अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दूसरी बार सत्ता में आने के बाद से शुल्क का मुद्दा लगातार उठ रहा है। शुल्क को लेकर ट्रंप भारत पर लगातार निशाना साधते रहे। हालांकि, इससे पहले भारत और अमेरिका के संबंध प्रशासन दर प्रशासन बेहतर होते बताए जा रहे थे। ऐसे में सवाल यह ठता है कि क्या भारत और अमेरिका के संबंध बदल रहे हैं?। भारत के पूर्व विदेश सचिव शशांक का कहना है कि पिछले 20-25 साल से भारत और अमेरिका में जो भी सरकार या प्रशासन आए, उन्होंने आपसी रिश्ते को विश्व में बन रहे नए मापदंडों में ढालने की कोशिश जारी रखी। वहीं भारत और अमेरिका के बीच संबंध की जो हालिया स्थिति है, उसकी वजह विशेषज्ञ ट्रंप का रवैया मानते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक एक तरफ डोनाल्ड ट्रंप हैं, उनकी शखिसयत है, उनकी राजनीति है।

डोनाल्ड ट्रंप के न कोई उसूल हैं, न उनके कोई नियम-कानून हैं। उनके पहले प्रशासन को भी हमें याद रखना होगा जब वह 2016 में राष्ट्रपति बनकर आए थे। उस दौरान भी डोनाल्ड ट्रंप ने ऐसे कई फैसले लिए थे, जो भारत के लिए सही नहीं थे। ट्रंप प्रशासन के दबाव के कारण ही मई 2019 में भारत ने ईरान से अपना तेल आयात बिल्कुल बंद कर दिया था।

भारत के पूर्व विदेश सचिव शशांक अमेरिका-भारत के बीच संबंधों में आए इस बदलाव की वजह जिओ-पालिटिक्स भी मानते हैं। शशांक कहते हैं, चीन ने कहा कि अब वह अगले 20 साल में दुनिया की नंबर वन ताकत बन जाएगा और अमेरिका को पीछे छोड़ देगा तो मुझे लगता है कि ट्रंप को यह एक रियलिटी चेक के मौके की तरह लगा। उन्हें लगा कि इस मौके के तौर पर ब्रिक्स के दो प्रमुख देश भारत और ब्राजील उनकी पकड़ में आ सकते हैं। दिल्ली स्थित थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के प्रमुख अजय श्रीवास्तव के मुताबिक, अमेरिकी प्रशासन में यह बात भी रही है कि भारत अपनी गुट निरपेक्षता की नीति को छोड़कर कोई एक पक्ष चुने, जो कि भारत की विदेश नीति के उसूल में नहीं है।

भारत के लिए मुश्किलें

अजय श्रीवास्तव के मुताबिक,इस समय भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती ट्रंप से व्यापार समझौता करना हैं। उनके मुताबिक, ट्रंप की जैसी शखिसयत है, उनसे समझौता करने के लिए जरूरी है कि या तो आप उनके सामने खड़े हो जाएं, उन्हें चुनौती दें। लेकिन उनके मुताबिक दुर्भाग्य से भारत के लिए ट्रंप को चुनौती देने या अमेरिका पर जवाबी शुल्क लगाने का विकल्प नहीं है। इसकी वजह बताते हुए वह कहते हैं कि भारत के निर्यातक जो सामान अमेरिका को निर्यात करते हैं, इनमें से बहुत सारे ऐसे सामान हैं, जिन्हें अमेरिका दूसरे प्रतिस्पर्धी बाजारों से मांगता है। वे प्रतिस्पर्धी बाजार बांग्लादेश, इंडोनेशिया, कंबोडिया, वियतनाम हैं।

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श्रीवास्तव के मुताबिक, भारत, चीन की तरह सेमीकंडक्टर्स या क्रिटिकल मिनरल्स निर्यात नहीं करता है, जिसके आधार पर ट्रंप के सामने खड़ा हुआ जा सके। एक बड़ी चुनौती यह है कि ट्रंप के साथ मोलभाव करने के लिए आपके पास इस वक्त क्या है। क्योंकि आप कृषि, मत्सयपालन, डेयरी जैसे को खोलेंगे नहीं, तो फिर दूसरे विकल्प क्या हैं। कृषि और मत्सयपालन जैसे क्षेत्रों को खोलना भारत की सत्ता में आने वाली किसी भी पार्टी के लिए मुश्किल है।

भारत क्या कर सकता है?

विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत को इस वक्त देखना पड़ेगा कि वह अमेरिका से क्या कुछ खरीद सकता है। भारत अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को अमेरिका से ज्यादा से ज्यादा रक्षा उपकरण खरीदने का प्रस्ताव दे सकता है। उनके मुताबिक, इसके अलावा अब भारत को अपने घरेलू आर्थिक सुधार में तेजी लानी ही होगी। क्योंकि आज सब कुछ बिजनेस से जुड़ा है और वही असली ताकत है।

रक्षा क्षेत्र में आयात कम किया

भारत ने रूस के साथ पिछले कुछ वर्षों में रक्षा क्षेत्र में आयात को काफी हद तक कम किया। कुछ साल पहले तक भारत रूस से 75 फीसद हथियार और उपकरण वगैरह आयात कर रहा था। अभी रूस से यह आयात 38 से 40 फीसद है। मौजूदा समय में भारत फ्रांस, इजराइल और अमेरिका से हथियार और उपकरण खरीद रहा है।

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भारत के पूर्व विदेश सचिव शशांक का मानना है कि पिछले 20-25 साल से भारत और अमेरिका में जो भी सरकार या प्रशासन आए, उन्होंने आपसी रिश्ते को विश्व में बन रहे नए मापदंडों में ढालने की कोशिश जारी रखी। वहीं, भारत और अमेरिका के बीच संबंध की जो हालिया स्थिति है, उसकी वजह अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का रवैया है। ट्रंप की कथनी और करनी में बड़ा फर्क है। इसलिए भारत को हर कदम सोच समझकर चलना होगा।

दिल्ली स्थित थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के प्रमुख अजय श्रीवास्तव की मानें तो अमेरिका ने अपने सहयोगियों के रूस के साथ व्यापार को भी नजरअंदाज किया है। पिछले साल यूरोपीय संघ ने रूस से 39.1 अरब डालर का सामान आयात किया है। वहीं खुद अमेरिका ने रूस से 3.3 अरब डालर के रणनीतिक संसाधन खरीदे। इस शुल्क से अमेरिका को होने वाले भारतीय निर्यात में 40 से 50 फीसद तक की गिरावट आ सकती है।