Global Warming and Climate Reality Project: दुनियाभर में जलवायु संकट अब कोई भविष्य की आशंका नहीं, बल्कि एक मौजूदा हकीकत है। बदलता मौसम, बेमौसम बारिश, भीषण गर्मी, और अचानक आने वाली बाढ़ जैसी घटनाएं अब सामान्य बात होती जा रही हैं। इस संकट को लेकर वैश्विक मंचों पर आवाज़ें तेज़ हो रही हैं, और हाल ही में 5 अप्रैल को दिल्ली के एरोसिटी स्थित Holiday Inn में आयोजित Climate Reality Tour इसका ताजा उदाहरण है। इस आयोजन में अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति और नोबेल पुरस्कार विजेता अल गोर ने स्पष्ट शब्दों में चेताया कि अगर अभी भी हमने इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए, तो हमारी अगली पीढ़ी को इसका गंभीर खामियाज़ा भुगतना होगा। अल गोर ने खासतौर पर युवाओं को संबोधित करते हुए उन्हें इस जलवायु युद्ध का ‘फ़्रंटलाइन सोल्जर’ बनने का आह्वान किया।
पर्यावरण संकट से निपटने की ज़मीन से जुड़ी ट्रेनिंग
इस आयोजन का उद्देश्य सिर्फ भाषण देना नहीं था, बल्कि इसमें उपस्थित लोगों को पर्यावरण संकट की गंभीरता को समझाने के साथ-साथ उन्हें ज़मीन पर काम करने के लिए ट्रेनिंग भी दी गई। जलवायु परिवर्तन के पीछे विज्ञान क्या कहता है, समाधान क्या हो सकते हैं, और हम व्यक्तिगत तथा सामाजिक स्तर पर क्या योगदान दे सकते हैं — इन सभी पहलुओं पर व्यावहारिक जानकारी दी गई।
यह कार्यक्रम भारत में क्लाइमेट रियलिटी प्रोजेक्ट की शाखा — क्लाइमेट प्रोजेक्ट फाउंडेशन — के माध्यम से आयोजित हुआ, जिसकी स्थापना मार्च 2008 में भारत के प्रतिष्ठित थिंक टैंक TERI (The Energy and Resources Institute) की मदद से की गई थी। TERI एक प्रमुख शोध संस्थान है जो ऊर्जा, पर्यावरण और सतत विकास के क्षेत्र में काम करता है। 2009 में इसे एक ट्रस्ट के रूप में मुंबई में पंजीकृत किया गया और तब से यह भारत और दक्षिण एशिया में जलवायु शिक्षा और नेतृत्व को सशक्त बनाने में जुटा है।
क्लाइमेट रियलिटी प्रोजेक्ट की नींव 2006 में अल गोर द्वारा रखी गई थी जब उन्होंने अपनी मशहूर डॉक्यूमेंट्री “An Inconvenient Truth” के ज़रिए वैश्विक स्तर पर जलवायु चेतना की शुरुआत की। इसने करोड़ों लोगों को प्रभावित किया और दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन पर नई बहस की नींव रखी। तब से लेकर आज तक, यह प्रोजेक्ट दुनियाभर में कार्यकर्ताओं, वैज्ञानिकों, शिक्षकों, और नीति-निर्माताओं को जोड़ते हुए एक वैश्विक आंदोलन का रूप ले चुका है। भारत में इसकी शाखा के माध्यम से 1500 से अधिक प्रशिक्षित नेता जलवायु से संबंधित विभिन्न स्तरों पर काम कर रहे हैं — स्कूलों, गांवों, नगरों और नीति-निर्माण के स्तर तक।
क्या है COP30?
इस वर्ष की जलवायु गतिविधियों का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव COP30 होगा — यानी “Conference of Parties” का 30वां वार्षिक सम्मेलन — जो 2025 में ब्राज़ील के अमेज़न क्षेत्र स्थित शहर बेलेम में आयोजित होगा। यह सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत होने वाली सबसे महत्वपूर्ण जलवायु बैठक मानी जाती है, जिसमें दुनिया के सभी देश जलवायु परिवर्तन पर चर्चा करने, अपनी प्रगति की समीक्षा करने, और भविष्य के लिए ठोस कदम तय करने के लिए इकट्ठा होते हैं। COP30 में एक बार फिर से यह सवाल ज़ोर से उठेगा — क्या हम अब भी तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं?
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यह लक्ष्य पेरिस समझौते के अंतर्गत तय किया गया था, जिसमें सभी देशों ने जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को रोकने के लिए एक सीमा निर्धारित की थी। लेकिन अब सवाल उठता है — आखिर इसमें रुकावट कहां है? जवाब बहुत स्पष्ट है — धनी पेट्रोलियम राज्य और जीवाश्म ईंधन कंपनियां, जो दुनिया की सरकारों पर भारी दबाव डालकर अपनी सुविधा के अनुसार नीति निर्माण करवा रही हैं। ये कंपनियां न सिर्फ गलत सूचनाएं फैलाकर जनता को गुमराह कर रही हैं, बल्कि COP प्रक्रिया को प्रभावित करने की भी पूरी कोशिश कर रही हैं, जिससे हर कदम पर प्रगति रुकती जा रही है।
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यह समय है जब आम नागरिकों को जागरूक होकर नेतृत्व को यह बताना होगा कि अब केवल घोषणाएं नहीं, व्यावहारिक योजनाएं चाहिए — जीवाश्म ईंधनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की, और स्वच्छ ऊर्जा में तुरंत संक्रमण करने की। इस दिशा में क्लाइमेट रियलिटी टूर जैसे आयोजन बेहद ज़रूरी हो जाते हैं, क्योंकि ये न केवल लोगों को सूचित करते हैं, बल्कि उन्हें प्रशिक्षित भी करते हैं कि वे इस परिवर्तन का हिस्सा कैसे बन सकते हैं।
COP30 से पहले एक और बड़ी चिंता यह है कि G20 देशों द्वारा जीवाश्म ईंधन क्षेत्र को दी जाने वाली सब्सिडी। अकेले 2023 में यह राशि 620 अरब डॉलर के आंकड़े को पार कर गई — यानी दुनिया का वह पैसा जो सार्वजनिक विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य या स्वच्छ ऊर्जा में लगाया जा सकता था, वह उन कंपनियों को चला गया जो पर्यावरण को नष्ट कर रही हैं। विडंबना यह है कि वही कंपनियां हर साल अरबों डॉलर का मुनाफा कमाती हैं, जबकि आम लोग जलवायु आपदाओं की असली कीमत चुका रहे हैं — कभी बाढ़ में घर खोकर, कभी सूखे में फसल गंवाकर।
लेकिन सभी खबरें नकारात्मक नहीं हैं। एक सकारात्मक संकेत यह है कि आज के समय में स्वच्छ ऊर्जा जैसे सौर और पवन ऊर्जा, कई देशों में सबसे सस्ती बिजली का स्रोत बन चुके हैं। तकनीक और निवेश की मदद से हम एक ऐसे भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं जहां हमें अपनी ज़रूरत की ऊर्जा तो मिले, लेकिन पर्यावरण का विनाश किए बिना। अब सरकारों को चाहिए कि वे इस बदलाव को समर्थन दें, और स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र को प्राथमिकता में लाएं।
क्लाइमेट रियलिटी प्रोजेक्ट इस बदलाव के लिए लोगों को प्रेरित कर रहा है। भारत में इसके अंतर्गत ग्रीन कैंपस कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जिसमें शैक्षणिक संस्थानों को एक सतत भविष्य की ओर ले जाने के लिए मार्गदर्शन दिया जाता है। इसके अलावा वृक्षारोपण, जल संचयन, ऊर्जा संरक्षण, और युवा नेतृत्व निर्माण जैसे कार्यक्रमों से यह संगठन आने वाले कल के लिए ज़रूरी बुनियाद रख रहा है।
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव अब हमारे जीवन के हर पहलू में महसूस किए जा रहे हैं — खेती, स्वास्थ्य, जल स्रोत, और यहां तक कि अर्थव्यवस्था तक। भारत जैसे देश जहां आबादी विशाल है और संसाधन सीमित, वहां इस संकट का असर और भी घातक हो सकता है। जल संकट इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। अनियमित बारिश, सूखती नदियां, घटते जलाशय, और गहराते भूजल स्तर — ये सब संकेत हैं कि हमें अब और इंतज़ार नहीं करना चाहिए।
हम सदियों से सुनते आए हैं कि “जल ही जीवन है”, लेकिन अब वक्त आ गया है कि इसे केवल मुहावरा नहीं, बल्कि नीति का आधार बनाया जाए। जलवायु न्याय सिर्फ एक वैश्विक संकल्प नहीं, बल्कि एक सामाजिक जिम्मेदारी भी है। हमें मिलकर यह तय करना होगा कि हम केवल शिकायत नहीं करेंगे, बल्कि समाधान का हिस्सा बनेंगे।
अल गोर का यह संदेश बेहद सीधा और स्पष्ट है — “हम सभी के पास अब भी मौका है, लेकिन वह मौका स्थायी नहीं है। अगर हमने अभी नहीं किया, तो आने वाली पीढ़ियों को हमारे फैसलों का बोझ उठाना पड़ेगा।”