग बना रहे, इस वजह से ही एससीओ संगठन बनाया गया था। इसमें पाकिस्तान, चीन जैसे देशों को शामिल किया गया है। इससे पहले भी जब भारत ने इस समिट में शिरकत की है, उसने आतंकवाद पर खुलकर अपनी बात रखी, पाकिस्तान की उस वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फजीहत भी देखने को मिली। ऐसे में अगर इस नजरिए से देखें तो अगर पीएम मोदी खुद पाकिस्तान जाते हैं, तो उनके पास पाक की धरती से ही उसे आईना दिखाने का एक मौका मिल सकता है। उनकी भारत के अंदर ही ‘एंटी पाकिस्तान’ वाली छवि और मजबूत हो सकती है। लेकिन जानकार मानते हैं कि कूटनीति वाले अनुशासन के तहत पीएम मोदी इतना सीधा अटैक नहीं कर पाएंगे, ऐसे में उनका पाकिस्तान जाना मुश्किल है।
जानकारी के लिए बता दें कि दिल्ली के कार्यक्रम में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी बोला है कि पाकिस्तान से बातचीत का दौर बीत चुका है। उसे याद रखने की जरूरत है कि हर एक्शन का रिएक्शन होता है। अब इस प्रकार का बयान तो बताता है कि भारत सरकार अभी भी पाकिस्तान को लेकर बहुत सकारात्मक नहीं है, ऐसे में पीएम मोदी का वहां जाना मुश्किल ही लगता है।
मोदी जिनपिंग से मिले तो क्या मायने
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के रिश्तों को समझना काफी मुश्किल है। सीमा पर तनाव होने की वजह से एक समय दोनों की दिखने वाली सियासी केमिस्ट्री अब कहीं गायब हो चुकी है। उन तस्वीरों को कोई भूला नहीं है जब पीएम मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान राष्ट्रपति शी जिनपिंग को तमिलनाडु के महाबलीपुरम में मिलने के लिए बुलाया था। जिस तरह की गर्मजोशी तब दोनों नेताओं के बीच देखने को मिली, वैसी स्थिति फिर दोबारा नहीं बन सकी। उसके बाद तो गलवान में संघर्ष, फिर तवांग में तनाव ने स्थिति को और ज्यादा बिगाड़ने का काम किया। पीएम मोदी ने आखिरी बार 2023 में चीनी राष्ट्रपति से ब्रिक्स समिट में ही मुलाकात की थी। उसे भी एक अनऔपचारिक बैठक बताया गया, यानी कि औपचारिक रूप से तो लंबे समय से दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय बातचीत नहीं हुई है।
अब समझने वाली बात यह है कि भारत और चीन दोनों ही तरफ से ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि इस बार ब्रिक्स समिट में औपचारिक रूप से भी मोदी-जिनपिंग की मुलाकात हो सकती है। दो बड़े संकेत इस बात के पहले ही मिल चुके हैं। पहला संकेत तो यह रहा कि लोकसभा चुनाव के दौरान ही चीन ने करीब 18 महीने बाद भारत में अपना राजदूत नियुक्त कर दिया था। रिश्तों में तनाव की वजह से जो पद खाली हुआ था, उसकी बहाली ही बताने के लिए काफी रही कि तनाव की बर्फ कुछ हद तक पिघली है। दूसरा बड़ा संकेत यह देखने को मिल रहा है कि भारत और चीन दोनों ही फिर एलएसी पर विवाद को खत्म करने की पुरजोर तौर से कोशिश कर रहे हैं। माना जा रहा है कि पीएम मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की संभावित मुलाकात से पहले कई मुद्दों पर सहमति बनानी है। इस वजह से ही अब मिलिट्री से ज्यादा कूटनीति के जरिए समाधान निकालने की कोशिश हो रही है।
भारत और पाकिस्तान का कारोबार
अब अगर किसी भी देश से फिर रिश्ते साधने होते हैं तो उस मुल्क के साथ व्यापारिक रिश्ते भी आगे बढ़ाने पड़ते है। यही पर पाकिस्तान के साथ भारत की बात बिगड़ जाती है क्योंकि पिछले पांच सालों से भारत और पाकिस्तान के बीच में व्यापार पूरी तरह ठप चल रहा है। जब भारत ने जम्मू-कश्मीर से धारा अनुच्छेद हटाने का फैसला किया था, पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई में सारे व्यापारिक रिश्ते खत्म कर लिए थे। यह अलग बात है कि उससे पहले ही भारत ने पाकिस्तान से मोस्ट फेवर्ड नेशन का टैग उससे वापस ले लिया था, इसके ऊपर पाकिस्तान के इंपोर्ट पर भारत ने ही 200 प्रतिशत तक टैरिफ बढ़ा डाला था, ऐसे में व्यापार तो पहले ही काफी ठंडा हो चुका था।
वैसे एक जमाने में जरूर पाकिस्तान, भारत से कपास, ऑर्गेनिक केमिकल, प्लास्टिक, न्यूक्लियर रिएक्टर, बॉयलर्स, मशीनरी जैसे उत्पाद लेता था। वही भारत को भी पाकिस्तान से फल,सूखे मेवे, नमक, सल्फर, पत्थर मिला करते थे। लेकिन बढ़ते आतंकी हमलों की वजह से भारत ने पाकिस्तान से यह सब लेना बंद कर दिया। यह अलग बात है कि पाकिस्तान को कई जरूरी दवाइयां भारत आज भी देने का काम करता है। लेकिन अगर पीएम मोदी अब नई पहल करते हुए पाकिस्तान जाते हैं, तो वहां पर दोनों देशों के व्यापारिक देशों को लेकर फिर मंथन किया जा सकता है। अगर वे नहीं जाते तो उस स्थिति में यथास्थिति बरकरार रहने की संभावना है।
भारत और चीन का कारोबार
भारत और चीन के बीच में सबसे ज्यादा कारोबार देखने को मिलता है। यह बात हैरान भी कर सकती क्योंकि भारत के चीन के साथ रिश्ते उतने खास नहीं चल रहे हैं। लेकिन GTRI का डेटा इस बात की तस्दीक करता है कि भारत का चीन के साथ कारोबार अमेरिका से भी ज्यादा है। पिछले वित्त वर्ष में भारत और चीन के बीच में 118.4 अरब डॉलर का रहा था। वर्तमान में भारत चीन से सबसे ज्यादा लेक्ट्रॉनिक सामान, न्यूक्लियर रिएक्टर्स, बॉयलर, ऑर्गेनिक केमिकल और फर्टिलाइजर को आयात करता है।
चीन-पाकिस्तान पर एनडीए दल क्या सोचते हैं
पिछले दस सालों में मोदी सरकार के पास पूर्ण बहुमत था, ऐसे में पाकिस्तान और चीन को लेकर क्या स्टैंड रहना है, इसमें कोई कन्फ्यूजन नहीं। जीरो टॉलरेंस ऑन टेरररिज्म के जरिए ही कई मौकों पर पाकिस्तान को आईना दिखाने का काम हुआ। तो वही दूसरी तरफ चीन को कई मौकों पर LAC पर दमखम दिखाया गया। अगर पाकिस्तान को सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक के जरिए इरादे बता दिए गए थे तो चीन को भी गलवान में अपनी ताकत का अहसास करवाया गया। लेकिन अब जब बीजेपी के पास अपने दम पर बहुमत नहीं है और जेडीयू और टीडीपी जैसी पार्टियों का सहयोग उसे चाहिए। अभी तक मोदी सरकार के लिए पाकिस्तान और चीन बैशिंग उसकी हिंदुत्व वाली राजनीति के लिए भी जरूरी था। लेकिन बदली ही स्थिति में जब जेडीयू और टीडीपी को साथ रखना है, उस एजेंडे पर आगे बढ़ना थोड़ा मुश्किल हो सकता है।
असल में जेडीयू और टीडीपी पारंपरिक रूप से खुद को सेकुलर पार्टियां मानती हैं और बीजेपी की हिंदुत्व राजनीति से दोनों ही कई मौकों पर असहज रही हैं। ऐसे में पाकिस्तान और चीन को लेकर अगर कोई भी फैसला लेना होगा, इन दोनों दलों को साथ लेकर चलना जरूरी है।