वैश्विक शिक्षा मामलों के संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत ने कहा है कि अफगान लड़कियों व महिलाओं को शिक्षा और रोजगार से वंचित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) को तालिबानी नेताओं के खिलाफ मुकदमा चलाना चाहिए। गॉर्डन ब्राउन ने मंगलवार को अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के दो साल पूरे होने पर ऑनलाइन संयुक्त राष्ट्र प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि तालिबान के शासक आज दुनिया में महिलाओं के अधिकारों और लड़कियों के अधिकारों के सबसे गंभीर, क्रूरतम और अक्षम्य हनन के लिए जिम्मेदार हैं।
ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने आईसीसी प्रासीक्यूटर करीम खान को एक कानूनी राय भेजी है, जिसके मुताबिक शिक्षा और रोजगार से वंचित करना लैंगिक भेदभाव है। इसे मानवता के खिलाफ अपराध के रूप में देखा जाना चाहिए। इस पर आईसीसी को मुकदमा चलाना चाहिए।
अगस्त 2021 में तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कर लिया था कब्जा
आतंकवाद के खिलाफ 20 वर्षों के युद्ध के बाद अमेरिकी और नाटो सुरक्षा बलों की वापसी के अंतिम सप्ताह के दौरान अगस्त 2021 में तालिबान ने देश की सत्ता पर कब्जा कर लिया था। तालिबान ने 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान के अपने पिछले शासन के दौरान इस्लामी कानून या शरिया के कठोर नियमों को लागू किया था। उसने लड़कियों को छठी कक्षा से आगे स्कूल जाने और महिलाओं के नौकरियों, सार्वजनिक स्थानों और जिम जाने पर पाबंदी लगा दी गई है। तालिबान शासन ने हाल में ब्यूटी सैलून को भी बंद कर दिया।
ब्राउन ने प्रमुख मुस्लिम देशों से मौलवियों का एक प्रतिनिधिमंडल कंधार में भेजने का आग्रह किया, ताकि यह साफ किया जा सके कि महिलाओं की शिक्षा और रोजगार पर प्रतिबंध का कुरान या इस्लामी धर्म में कोई उल्लेख नहीं है। इन पाबंदियों को हटाया जाए। उनका मानना है कि शिक्षा मंत्रालय और सरकार में मतभेद हैं। कई पक्ष लड़कियों के शिक्षा के अधिकारों को बहाल होते देखना चाहते हैं।
तालिबान के मुख्य प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने कहा कि यथास्थिति बनी रहेगी। उन्होंने यह भी कहा कि तालिबान अफगानिस्तान में अपने शासन को ऐसा खुला शासन मानता है, जिसे इस्लामी कानून से वैधता हासिल है।