ब्रिटिश संसद की एक समिति ने उत्तरी अफ्रीका में आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (आइएस) के पनपने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड कैमरन को जिम्मेदार बताया है। समिति ने 2011 में लीबिया के मामले में कूदने की कैमरन की ‘अवसरवादी नीति’ को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया। हाउस आॅफ कॉमंस की विदेश मामलों की समिति के सांसदों ने 2011 में लीबिया में ब्रिटेन और फ्रांस के हस्तक्षेप की आलोचना की। इस दौरान कैमरन ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थे। 2011 में लीबिया में शुरू हुए विद्रोह केबाद ही वहां के नेता मोहम्मद कज्जाफी को सत्ता से हटाया गया था।

समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2011 की गर्मियों तक असैन्य नागरिकों की सुरक्षा के लिए किया गया दखल सत्ता परिवर्तन की अवसरवादी नीति में बदल गया। उस नीति में कज्जाफी के बाद की लीबिया का समर्थन करने और उसे बनाने की कोई रणनीति नहीं थी। ‘द टाइम्स’ की खबर के अनुसार संसद की समिति ने कज्जाफी को हटाए जाने के बाद देश के लिए बिना किसी सुसंगत नीति के सत्ता परिवर्तन का समर्थन करने का आरोप कैमरन पर लगाया है। अरब स्प्ा्रिंग द्वारा विद्रोह के बाद ब्रिटेन और फ्रांस ने लीबिया में हवाई हमले किए थे। कज्जाफी द्वारा और हिंसा किए जाने की आशंका में पश्चिमी ताकतों ने कार्रवाई की, लेकिन उसके बाद से देश में हजारों लोग मारे गए हैं और अशांति अभी तक जारी है।

समिति ने अपनी 49 पेज की रिपोर्ट में कहा है-‘इसका नतीजा यह हुआ कि राजनीति और अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो गई, मिलिशिया और आदिवासी कबीलों के बीच युद्ध शुरू हो गया। मानवीय और शरणार्थी संकट, बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों का उल्लंघन, कज्जाफी की सत्ता के हथियार पूरे देश क्षेत्र में फैल गए और उत्तर अफ्रीका में आइएस पनप गया।’ विदेश मामलों की समिति की इस रिपोर्ट में कहा गया है-‘अपने फैसले से डेविड कैमरन सुसंगत लीबिया रणनीति बना पाने में नाकाम रहे।’ यह आलोचना अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की टिप्पणी को दोहराती है। ओबामा ने इस साल कहा था कि ब्रिटेन और फ्रांस ने संघर्ष के बाद लीबिया में ‘पर्याप्त काम’ नहीं किया है। कज्जाफी को सत्ता से हटाए जाने के बाद लीबिया हिंसा में फंस गया। प्रतिद्वंद्वी सरकारें, सैकड़ों की संख्या में मिलिशिया, और तथाकथित इस्लामिक स्टेट ने वहां अपनी पकड़ बना ली है।

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